All for Joomla All for Webmasters
उत्तराखंड

Himalaya Diwas 2021: देश की सुरक्षा, पारिस्थितिकी तथा संस्कृति का प्रतीक है पर्वतराज हिमालय

himalaya_diwas

डॉ. अनिल प्रकाश जोशी। आज से करीब पांच करोड़ साल पहले जब यूरेशियाई प्लेट और ग्रेटर इंडिया आपस में टकराए तो इस देश की सबसे सुंदर आकृति ने जन्म लिया, वो था हिमालय। वैसे भी जब भी भारत का विवरण आता है, इस महान पर्वत को नकारा नहीं जा सकता। जब हिमालय का निर्माण हुआ, तब टेथीज सागर बन चुका था। इस सागर की गोद में ही हिमालय पनपा। आज देश के परिदृश्य को सबसे बेहतर और सुंदर हिमालय ही बनाता है। इस देश के लिए हिमालय के योगदान में हवा, मिट्टी, पानी, जंगल ही नहीं आते बल्कि ये दुनिया में देश की पहचान को अलग-थलग बनाकर रखता है।

हिमालय को देश के मुकुट का दर्जा भी दिया जाता है। वैसे हिमालय के कई नाम हैं, लेकिन अभी जब दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दे खड़े हो रहे हैं, उस दृष्टि से हिमालय को क्लाइमेट गर्वनर का दर्जा भी प्राप्त है और होना भी चाहिए क्योंकि जब हिमालय नहीं था तब पैनिनसुलर इंडिया या उससे जुड़े देश के अन्य हिस्से एक बड़ी शीत लहर की चपेट में थे और यह भी कहा जा सकता है कि ये एक ठंडे रेगिस्तान के रूप में जाने जाते थे। जैसे ही हिमालय खड़ा हुआ, ये स्थान जीवन के लिए बेहतर साबित हो गए।

जीवन और ज्ञान का केंद्र : भारत की सीमा से खड़ा हिमालय मात्र इसकी रक्षा के लिए पहचान नहीं बनाता बल्कि इस देश को पनपाने में हिमालय की एक बहुत बड़ी भूमिका रही है। वैसे भी दुनिया में ये ढेर सारी जीव प्रजातियों का घर है। भारत के इतिहास की दो सबसे पुरानी व बड़ी नदियां ब्रह्मपुत्र व सिंधु कैलास पर्वत के उद्गम के साथ ही जन्मीं। ये नदियां हिमालय के पूर्वी व पश्चिमी छोर से यात्रा कर सागर में विलीन हो जाती हैं। इस बीच ये हिमालय के जनजीवन, मिट्टी व वनों को तर करती हैं। बात वनों की हुई है तो जानना जरूरी है कि देश के एक तिहाई वन यहां मौजूद हैं। करीब 41 फीसद भूमि यहां वनों को समर्पित है। इतना ही नहीं, दुनिया मे कई तरह की संस्कृतियां और संस्कार इसी से पनपे हैं। साधु-संतों की तपस्या का गढ़ भी हिमालय ही रहा। सभी तरह के मतों-पंथों के महान साधकों ने हिमालय में ही वास किया है। वन्य संस्कृति यहीं पनपी है। ज्ञान-विज्ञान का स्रोत भी यहां रहा और मोक्ष प्राप्ति के रास्ते भी यही से निकलते हैं। भारत देश को दुनिया की दृष्टि में आध्यात्मिक गुरू बनाने के पीछे हिमालय का भी योगदान है।

