जोमैटो ने कहा कि बिजनेस के लिहाज से इन शहरों का प्रदर्शन ‘बहुत उत्साहजनक नहीं’ था. दिसंबर में समाप्त तिमाही में कंपनी को 346.6 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था. हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इस कदम से कौन से शहर प्रभावित हुए हैं.
नई दिल्ली. देश में हर रोज करोड़ों लोगों को घरों और ऑफिस तक खाना पहुंचाने वाले फूड डिलीवरी एप का बिजनेस घाटे में चल रहा है. हैरानी की बात है कि लाखों ऑर्डर डिलीवर करने के बावजूद जोमैटो (Zamato Report Loss) और स्विगी जैसे फूड एग्रीगेटर्स घाटे में क्यों हैं? तीसरी तिमाही में जोमैटो का घाटा और बढ़ गया है. इसके चलते कंपनी ने 225 छोटे शहरों में अपने ऑपरेशन को बंद कर दिया है.
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कंपनी ने कहा कि बिजनेस के लिहाज से इन शहरों का प्रदर्शन ‘बहुत उत्साहजनक नहीं’ था. दिसंबर में समाप्त तिमाही में कंपनी को 346.6 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था. हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इस कदम से कौन से शहर प्रभावित हुए हैं.
मुनाफा बढ़ाने की कोशिश जारी
कंपनी ने अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए किए जा रहे उपायों के बारे में भी बात की. जोमैटो ने हाल ही में भारत में गोल्ड सब्सक्रिप्शन को फिर से लॉन्च किया है. कंपनी ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि यह कार्यक्रम ऑर्डर देने की हाई फ्रिक्वेंसी को आगे बढ़ाएगा. कंपनी ने यह भी दावा किया कि 9 लाख से अधिक सदस्य कार्यक्रम में शामिल हुए हैं.
जोमैटो समेत फूड डिलीवरी ऐप कंपनी घाटे में क्यों?
नाम नहीं छापने की शर्त पर मार्केट एक्सपर्ट ने जोमैटो समेत अन्य एग्रीगेटर्स ऐप के घाटे में होने की 3 बड़ी वजह बताई है. इनमें कस्टमर एक्वीजिशन कॉस्ट, टेक्नोलॉजी कॉस्ट, एंपलॉयी और लॉजिस्टिक कॉस्ट
प्रमुख हैं.
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बाजार जानकार के अनुसार, इन फूड डिलीवरी ऐप को कस्टमर एक्वीजिशन यानी ग्राहकों को अपने साथ जोड़ने के लिए काफी पैसा खर्च करना होता है. इनमें समय-समय पर दिए जाने वाले बड़े डिस्काउंट और रेफरल प्रोग्राम समेत कई स्कीम शामिल होती हैं, जिनमें इन कंपनियों के बजट का एक बड़ा हिसा खर्च होता है.
चूंकि फूड डिलीवरी ऐप पूरी तरह से मोबाइल और टेक्नोलॉजी से कनेक्ट होते हैं और इन पर निर्भर रहते हैं. वहीं, तकनीकों में लगातार बदलाव से इन कंपनियों को टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर काफी पैसा खर्च
करना होता है ताकि अपडेटेड तकनीक का लाभ उठाया जा सके और कस्टमर को बेहतर सर्विस मुहैया कराई जा सके. इसके अलावा फूड समेत अन्य ऑनलाइन प्रोडक्ट डिलीवरी करने वाली कंपनियों
को एंपलॉयी और लॉजिस्टिक कॉस्ट पर ज्यादा पैसा खर्च करना होता है.
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