लुधियाना, [राजीव शर्मा]। पेट्रोलियम उत्पादों के दाम लगातार बढ़ने के कारण लुधियाना में डाइंग इंडस्ट्री कृषि आधारित ईंधन का विकल्प तलाश रही है। पेटकोक की कीमतों में भी लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। उद्यमियों का कहना है कि करीब एक साल पहले पेटकोक के दाम करीब 1100 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल थे, जो कुछ दिन पहले तक 1800 रुपये पर थे और अब नया रेट 2100 रुपये प्रति क्विंटल आ रहा है। नतीजतन डाइंग की प्रोसेसिंग लागत 10 से 15 रुपये प्रति किलो तक बढ़ गई है। इसलिए डाइंग इकाइयां इसके स्थान पर धान के छिलके का इस्तेमाल कर रही हैं। लागत बढ़ने के कारण डाइंग इकाइयों ने भी एक साल के दौरान आठ से दस रुपये प्रति किलो तक रेट बढ़ाए हैं।
लुधियाना में लगभग 250 डाइंग मिले हैं। इनमें से अस्सी से सौ मिलों में पेटकोक का उपयोग फ्यूल के तौर पर होता है, लेकिन अब यहां धान के छिलके का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है। छिलके की मांग बढ़ने से इसकी कीमतें छह माह के भीतर 300 रुपये से उछल कर 600 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई हैं। उद्योगपतियों के अनुसार पेटकोक पेट्रोलियम उत्पादों का बाय-प्रोडक्ट है। यह रिफाइनरीज से आता है। ज्यादातर पेटकोक रिलायंस, बठिंडा रिफाइनरी एवं एसआर रिफाइनरी से आ रहा है। इसके दाम बढ़ने के साथ साथ भाड़ा भी बढ़ा है।
सस्ता पड़ता है धान का छिलका
पेटकोक की क्लोरोफिक वैल्यू 7500 है, जबकि धान के छिलके में यह तीन हजार तक। इसलिए एक क्विंटल पेटकोक की जगह करीब ढाई गुणा धान का छिलका उपयोग होता है। इसके बावजूद यह पेटकोट से सस्ता पड़ता है।
प्रदूषण फैलाता है पेटकोक
पेट्रोल और डीजल की तुलना में पेटकोक में सल्फर का स्तर हजार गुना से अधिक होता है। कोयले से सस्ता होने के कारण इंडस्ट्री में इसका इस्तेमाल ज्यादा होता है। इस पर टैक्स छूट मिलती है और जीएसटी के तहत इस पर किए गए खर्च पर रिफंड मिलता है।
पराली पर चल रहा काम
लुधियाना डाइंग एसोसिएशन के महासचिव रजत सूद कहते हैं कि इंडस्ट्री सस्ते फ्यूल के विकल्प तलाश रही है। सूबे में सालाना दो करोड़ टन से अधिक पराली निकलती है। यदि पराली को फ्यूल में कनवर्ट करके बायलर में उपयोग करने का तरीका तैयार किया जाए तो यह इंडस्ट्री के लिए भी बेहतर होगा। इससे प्रदेश में प्रदूषण भी कम होगा और किसानों की आय भी बढ़ेगी। पराली की क्लोरोफिक वैल्यू करीब 2700 है। बायलर में पराली को फ्यूल के तौर पर उपयोग करने के अभी ट्रायल चल रहे हैं। यदि ये कामयाब होते हैं तो इंडस्ट्री को भी फायदा होगा। इस दिशा में इंडस्ट्री, सरकार और महिरों को मिल कर कदम उठाने होंगे।
पेट्रो उत्पादों के रेट कंट्रोल करे सरकार: मक्कड़
पंजाब डायर्स एसोसिएशन के चेयरमैन अशोक मक्कड़ का कहना है कि डाइंग इंडस्ट्री में फ्यूल का अहम रोल है। अब पेटकोक का रेट 2100 रुपये प्रति क्विंटल बोला रहा है। इसमें लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में अब ज्यादातर इकाइयां धान के छिलके का उपयोग कर रही हैं। अभी छिलके के दाम भी बढ़े हैं, लेकिन कोई विकल्प नहीं है। सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में कटौती के लिए कदम उठाने होंगे।
लकड़ी के बुरादे व सरसों के वेस्ट का भी इस्तेमाल
लुधियाना में कुछ इकाइयां लकड़ी के बुरादे से बनी ब्रिकेट्स एवं सरसों के वेस्ट की ब्रिकेट्स का भी उपयोग करती हैं। इनकी क्लोरोफिक वैल्यू भी लगभग तीन हजार के आसपास हैं। सरसों एवं लकड़ी के बुरादे की ब्रिकेट्स का दाम करीब नौ सौ से एक हजार रुपये प्रति किलो है। इसलिए इनका इस्तेमाल कम हैं, लेकिन सरसों के रेट कम होने पर यह उनके लिए सस्ता विकल्प बन सकता है।