सदियों से सेवा में तत्पर : हिमालय की परिस्थितियां आज अगर अनुकूल न भी हों, फिर भी इस देश की लाइफलाइन के रूप में हिमालय ही जाना जाता है। स्वस्थ हो या बीमार, सदियों से खड़ा हिमालय तबसे जनसेवा में तत्पर रहा है और आने वाले हजारों वर्ष तक सतत रहेगा। यह हमेशा इस देश की सीमाओं के साथ ही सभी तरह के जीवन को पनपाने में भी सबसे बड़ा योगदान देता आ रहा है। देखा जाए तो हिमालय से जुड़े राज्य व देश की राजधानी सब इसकी कृपादृष्टि से ही फल-फूल रहे हैं। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल या दूसरी तरफ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, सब के सब हिमालय के ही संरक्षण में ही बढ़ते आए हैं। इसके अतिरिक्त हिमालय व समुद्र के बीच पनपा रिश्ता, देश के उत्तर-दक्षिण के बीच की बसावट की भी सेवा करता है। यहां की हरित व श्वेत क्रांति उस मानसून के बलबूते पर ही है जो हिमालय व समुद्र के मेल-मिलाप का ही उत्पाद है। यहां का महफूज जीवन हिमालय की ही देन है। इतना सब होने के बाद भी देश के इस महान सेवाखंड को समझने में हम चुके हुए हैं, चूक गए हैं।

भारत के मस्तक का मुकुट : आज देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने में जुटा है पर जहां से देश को सबसे ज्यादा जीवन के अमृत प्राप्त होते हों अगर उसके हालात खराब हों तो चिंतित होना स्वाभाविक है। साथ ही इसके प्रति गंभीरता भी होनी चाहिए क्योंकि सवाल उस मुकुट का है जो देश का सम्मान तय करता है। अगर मुकुट ही तटस्थ व स्थिर नहीं होगा तो देश की अस्थिरता पर सवाल खड़े तो होंगे ही। अगर हिमालय की परिस्थितियां बेहतर नहीं रहीं तो स्वतंत्रता के मायने भटके हुए होंगे। हिमालय के उस योगदान को तो हमें बार-बार याद करना ही होगा जिसने इसे स्वतंत्र व हमें सुरक्षित रखने में बड़ी भूमिका निभाई है। हिमालय न होने का मतलब अन्य देशों की घुसपैठ के रास्तों को निमंत्रण देना है। इस देश की सीमाओं में हिमालय ही दुश्मनों को अनवरत ललकारता रहता है। हिमालय से स्वावलंबन की परिभाषा भी इसलिए खरी उतरती है क्योंकि इसी से देश में बाग-बगीचे, खेत-खलिहान पनपे हैं। किसी भी देश के जनजीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं में हवा, मिट्टी, जंगल, पानी सीधे बड़े योगदान के रूप में जाने जाते हैं और भारत को यह स्वाभिमान, स्वतंत्रता, स्वावलंबन हिमालय ने ही दिया है। जल रूपी जीवन के लिए देश का 65 फीसद हिस्सा हिमालय पर ही निर्भर है। इस देश के बड़े हिस्से में हर क्षण ली जाने वाली प्राणवायु की आपूर्ति भी इसके वनों से ही होती है। देश की पारिस्थितिकी व आर्थिक स्वतंत्रता हिमालय के हवा-पानी से ही पनपी है।

मानव ही पहुंचा रहे नुकसान : आज हिमालय को लेकर तमाम मुद्दे भी खड़े हो चुके हैं। इस बरसात को ही देखिए, देशभर में जहां एक तरफ मानसून ने कई कहर ढाए हैं, लेकिन हिमालय इससे सबसे ज्यादा व्यथित रहा है। अब अगर आने वाले कल में हिमालय पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से उस तरह तटस्थ खड़ा नहीं हो पाता है, जैसा यह सदियों से रहा है तो इसके लिए सबसे बड़ा दोष मानव और उसकी गतिविधियों के कारण ही है। आज हिमालय से संदर्भित योगदानों को परोसे जाने का समय है। ऐसे तौर-तरीके भी जुटाने की आवश्यकता है ताकि हिमालय के प्रति सबकी समझ बने। हिमालय के प्रति देश का सामूहिक योगदान और दायित्व बनता है कि हम इसके संरक्षण के लिए एकजुट होकर आगे आएं।

Source :
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top