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आधार नंबर न देने पर नहीं बनेगा वोटर ID कार्ड? जानिए नए बिल क्या हैं प्रावधान

Voter Card

क्या अब बिना आधार नंबर बताए मतदाता पहचान पत्र नहीं बन पाएगा। सोमवार को लोकसभा से पारित हुए चुनाव कानून संशोधन विधेयक, 2021 के प्रावधानों को लेकर इस तरह के सवाल उठ रहे हैं। इसे लेकर सरकार ने साफ है कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं होगा बल्कि वैकल्पिक होगा। सरकारी सूत्रों ने बताया कि आधार नंबर न देने की वजह से वोटर आईडी कार्ड के लिए आवेदन निरस्त नहीं होगा। यह वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि आधार लिंकिंग की सुविधा इसलिए दी जा रही है ताकि लोग अलग-अलग स्थानों पर मतदाता न रहें। उनकी बायोमीट्रिक डिटेल मिल जाएगी, जिससे वे एक ही स्थान पर वोटर रह सकेंगे। इसके अलावा वोटर लिस्ट में फर्जी नामों को शामिल करने जैसे कामों पर भी रोक लग सकेगी।

सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि ऐसा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि कई लोग अपना घर एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करने के बाद बिना अपना पूर्व इनरॉल डेटा दिये नये तरीके से वोटर आईडी के लिए इनरॉल करा लेते हैं। इससे इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि एक ही मतदाता एक से ज्यादा जगह से मतदाता सूची में शामिल हो जाते हैं। चुनाव कानून संशोधन विधेयक, 2021 में कई अहम बदलावों की बात कही गई है जिसकी मांग काफी लंबे समय से चल रही थी।

नये प्रावधानों के मुताबिक अब आधार और वोटर आईडी लिंक होने से चुनाव कानून संशोधन विधेयक 2021 के मतदाता सूची तैयार करने वाले अधिकारियों को अब आधार कार्ड मांगने का अधिकार होगा। दरअसल देश के चुनावों में फर्जी वोट डालने की शिकायत बहुत ज्यादा बढ़ने लगी है जिसके कारण मोदी सरकार आधार को वोटर आईडी से लिंक कराना चाह रही है। इसका मकसद फर्जी वोटिंग को रोकना है।

नये प्रावधान में क्या-क्या होगा

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को चुनाव सुधारों से जुड़े इस विधेयक के मसौदे को अपनी मंजूरी दी थी। इस विधेयक के मसौदे में कहा गया है कि मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदाता कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा। विधेयक के मुताबिक, चुनाव संबंधी कानून को सैन्य मतदाताओं के लिए लैंगिक निरपेक्ष बनाया जाएगा। वर्तमान चुनावी कानून के प्रावधानों के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है लेकिन महिला सैन्यकर्मी का पति इसका पात्र नहीं है। प्रस्तावित विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने पर स्थितियां बदल जाएंगी।

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क्या हैं उद्देश्य

इसके उद्दश्यों एवं कारणों के बारे में कहा गया है कि निर्वाचन सुधार एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है । केंद्र सरकार समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों से चुनाव सुधार करने के लिए प्रस्ताव हासिल कर रही है जिसमें भारत का निर्वाचन आयोग भी शामिल है। निर्वाचन आयोग के प्रस्तवों के आधार पर  लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950  और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के उपबंधों में संशोधन करने का प्रस्ताव है।  इसमें प्रस्ताव किया गया है कि एक ही व्यक्ति के विभिन्न स्थानों पर बहु नामांकन की बुराई को नियंत्रित करने के लिये आधार प्रणाली के साथ निर्वाचक नामावली डाटा को संबंद्ध करने  के उद्देश्य से लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950  की धारा 23 का संशोधन करें।

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आयोग ने सरकार से कही थी यह बात

इसके साथ ही इसमें निर्वाचक नामावलियों को तैयार करने या उनकी पुनरीक्षण करने के संबंध में कट आफ तारीखों के रूप में किसी कैलेंडर वर्ष में एक जनवरी, एक अप्रैल, एक जुलाई और एक अक्टूबर को शामिल करने के लिये लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 14 के खंड (ख) का संशोधन करने की बात कही गई है। निर्वाचन आयोग पात्र लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की अनुमति देने के लिए कई ‘कट ऑफ तारीख’ की वकालत करता रहा है। 

आयोग ने सरकार से कहा था कि एक जनवरी की ‘कट ऑफ तिथि’ के कारण मतदाता सूची की कवायद से अनेक युवा वंचित रह जाते हैं। केवल एक ‘कट ऑफ तिथि’ होने के कारण दो जनवरी या इसके बाद 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले व्यक्ति पंजीकरण नहीं करा पाते थे और उन्हें पंजीकरण कराने के लिए अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता था।

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