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तमिलनाडु

प्राचीन शैव मठ के महंत की पालकी में शोभायात्रा पर लगी रोक, तमिलनाडु में जमकर बवाल

Madurai Adheenam palanquin row: मदुरै के धरमापुरम अधीनम को दक्षिण भारत में शैवों का सबसे प्राचीन मठ माना जाता है. यहां पट्टिना प्रवेशम नाम से एक परंपरा है, जिसमें मठ के महंत को पालकी में बिठाकर लोग कंधों पर शोभायात्रा के रूप में ले जाते हैं. इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताकर मयिलादुथुराई के रेवेन्यू अधिकारी ने रोक लगा दी है. मठ के महंत का कहना है कि धरमापुरम अधीनम का शैव सम्प्रदाय के लोगों के लिए वही महत्व है, जो कैथोलिक ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी का है. अफसर का आदेश धार्मिक मामलों में दखल है.

मदुरै. तमिलनाडु के मदुरै में एक अनोखा विवाद छिड़ गया है. एक शैव मठ के महंत को पालकी में बिठाकर कंधों पर ले जाने की परंपरा पर मयिलादुथुराई कलक्ट्रेट ने मानवाधिकारों का हवाला देकर रोक लगा दी है. इसके खिलाफ मठ के पदाधिकारी और अनुयायियों ने मोर्चा खोल दिया है और आदेश को दरकिनार करके पट्टिना प्रवेशम यात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है. उनका कहना है कि 500 साल पुरानी परंपरा को इस तरह बैन करने का किसी अधिकारी के पास अधिकार नहीं है. अंग्रेजों के जमाने में और आजादी के बाद भी किसी मुख्यमंत्री ने इस पर रोक नहीं लगाई थी. यह धार्मिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप है. अब मामले में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से दखल देने की मांग की गई है.

दक्षिण भारत में शैवों का सबसे प्राचीन मठ
यह विवाद मदुरै के पास मयिलादुथुराई जिले में स्थित धरमापुरम अधीनम के महंत की पालकी में शोभायात्रा को लेकर हो रहा है. मदुरै अधीनम को दक्षिण भारत में शैवों का सबसे प्राचीन मठ माना जाता है. ये मठ तमिलनाडु के मदुरै में मीनाक्षी अम्मन मंदिर के पास स्थित है, जो देश के सबसे महत्वपूर्ण शिवशक्ति मंदिरों में से एक है. इस मठ में पट्टिना प्रवेशम नाम से एक परंपरा है. इसमें धरमापुरम अधीनम के महंत को पालकी में बिठाकर लोग कंधों पर शोभायात्रा के रूप में ले जाते हैं. इस बार 22 मई को ये यात्रा निकलनी है.

मानवाधिकारों के खिलाफ बता लगाई रोक
द्रविड़ कझगम (Dravidar Kazhagam) के नेता और कुछ तर्कवादी लोग इस प्रथा का ये कहकर विरोध कर रहे हैं कि ये मानवाधिकारों के खिलाफ है. द्रविड़ कझगम के मयिलादुथुराई जिला सचिव के थलपतिराज का कहना है कि इंसानों द्वारा किसी इंसान को पालकी में ले जाना मानवाधिकारों का उल्लंघन है. उनके विरोध और उसकी वजह से कानून व्यवस्था की स्थिति का हवाला देकर मयिलादुथुराई जिले के रेवेन्यू ऑफिसर ने 27 अप्रैल को आदेश जारी करके महंत को पालकी में ले जाने पर रोक लगा दी. हालांकि कार्यक्रम के आयोजन पर पाबंदी नहीं लगाई गई है.

‘वेटिकन सिटी जितना महत्व है शैव मठ का’
रेवेन्यु अधिकारी के इस आदेश के खिलाफ मठ के पदाधिकारियों और अनुयायियों ने विरोध कर दिया है. मदुरै अधीनम श्रील श्री हरिहर श्री ज्ञानसंबंदा देसिका स्वामीगल के 293वें महंत ने मंगलवार को कहा कि धरमापुरम अधीनम का शैव सम्प्रदाय के लोगों के लिए वही महत्व है जो कैथोलिक ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी का है. मदुरै अधीनम ने कहा कि महंत को पालकी में ले जाना लोगों का अपने गुरु के प्रति सम्मान का प्रतीक है. वे स्वेच्छा से गुरु को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं. सरकार को इस प्राचीन शैव मठ की परंपरा का सम्मान करना चाहिए, ना कि विरोध.

सीएम स्टालिन से दखल की मांग
मदुरै अधीनम के महंत ज्ञानसंवदा दसीगर ने दावा किया ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रिटिश काल के दौरान और देश की आजादी के बाद सभी मुख्यमंत्रियों ने भी इसकी अनुमति दी थी. अब इसे मानवीय गरिमा के खिलाफ बताकर इस पर प्रतिबंध लगाना धार्मिक परंपराओं में हस्तक्षेप है. हम मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से आग्रह करते हैं कि वह खुद इस मामले में दखल दें और पट्टिना प्रवेशम कराएं.

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