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Ease of Doing : चेक बाउंस मामलों ने भारत की साख की खराब, सुप्रीम कोर्ट ने की तल्‍ख टिप्‍पणी

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नई दिल्‍ली, पीटीआइ। Cheque Bounce मामलों को लेकर Supreme Court ने तल्‍ख टिप्‍पणी की है। Supreme Court ने कहा है कि Cheque Bounce (चेक बांउस) के मामलों में लंबे समय तक चलने वाली कार्रवाई और बड़ी संख्या में शिकायतों ने भारत में व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business) को खराब किया है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक Cheque Bounce के मामलों ने निवेश में बाधा पैदा कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि Cheque Bounce ‍(dishonour of cheque) से जुड़े निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (NI) कानून की धारा 138, के तहत अपराध की प्रकृति अर्ध-फौजदारी (quasi-criminal) है और कानून का उद्देश्य कर्जदाताओं को ‘सुरक्षा प्रदान करना’ और देश की बैंकिंग प्रणाली में भरोसा पैदा करना है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने dishonour of cheque मामलों में कानून के प्रावधान के तहत दायर शिकायतों पर आधारित दो याचिकाओं पर अपने 41 पन्नों के फैसले में यह तल्‍ख टिप्पणी की। पीठ में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम की धारा 138 के तहत अदालती कार्रवाई के लंबित होने और शिकायतों की लंबी फहरिस्‍त ने भारत में कारोबारी सुगमता को प्रभावित किया है, और इससे निवेश में बाधा पैदा हुई है।

सु्प्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ ने कहा कि इन मुद्दों को स्वीकार करते हुए वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने 8 जून 2020 को एक नोटिस के जरिए देश में कारोबारी भावना को बेहतर बनाने के लिए निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून की धारा 138 (section 138 of the Negotiable Instruments (NI) Act) सहित छोटे अपराधों (decriminalisation of minor offences) के संबंध में टिप्पणी मांगी है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून की धारा 138 (section 138 of the Negotiable Instruments (NI) Act) के तहत पक्षों को विवाद निपटाने (pendency of court proceedings) के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिसके चलते अदालत के सामने लंबी मुकदमेबाजी की जगह मामले को अंतिम रूप से बंद कर दिया जाता है।

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