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हिंदी दिवस: हिंदी के पैदा होने और बड़े होने की पूरी कहानी, जानें जो हिंदी आज हम बोलते हैं उसका इतिहास

Hindi Divas

नई दिल्ली. आज यानि कि 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जा रहा है. जिस हिंदी को आज हम बोलते-सुनते-पढ़ते हैं, वो 3400 साल में बनी है. 1500 ईसा पूर्व में हिंदी की मां कही जाने वाली संस्कृत की शुरुआत हुई थी. 1900 ईसवी में हिंदी खड़ी बोली में लिखना-पढ़ना शुरू किया गया. हिंदी दिवस के मौके पर हम इसी हिंदी भाषा का पूरा इतिहास लेकर आए हैं. तो आइए जानते हैं यहां..

संस्कृत का आसान रूप है हिंदी
1500 ईसा पूर्व ऋग्वेद को सनातन धर्म के लोग लिखित भाषा की शुरुआत मानते हैं. इसकी भाषा संस्कृत है. 

100 ईसवी जिसको जो आसान लगा वो वैसा बोलने लगा. इसे प्राकृत भाषा कहागया. इनमें शौरसेनी, पैशाची, ब्राचड़, खस, महाराष्ट्री, मागधी और अर्धमागधी बोलियां बोली जाने लगीं. 

1000 ईसा पूर्व
 रामायण, महाभारत लिखे गए. उनकी भाषा भी संस्कृत थी. 

500 ईसा पूर्व 
महर्षीपाणिनि के संस्कृत व्याकरण का प्रचार हुआ. आम लोग बोलने-लिखने लगे. 

500 ईसवी
अपभ्रंश की शुरुआत हुई. यानि कि मूल भाषा संस्कृत का सबसे देसी अंदाज था. 

100 ईसवी
भारत के अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग भाषा बोली जाने लगी- इनमें 1- शौरसेनी बनी पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी और गुजराती
2- पैशाची बनी लंहदा और पंजाबी
3- ब्राचड़ बनी सिंधी
4- मागधी बनी बिहारी, बांग्ला, उड़िया और असमिया
5- महाराष्ट्री बनी मराठी
6- अर्ध मागधी बनी पूर्वी हिंदी
7- खस बनी पहाड़ी

हिंदी में सबसे पहले लिखी गई वीरों की गाथा
1000 ईसवी
पहली हिंदी रचना खुमान रासो. इसे आज के आल्हा जैसा मान सकते हैं. कविता की तरह बातें कहते थे. इसमें चित्तौड़ के राजा रावल खुमान की कहानी थी. 

1212 ईसवी
वीसलदेव रासो लिखी गई. इसमें राजा वीसलदेव की पूरी जिंदगी के बारे में लिखा गया था. इसे ही राजपुताने का भी इतिहास भी माना जाता है. 

1225-1249 ईसवी
हिंदी के पहले नामी कवि हुइ चंद्र वरदाई. इन्होंने पृथ्वीराज रासो लिखी. हिंदू धर्म मानने वालों ने इस ग्रंथ का बहुत प्रचार किया. 

1230 ईसवी
जगनिक ने महोबा के दो वीरों आल्हा और उदल की कहानी गाकर सुनाई. जिसे बाद में लिखी भी थी. लेकिन ये गीत ज्यादा मशहूर हुआ. 

1340 ईसवी
अमीर खुसरो ने फारसी और हिंदी में कई पहेलियां, गीत और दोहे लिखे. 

कहा जाता है कि 1100 ईसवी के बाद देवनागरी में हिंदी लिखी जाने लगी थी. हालांकि पहली बार कहां लिखी गई, इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है. 

देवगीत लिखने वालों ने हिंदी को बढ़ाया आगे
1375 से 1700 ईसवी
भारत में मुसलमान शासक हमला कर रहे थे. पूरे देश में लड़ाई का माहौल था. तब दो तरह की बातें एक साथ लिखी जा रही थीं. 

1- सभी के भगवान को एक मानते हुए. आपस में लड़ाई न करने को प्रेरित करती हुई बातें.

2- भगवान में विश्वास जगाने वाली और हिंदू धर्म के मानने वालोंं को एक करने वाली बातें. 

1450-1550 ईसवी
नानक, मलिक मोहम्मद जायसी, रैदास की कविताएं लोगों ने गाना शुरू कर दिया. लेकिन सबसे ज्यादा  प्रचार कबीर की बानी का हुआ. वो समाज में जो कुछ भी देखते उसे गीत की तरह गाते और उनके साथ रहने वाले उसे लिख करते थे. 

