नई दिल्ली. 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे भारत में नोटबंदी के फैसले से हर कोई हैरान रह गया था. लेकिन यह फैसला अचानक नहीं लिया गया था बल्कि इसके पीछे कई कारण थे और लंबे विचार-विमर्श के बाद इसे लागू किया गया था. केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के निर्णय के बारे में विस्तार से बताया. केंद्र ने कहा कि साल 2016 में नोटबंदी से आठ महीने पहले उसने भारतीय रिजर्व बैंक के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करना शुरू कर दिया था.
हलफनामे में बताया गया कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने संसद में कहा था “यह आरबीआई के साथ व्यापक परामर्श और अग्रिम तैयारी के बाद लिया गया फैसला था और आरबीआई के साथ सरकारी परामर्श फरवरी 2016 में शुरू हुआ. इस दौरान परामर्श और निर्णय लेने की प्रक्रिया को गोपनीय रखा गया था. ”
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सोच-समझकर लिया गया था नोटबंदी का फैसलाकेंद्र सरकार ने इस हलफनामे में कहा, “कुल मुद्रा मूल्य के एक महत्वपूर्ण हिस्से की निकासी सोच-समझकर लिया गया निर्णय था.” केंद्र ने कहा कि इस बारे में 1 दिसंबर 2016 को दाखिल किए गए दो हलफनामों को पढ़ा जाना चाहिए.
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नोटबंदी के फैसले का बचाव करते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि यह निर्णय आरबीआई की 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को वापस लेने की सिफारिश और कार्यान्वयन के लिए प्रस्तावित मसौदा योजना पर आधारित था. “RBI के केंद्रीय बोर्ड ने 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों की मौजूदा श्रृंखला के लीगल टेंडर केरेक्टर को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार को एक विशिष्ट सिफारिश की थी. आरबीआई ने सिफारिश को लागू करने के लिए एक मसौदा योजना भी प्रस्तावित की. इस पर केंद्र सरकार ने विधिवत तरीके से विचार किया था.”
इन बड़े कारणों से निपटने के लिए लिया गया था निर्णयइस मामले में अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति के लिए पेश किए गए नए बैंक नोटों के डिजाइन और विशिष्टताओं में बदलाव किए गए थे. इसलिए तैयारियों में नए डिजाइनों को अंतिम रूप देना, नए डिजाइनों के लिए सुरक्षा स्याही और प्रिंटिंग प्लेट्स का विकास, प्रिंटिंग मशीनों के विनिर्देशों में बदलाव और देश के विभिन्न हिस्सों में आरबीआई शाखाओं के साथ स्टॉक का प्रावधान शामिल है.
आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए सरकार ने हलफनामे में बताया गया है कि पिछले पांच वर्षों में 500 रुपये और 1,000 रुपये के बैंक नोटों के प्रचलन में 50 रुपये और 100 रुपये के नोटों में भारी वृद्धि हुई थी. “2010-11 से 2015-1 तक दो उच्चतम मूल्यवर्ग, यानी 500 रुपये के लिए 76.4% और 1,000 रुपये के लिए 109% की भारी वृद्धि देखी गई.” इसके साथ ही, सरकार और आरबीआई ने नोटों की एक नई श्रृंखला लाने पर विचार किया था, जिससे 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों की लीगल टेंडर को वापस लेकर काले धन, जालसाजी और अवैध वित्तपोषण से निपटा जा सकता था.