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दिल्ली/एनसीआर

दिल्ली विधान सभा में मिली लाल किले से जोड़ने वाली 7 किमी लंबी सुरंग, ऐसे हुई जानकारी

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नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। आजादी की लड़ाई मे जिन क्रांतिकारियों के खून से धरा लाल हुई, ऐसे महान क्रांतिकारियों को फांसी के फंदे पर पहुंचाने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली सुरंग दिल्ली विधानसभा में मिली है। सुरंग की लंबाई लगभग सात किलोमीटर मानी जा रही है, जो यहां से लालकिला तक जाती है। इतिहास में प्रमाण मिलते हैं कि वर्तमान दिल्ली विधानसभा की इमारत को स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम दिनों के वर्षों में अंग्रेजो ने अदालत के रूप मे इस्तेमाल किया। इसका समय 1926-27 से लेकर 1947 तक आजादी से पहले तक का माना जा रहा है।

विधानसभा की इमारत में जहां पर वर्तमान में सदन लगता है। वहीं पर अंग्रेजों की अदालत लगती थी और क्रांतिकारियों को सजा सुनाई जाती थी। उस समय लालकिला में स्वतंत्रता सेनानियों को कैद कर रखा जाता था और इसी सुरंग के रास्ते लालकिला से यहां तक लाया जाता था। उस समय दिल्ली विधानसभा की मेन इमारत मे पीछे की तरफ फांसी घर बना था। जहां पर क्रांतिकारियो को फांसी दी जाती थी।

ऐसे मिली जानकारी

दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल कहते है कि 1993 में जब विधायक बना तो उस समय विधानसभा के स्टाफ से सुना था कि यहां क्रांतिकारियों की कोर्ट चलती थी। अभी कुछ समय पहले हरियाणा में एक कार्यक्रम में भाग लेने गया था। वहां पर पूर्व विधायक किरण चौधरी मिली। उन्होंने चर्चा के दौरान इस बारे में बताया। वहां से वापस आने के बाद स्टाफ से जानकारी ली और खोज कराई गई तो विधानसभा सदन में यह सुरंग मिली।

संरक्षित होगी सुरंग

दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष गोयल के अनुसार, सुरंग को संरक्षित कराया जाएगा। इसे ठीक कराया जाएगा। योजना है कि इसे और फांसी घर को 26 जनवरी और 15 अगस्त को जनता के लिए खोला जाए। अभी फिलहाल 23 मार्च बलिदान दिवस पर इसे विशेष व्यक्तियों और मीडिया के लिए खोला जाएगा। इसी दिन विधानसभा परिषद में शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की प्रतिमा लगाई जाएंगी।

कई लोग हो सकते है खड़े

सुरंग की चौड़ाई और ऊंचाई इतनी है कि कई लोगो एक साथ सीधे खड़े होकर आवागमन कर सकते है। सुरंग के अंतिम छोर पर एक गेट मिला है। गेट से पहले एक स्थल मिला है, जहां कई लोग एक साथ ठहर सकते है। सुरंग पक्की ईटों की बनी है और ऊपर से प्लास्टर है।

दिल्ली विधानसभा इमारत का इतिहास

विधानसभा की इमारत के बारे में प्रमाण मिलते हैं कि दिल्ली के देश की राजधानी बनने के बाद 1911 से इस इमारत को सेंट्रल लेजेस्लेटिव एसेंबली यानी अंग्रेजों ने इस इमारत को अपने संसद भवन के रूप में उपयोग किया। यह इमारत 1926 तक अंग्रेजों की संसद रही। 14 साल तक यह इमारत अंग्रेजों की संसद रही और 1926 से 1947 तक अंग्रेजों की अदालत।

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