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Havana Syndrome: भारत में भी हवाना सिन्ड्रोम की दस्तक? बीमारी के अनोखे लक्षणों से डॉक्टर भी हैरान

Havana Syndrome

नई दिल्ली. सीआईए निदेशक विलियम बर्न्स (CIA Director William Burns) अपने अधिकारियों के साथ इस महीने भारत की यात्रा पर थे. उन्होंने सीएनएन और न्यूयॉर्क टाइम्स के सामने एक हैरान कर देने वाला खुलासा किया है. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने एक रहस्यमयी बीमारी हवाना सिंड्रोम (Havana syndrome) के लक्षणों के बारे में जानकारी दी. उनके मुताबिक करीब 200 अमेरिकी अधिकारी और उनके परिवार के सदस्य हवाना सिंड्रोम (Havana syndrome) से पीड़ित हो गए हैं. इस रहस्यमयी बीमारी के लक्षणों में माइग्रेन, उल्टी आना, याददाश्त चले जाना, और चक्कर आने जैसे लक्षण शामिल हैं. 2016 में क्यूबा में अमेरिकी दूतावास में मौजूद अधिकारियों में सबसे पहले इस बीमारी के लक्षण पाए गए थे.

जानिए क्या है ये बीमारी
इससे दुनियाभर में अमेरिकी और कैनेडियन राजनयिकों, जासूसों और दूतावास के स्टाफ पीड़ित हो रहे हैं. करीब 200 से ज्यादा लोगों ने इसके लक्षणों के बारे में जानकारी दी है, सबसे पहले इस बीमारी के बारे में क्यूबा में पता चला, उसके बाद ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, कोलंबिया, रूस और उज्बेकिस्तान में भी इसके मामले सामने आए. 24 अगस्त को अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस कि वियतनाम जाने वाली उड़ान में देरी हुई क्योंकि देश की राजधानी हनोई में कुछ संदिग्ध मामले सामने आए थे.

बम विस्फोट की तरह होता है दिमाग को नुकसान
2016 में क्यूबा की राजधानी हवाना में अमेरिकी दूतावास में काम कर रहे कई सीआईए अधिकारियों ने अपने सिर में दबाव और झनझनाहट की शिकायत दर्ज की. वे सभी उल्टी आने और थकान महसूस कर रहे थे, साथ ही उन्हें कुछ भी याद रख पाना मुश्किल हो रहा था. इसके साथ ही उन्हें कान में दर्द और सुनने में भी तकलीफ हो रही थी. बाद में जब दिमाग का स्कैन किया गया तो पाया गया कि दुर्घटना या बम विस्फोट के दौरान जिस तरह से ब्रेन टिश्यू (दिमागी ऊत्तकों) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, वैसे ही क्षतिग्रस्त उत्तक नजर आए थे. इसके तुरंत बाद ही अमेरिकी सरकार ने अपने दूतावास के आधे से ज्यादा स्टाफ को शहर से वापस बुला लिया था.

क्या इसमें रूस का हाथ है?
शुरुआत में अमेरिकी अधिकारियों का मानना था कि इसके लिए ध्वनि हथियार का इस्तेमाल किया गया, जो परेशान और विचलित कर सकता है. लेकिन बाद में इस सिद्धांत को नकार दिया गया, क्योंकि इंसानी सुनने की क्षमता से बाहर की ध्वनि तरंगें कन्कशन जैसे लक्षण पैदा नहीं कर सकती हैं. बाद में उन्होंने माइक्रोवेव के बारे में विचार किया.

नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस, इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन (एनएएसईएम) की पिछले साल प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि माइक्रोवेव बीम किसी भी तरह की संरचनात्मक क्षति किए बगैर दिमाग की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचा सकती थी. 2019 को जर्नल ऑफ दि अमेरिकन मेडिकल एसोशिएसन (जामा) भी इसी नतीजे पर पहुंचा था. एनएएसईएम के मुताबिक रूस 1950 से ही माइक्रोवेव तकनीक पर काम कर चुका है, सोवियत यूनियन मॉस्को में अमेरिकी दूतावास में इनका विस्फोट किया करता था.

कहीं जानबूझकर तो नहीं पैदा किया गया ये सिंड्रोम
हालांकि कुछ लोगों के पास तीसरा स्पष्टीकरण भी है, जिसके मुताबिक ये सामूहिक मनोवैज्ञानिक बीमारी हो सकती है. यह तब हो सकता है, जब एक समूह के लोग बगैर किसी बाहरी कारण के एक जैसे लक्षण महसूस करने लगते हैं. इस सिद्धांत का समर्थन करने वालों का मानना है कि भले ही परेशान करने वाले लक्षण नजर आ रहे हों. दरअसल कोई बीमारी नहीं है. क्यूबा में लगातार निगरानी में रहने के दबाव की वजह से राजनयिकों के साथ ऐसा हो सकता था.

अमेरिकी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की एक पैनल ने सबसे प्रशंसनीय सिद्धांत प्रतिपादित किया है, जिसके मुताबिक, निर्देशित, स्पंदित रेडियो आवृत्ति ऊर्जा इस सिंड्रोम का कारण हो सकती है. बर्न्स का कहना है कि इस बात की प्रबल आशंका है कि ये सिंड्रोम जानबूझकर पैदा किया गया हो और इसमें रूस का हाथ हो सकता है.

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