1633 ईसवी
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखा. ये आम लोगों में इतनी मशहूर हुई कि हिंदी के इतर देश की दूसरी भाषाओं में उसी वक्त इसका ट्रांसलेशन होने लगा था. 

1642 ईसवी
सूरदास की लिखी सूरसागर मुगल काल में दिल्ली के करीब विरोख की बड़ी आवाज बनी. 

1650 ईसवी
औरंगजेब जैसे शासक हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर गिरा रहे थे. तब सूर-तुलसी के अलावा रसखान, मीरा, नाभादास जैसे कई कवि भगवान का गीत गाकर लोगों को जोड़ रहे थे और इसी के साथ हिंदी भी आगे बढ़ रही थी. 

ब्रज और अवधी के प्रभाव से उबरने में लगे 200 साल 
1700-1900 ईसवी

ये 200 साल सूर-तुलसी के प्रभाव वाले रहे. अगर कोई हिंदी का कवि बनना चाहता था तो उसे तुलसी अवधि और सूर की ब्रज भाषा सीखनी ही पड़ती थी. 

हिंदी साहित्य के इतिहास में इन 200 सालों में करीब 103 कवियों का नाम मिलता है. इनमें चिंतामणि त्रिपाठी, महाराज जसवंत सिंह, बिहारीलाल, मतिराम, बेनी, भूषण, सुखदेव मिश्र अहम थे. हालांकि इनकी लेखनी एक ही परिपाटी पर थी. इसलिए हिंदी के विकास में इनकी भूमिका का अधिक महत्व नहीं मिला. 

1857 ईसवी
गोपालचंद्र गिरधरदास ने नहुष नाम का हिंदी नाटक लिखा. इसका मुख्य उद्देश्य सुनने वाले को आनंद देना था. इसमें कोई उपदेश नहीं था. 

1880 ईसवी
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 1850 में पैदा होने वाले और 1885 में दुनिया छोड़कर जाने वाले भारतेंदू हरिश्चंद ने गद्य यानि आज जो हिंदी दिखाई दे रही है उसकी नींव रखी थी. 

1805 में पब्लिश हुई लल्लू लाल की प्रेम सागर हिन्दी में पब्लिश होने वाली पहली किताब मानी जाती है.

आज जो हिंदी हम लिखते हैं उसकी शुरुआत 1900 में हुई
1900 ईसवी

किशोरीलाल गोस्वामी ने कहानी लिखी- इंदुमती. ये पहली रचना थी, जो पूरी तरह से हिंदी खड़ी बोली में और गद्य अंदाज में लिखी गई. इसकी भाषा एकदम वैसी थी, जैसी आज लिखी और बोली जाती है. 

1904 ईसवी
उत्तर भारत के हर स्कूल में इस भाषा को पढ़ाए जानें की मांग उठी. 

1905 ईसवी
अंग्रेज सरकार ने हिंदी खड़ी बोली गद्य के खिलाफ एक सूचना निकाली. जिसमें कहा गया है कि ऐसी भाषा को जानना सभी के लिए जरूरी नहीं है. यह मुल्क की सरकार और दफ्तरी जबान नहीं है. यही नहीं इससे आपस में खाई बढ़ेगी. 

हिंदी खड़ी बोली स्थापित करने वाली 4 रचनाएं
1909 ईसवी
पुष्पवाटिका, उर्दू रचना गुलिस्तां के एक अंश का हिंदी अनुवाद.

1913 ईसवी
भारवर्षीय इतिहास

1915 ईसवी
जगत वृत्तांत, भूगोल की किताब.

हिंदी को एक बोली कहना ठीक न होगा
14 सितंबर 1949
हिंदी को संविधान सभा आजाद भारत की राजभाषा का दे दिया गया. 

1950 ईसवी
इस साल तक आते-आते महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्या सुंदर दास, प्रताप नारायण मिश्र, रामचंद शुक्ल, राम कुमार वर्मा ने अपनी लेखनी इस भाषा को ऊंचाई पर पहुंचा दिया. 

2011 ईसवी
एक सर्वे में दावा हुआ कि दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत हिंदी समझते हैं. चीनी भाषा मैंडरीन 15.27 प्रतिशत और अंग्रेजी 13.85 प्रतिशत समझते हैं. 

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