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Holi: छत्तीसगढ़ का हर्बल गुलाल बनाएगा काशी से पुरी और इंडोनेशिया से इटली तक अपनी पहचान, जानें क्या है खासियत

छत्तीसगढ़ के सांकरा डोम में बड़े पैमाने पर हर्बल गुलाल और अष्टगंध का उत्पादन हो रहा है. कुमकुम स्व-सहायता समूह की 60 महिला सदस्य जिन्हें दीदी कहकर पुकारा जाता है, इस काम में लगी हुई हैं.

Herbal Gulal News on Holi: छत्तीसगढ़ का हर्बल गुलाल अब काशी से पुरी और इंडोनेशिया से इटली तक अपनी पहचान बनाएगी. यह हर्बल गुलाल दुर्ग के कुमकुम स्व-सहायता समूह की महिलाएं बना रही है और इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. होली का पर्व नजदीक है और लोग एक-दूसरे को रंगने के लिए तरह-तरह के रंग-गुलाल जुटाने में लगे हुए है. दुर्ग के सांकरा में स्व-सहायता समूह की 60 महिलाएं तो बड़े पैमाने पर हर्बल गुलाल और अष्टगंध का उत्पादन के काम में लगी है.

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बड़े पैमाने पर हो रहा है हर्बल गुलाल और अष्टगंध
यहां के सांकरा की स्व-सहायता समूह की महिलाओं का उत्पाद इंडोनेशिया से इटली तक और देश में पुरी से काशी तक पहुंचने वाला हैं. यहां बड़े पैमाने पर हर्बल गुलाल और अष्टगंध का उत्पादन हो रहा है. कुमकुम स्व-सहायता समूह की 60 महिला सदस्य जिन्हें दीदी कहकर पुकारा जाता है, इस काम में लगी हुई हैं. यह कार्य सांकरा डोम में हो रहा है. इसके लिए मशीन गणेश ग्लोबल गुलाल फर्म नाम की कंपनी ने लगाई है.

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गणेश ग्लोबल गुलाल फर्म दे रही है सामग्री और मशीन
इस काम में लगी महिलाओं केा कंपनी ही अष्टगंध के लिए सामग्री प्रदान कर रही है और मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन का कार्य कंपनी है. वहीं महिलाओं को हर दिन 200 रुपए मानदेय के अलावा प्राफिट शेयरिंग भी की जाएगी. कलेक्टर डा. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने बताया कि सांकरा स्व-सहायता समूह में हम ऐसी गतिविधियों को जगह दे रहे हैं जहां बड़े पैमाने पर स्थायी रोजगार की संभावना बने. जिस फर्म को यहां काम सौंपा गया है ,वो ग्लोबल फर्म है और दुनिया भर के देशों में अपने उत्पादों का निर्यात करती है. मशीन भी कंपनी ने लगाई है. उन्होंने बताया कि बीते कुछ वर्षों में हर्बल गुलाल की मांग भी तेजी से बढ़ी है. यह खुशी की बात है कि हमारे समूह की महिलाएं इस दिशा में बढ़ी हैं और तेजी से काम कर रही हैं.

दक्षिण भारत, ओडिशा और काशी के धार्मिक स्थलों में होता है अष्टगंध का इस्तेमाल
जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अश्विनी देवांगन बताते है कि अष्टगंध का काफी उपयोग दक्षिण भारत, ओडिशा और काशी के धार्मिक स्थलों में होता है. फर्म को हमने जगह प्रदान की और फर्म ने हमारे लोगों को रोजगार दिया और प्राफिट में भी हिस्सा देगी. पाटन जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी मनीष साहू ने बताया कि गुलाल के उत्पादन के लिए मंदिरों से फूलों को चुना गया है. चार स्थानों मोहलई, कोनारी, सेलूद और नंदौरी में इसके लिए फूलों को सुखाया जा रहा है. सांकरा में इसकी प्रोसेसिंग होगी.

सांकरा में शुरू है उत्पादन
समूह की दिलेश्वरी ने बताती कि हम सब के लिए यह काम बहुत अच्छा है. हमारे लिए यह खुशी की बात है कि हमारा उत्पाद दुनिया भर में बिकेगा. बताया गया है कि बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन का कार्य सांकरा में शुरू हो गया है. अष्टगंध की लोकप्रियता दुनिया भर में है. दक्षिण में लोग त्रिपुंड लगाते हैं. दक्षिण पूर्वी एशिया में बाली जैसे द्वीपों तक हमारा प्रोडक्ट बिकता है क्योंकि यहां के मूल निवासी भी हिंदू धर्मावलंबी हैं और बड़े पैमाने पर भारतीय समुदाय के लोग इन देशों में बसे हैं. अष्टगंध का उपयोग विदेशों के मंदिरों में भी होता है. उल्लेखनीय है कि कौही, ठकुराइनटोला जैसे मंदिरों में बड़े पैमाने पर फूल चढ़ाये जाते हैं. इन सभी का अच्छा उपयोग हर्बल गुलाल के लिए हो रहा है.

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