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निजी वाहनों के इस्तेमाल ने जहरीली कर दी दिल्ली और एनसीआर के शहरों की हवा

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नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण कम नहीं हो रहा है। इसे लेकर दिल्ली सरकार की ओर से कदम उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के सामने हलफनामा दिया गया है और प्रदूषण के कारण लाकडउन तक लगाने की बात हो चुकी है। सरकार बाहरी राज्यों से राजधानी दिल्ली में आने वाले वाहनों पर प्रतिबंध तक लगा चुकी है, मगर हालात नहीं सुधर रहे हैं। इसी बीच यह भी सामने आ रहा है कि दिल्ली में स्थानीय कारणों से भी प्रदूषण फैल रहा है। इस समय इस तरह के प्रदूषण में वाहनों का अधिक योगदान माना जा रहा है।

विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली में बढ़ रहा निजी वाहनों का उपयोग धुआं रूपी जहर को और गाढ़ा कर रहा है। जो मानव जीवन के लिए खतरा बन रहा है। दिल्ली की बाद करें तो यहां सार्वजनिक वाहनों का खासा अभाव है।आंकड़ों पर नजर डालें तो दिल्ली में 11000 बसों की जरूरत है मगर अभी तक भी 6700 के करीब ही बसें सरकार के पास उपलब्ध हैं। इसमें भी डीटीसी की 3700 सीएनजी बसों में से 3000 बसें उम्र पार कर चुकी हैं। बसों की कमी के चलते सरकार ने इन्हें तीन साल और चलाने के लिए इजाजत दी है।

विशषज्ञों की मानें तो ये बसें नई बसों से प्रदूषण अधिक फैला रही हैं। मगर इन्हें न चलाने का सरकार के पास कोई उपाय नहीं है। इन बसों के चलाए जाने के बाद भी सार्वजनिक परिवहन के तहत बसों की कमी दूर नहीं हो पा रही है। यहां समस्या कोरोना संक्रमण के कारण बसों में खडे़ होकर अनुमति नहीं होने की भी है।ऐसे में तमाम लोग अपने वाहनों से चलने को मजबूर हैं। दिल्ली में इस समय एक करोड़ 18 लाख से अधिक वाहन दिल्ली के पंजीकृत मौजूद हैं। बहुत से वाहन एनसीआर क्षेत्र से भी दिल्ली में आते हैं, क्योंकि करीब डेढ़ साल पहले तक दिल्ली एनसीआर के बीच चलने वाली डीटीसी की सेवा बंद हो चुकी है। उस समय प्रतिदिन 300 से अधिक बसें एनसीआर क्षेत्र के लिए चलती थीं। एनसीआर के तमाम लोगों को इन बसों का इंतजार रहता था, मगर इन बसों के नहीं चलने से भी अब लोग निजी वाहनों का उपयोग कर रहे हैं।दिल्ली में 18 लाख के करीब ऐसे वाहन चल रहे हैं जिनके पास प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र तक नहीं है। इनमें 13 लाख दोपहिया और पांच लाख कारें शामिल हैं।

गौरतलब है कि पिछले माह परिवहन विभाग ने 13 लाख वाहन मालिकों को मोबाइल पर संदेश भेज कर प्रदूषण प्रमाणपत्र बनवाने की सलाह दी थी, मगर इसके बाद भी तमाम लोगों ने इसे नहीं बनवाया है। इसके अलावा प्रतिबंध के बाद भी दिल्ली में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहन चल रहे हैं, जो प्रदूषण का बड़ा कारण बन रहे हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली में बसें बढ़ाने के साथ साथ उन्हें व्यवस्थित करने की भी जरूरत है जिससे कि लोगों को पता हो कि किस बस स्टैंड पर किस रूट की कितने बजे बस आ रही है।लोग जब मेट्रो से उतरें तो उन्हें उनके घर तक जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन की सुविधा मिल सके। ऐसे माहौल में लोग अपने निजी वाहन त्याग कर सार्वजनिक वाहनों की ओर रुख करेंगे। 

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