सरकार जल्द ऑनलाइन कंपनियों के साथ जुड़े अस्थायी कर्मचारियों को बड़ा फायदा देने वाली है. केंद्र की मंशा है कि ऐसे कर्मचारियों के लिए भी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए. इसके तहत उन्हें पेंशन और हेल्थ इंश्योरेंस का फायदा दिया जाना चाहिए.
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नई दिल्ली. अमेजन-फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों में बतौर डिलीवरी ब्यॉय काम करने वालों की टेंशन सरकार खत्म कर देगी. केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने गिग वर्कर्स यानी काम के आधार पर वेतन पाने वालों को सामाजिक सुरक्षा देने पर विचार कर रहा है. सरकार की मंशा है कि ऐसे लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर उनके परिवार को भी सुरक्षित बनाया जा सके.
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि श्रम और रोजगार मंत्रालय देश में गिग यानी काम के आधार पर वेतन पाने वाले तथा ऑनलाइन मंचों के लिए काम करने वाले कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा जैसे विभिन्न लाभ प्रदान करने की योजना पर काम कर रहा है. भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के वैश्विक आर्थिक नीति मंच पर केंद्रीय श्रम सचिव सुमिता डावरा ने कहा कि सामाजिक सुरक्षा पर श्रम संहिता ने उनके लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ की रूपरेखा तैयार की है.
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नियमित कर्मचारियों की तरह मिलेगा लाभ
उन्होंने कहा, ‘हम अस्थायी और ऑनलाइन मंचों के लिए काम करने वाले श्रमिकों के लिए योजना बना रहे हैं. ऐसे कर्मचारियों के लिए कोई पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध परिभाषित नहीं है, लेकिन हमें उनके लिए सामाजिक सुरक्षा कवच लाने की जरूरत है, ताकि वे अधिक उत्पादक हो सकें और देश की अर्थव्यवस्था और ई-कॉमर्स व सेवा क्षेत्र का अधिक प्रभावी ढंग से समर्थन कर सकें.’
केंद्रीय मंत्री ने भी दिए थे संकेत
केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने भी अक्टूबर में कहा था कि अस्थायी और ऑनलाइन मंचों के लिए काम करने वाले श्रमिकों को पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की नीति पर काम चल रहा है. इसका मतलब है कि इन अस्थायी और दिहाड़ी कर्मचारियों को भी रिटायरमेंट के बाद पेंशन जैसी सुविधा मिलेगी और अपना व अपने परिवार का इलाज कराने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा दी जाएगी.
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65 लाख लोगों को फायदा
केंद्रीय श्रम सचिव ने कहा कि नीति आयोग का अनुमान है कि देश में ऐसे अस्थायी कर्मियों की संख्या 65 लाख है, जिन्हें अभी सामाजिक सुरक्षा का लाभ होगा. लेकिन, भविष्य में यह खंड तेजी से बढ़ रहा है और ऐसे कर्मचारियों की संख्या भी आगे बढ़कर दो करोड़ तक पहुंच जाएगी. लिहाजा सरकार को ऐसी नीति बनाने की जरूरत है, जो व्यापक रूप से इन कर्मचारियों के हितों की रक्षा कर सके.