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जम्मू और कश्मीर

Kashmir के 10 जिलों में वनों पर आश्रित अनुसूचित जनजातियों को मिलेगा वनाधिकार प्रमाण-अनुमति पत्र

Kashmir

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : जम्मू-कश्मीर में वनों पर आश्रित अनुसूचित जनजातियों और अन्य वर्गाें सें संबधित लाेगों को वनाधिकार प्रदान करने की प्रक्रिया शुरु हाेने जा रही है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा 13 अप्रैल को एक समारोह में कश्मीर घाटी के 10 जिलों के चयनित लाभार्थियाें का वनाधिकार प्रमाण एवं अनुमतिपत्र प्रदान करेंगे।

आपको जानकारी हो कि पांच अगस्त 2019 से पूर्व अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य में वनाधिकार अधिनियम जिसे एफआरए भी कहते हैं, लागू नहीं था। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने हाेने और अनुच्छेद-370 के समाप्त होने के बाद केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर प्रदेश में यह कानून लागू हाे गया है।

जम्मू कश्मीर में मुख्यत: गुज्जर-बक्करवाल ,सिप्पी और गद्दी समुदाय ही वनों पर आश्रित है। गद्दी समुदाय के अलावा अन्य सभी इस्लाम के मानने वाले हैं। हालांकि गुज्जर-बक्कर समुदाय के लाेग अक्सर जंगलाें में अपने माल मवेशी साथ डेरा लगाकर रहते हैं, कई पहाड़ी चारागाहाें पर भी कथित ताैर पर उनका कब्जा है। ये लाेग और वनों के आसपास रहने वालेे कई लाेग परंपरागत रुप से अपनी आजीविका के लिए वनाें पर ही आश्रित हैं। ये लोग जंगलाें से कई प्रकार की जड़ी बूटियां भी जमा करते हैं। वनाधिकार अधिनियम के प्रभावी न होने के कारण कई बार इन लाेगों के लिए कई दिक्कतें पैदा हो जाती रही हैं।

जनजातीय मामलाें के सचिव शाहिद इकबाल चौधरी ने सभी जिला उपायुक्तों को एक पत्र लिखकर सूचित किया है कि समर्थ प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित वनाधिकार प्रमाण एवं अनुमति पत्र उपराज्यपाल मनाेज सिन्हा 13 सितंबर को शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर एसकेआईसीसी में आयोजित एक समाराेह में लाभार्थियों का प्रदान करेंगे। बारामुला, कुपवाड़ा, बांडीपोर, गांदरबल, बडगाम, श्रीनगर, पुलवामा, शोपियां और कुलगाम के जिला उपायुक्त समारोह में मौजूद रहें क्योंकि इन्हीं जिलों के लाभार्थियों को वनाधिकार प्रमाण एवं अनुमति पत्र प्रदान किया जा रहा है। पहले दिन वादी के सभी 10 जिलों से 20-20 लाभार्थियों समेत कुल 200 लाभार्थियों को यह प्रमाणपत्र दिए जाएंगे।

जम्मू कश्मीर में गुज्जर-बक्करवाल वर्ग समेत विभिन्न अनुसूचित जनजातियाें पर शोध कर चुके डॉ जावेद राही ने कहा कि वनाधिकार अधिनियम को लागू और प्रभावी होना हम लोगों के लिए एक वरदान है। यह जम्मू-कश्मीर में वनों पर आश्रित आबादी और अनुसूचित जनजातियों के साथ हुए अन्याय को दूर कर, उन्हें न्याय प्रदान करने की दिशा में एक बड़ा एतिहासिक कदम है। 

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