नई दिल्ली, फीचर डेस्क। हम सब देशवासी आजादी के 75वें वर्ष को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं। हर देशवासी को अपने इतिहास, संस्कति व प्राचीन विरासतों के बारे में जानकर गर्व महसूस होता है। इतिहास और संस्कृति के अध्ययन से हमें अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों, स्वाधीनता सेनानियों, उनके अनथक संघर्ष और त्याग के बारे में पता चलता है। अच्छी बात यह है कि इतिहास-संस्कृति में रुचि रखने वाले युवा इस क्षेत्र में बेहतर करियर भी बना सकते हैं। इतिहास एवं इससे संबंधित नये-नये क्षेत्रों के विकास के कारण सरकारी के अलावा निजी क्षेत्रों में भी अवसर लगातार बढ़ रहे हैं।
‘दिल्ली कारवां’ के संस्थापक एवं मुगल इतिहास में खास दिलचस्पी रखने वाले आसिफ अली जब सुल्तानों और उनके सुने-अनसुने किस्से सुनाते हैं, तब मौजूद युवाओं का समूह खामोशी से सब सुनता है। आसिफ की मानें, तो जब युवाओं को देसी माहौल, स्थानीय जुबान में ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक किस्से-कहानियां सुनने को मिलती हैं, तो उनमें इतिहास को जानने की रुचि पैदा होती है। दिल्ली यूनिवर्सटिी के खालसा कालेज में मध्यकालीन इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर शाह नदीम सोहरावर्दी भी 2010 से दास्तानगोई कर रहे हैं। स्टूडेंट्स को कहानियों के माध्यम से इतिहास से रू-ब-रू कराते हैं। इसी तरह से इन दिनों तमाम लोग अपने अपने तरीके से युवाओं को अपने देश के साथ-साथ दुनिया के इतिहास और संस्कृति से रूबरू करा रहे हैं।
कौशल बढ़ाने में मददगार
प्रसिद्ध अफ्रीकी सिविल राइट्स एक्टिविस्ट एवं नीग्रो वल्र्ड न्यूजपेपर के संस्थापक मारकस गार्वे का एक कथन है कि जिन लोगों को अपने पुरातन इतिहास, संस्कृति की जानकारी नहीं होती है, वे एक ऐसे वृक्ष के समान होते हैं, जिसकी जड़ें नहीं होतीं यानी इतिहास के अध्ययन से हम न सिर्फ प्राचीन सभ्यता, संस्कृति को जान पाते हैं, बल्कि उसके साथ एक संबंध स्थापित कर पाते हैं। इससे न सिर्फ विरासत के संरक्षण में मदद मिलती है, बल्कि भावी पीढ़ी तक सही जानकारी का संप्रेषण हो पाता है।
कई हैं रोचक पहलू
आज के समय में इतिहास के अनेक रोचक पहलू हैं। खास बात यह है कि तमाम सरकारी एवं निजी शिक्षण संस्थानों में इसकी पढ़ाई की सुविधा भी उपलब्ध है। युवा अपनी पसंद के अनुसार, विशेषज्ञता के लिए पुरातत्व विज्ञान, एंथ्रोपोलाजी, जियोलाजी, विजुअल आर्ट, म्यूजियोलाजी आदि क्षेत्रों का चयन कर सकते हैं। वे चाहें, तो कार्बन डेटिंग, खनन, कंजर्वेशन आदि को भी एक्सप्लोर कर सकते हैं। दरअसल, भारत के समृद्धशाली इतिहास को जानना एवं समझना काफी रुचिकर है। यहां की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों को तलाशने और उन्हें समुचित तरीके से संरक्षित करने के लिए विशेषज्ञों के साथ प्रशिक्षित पेशेवरों की भी आवश्यकता पड़ती है। इसलिए इतिहास में स्नातक या परास्नातक करने वालों को देश के प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास के अलावा समकालीन एवं विश्व के अलग-अलग राष्ट्रों के इतिहास से भी परिचित कराया जाता है। उन्हें पुरातत्व विज्ञान, संग्रहालय विज्ञान, क्यूरेशन, कंजर्वेशन आदि की भी जानकारी दी जाती है।
संग्रहालय विज्ञान में संभावनाएं
प्राचीन अवशेषों एवं सामग्रियों को सुरक्षित रखकर संग्रहालय मानव इतिहास, संस्कृति और धर्म आदि की रक्षा में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। देश में ऐसे कई संग्रहालय हैं। राष्ट्रीय महत्व के ये संग्रहालय आज न सिर्फ पुरातत्वविदों, कंजर्वेटर्स, इतिहासकारों, बल्कि दुनिया भर के शोधाíथयों के लिए शोध का प्रमुख केंद्र बन चुके हैं। संबंधित कोर्स करने और विशेषज्ञता हासिल करने के उपरांत आपको संग्रहालय निदेशक, क्यूरेटर, एग्जिबिशन डिजाइनर अथवा कंजर्वेशन स्पेशलिस्ट जैसे पदों पर काम करने का अवसर मिल सकता है।
विविधतापूर्ण विकल्प हैं उपलब्ध
इतिहास विषय के अध्ययन से स्टूडेंट्स का फलक बड़ा होता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता में यह अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि इन परीक्षाओं में करीब 30 प्रतिशत तक सवाल इतिहास से संबंधित होते हैं और उनमें भी भारतीय इतिहास से 80 प्रतिशत तक सवाल पूछे जाते हैं। पढ़ाई के बाद अवसरों की भी कमी नहीं है। पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा पर्यटन, वकालत जैसे सेक्टर्स को एक्सप्लोर कर सकते हैं। मास्टर्स, बीएड, नेट-पीएचडी करने के बाद शिक्षण क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। शोध कर सकते हैं। विशेषज्ञता हासिल कर संग्रहालयों एवं कला केंद्रों में अपने कौशल का लोहा मनवा सकते हैं। बतौर भाषाविद भी करियर को नया आयाम दे सकते हैं।
प्रो. असद अहमद, असोसिएट प्रोफेसर, इतिहास, खालसा कालेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी
प्रमुख संस्थान
– राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली
www.nationalmuseumindia.gov.in
– बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
www.bhu.ac.in
– हिंदू कालेज, दिल्ली
www.hinducollege.ac.in
– क्राइस्ट यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु
www.christuniversity,in