Rupee hitting an all-time low: डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 17 मई 2022 को 77.69 के रिकॉर्ड लो तक पहुंच गया. हालांकि, घरेलू बाजारों में तेजी के दम पर आखिर में 7 पैसे की मजबूती लेकर 77.47 पर बंद हुआ.
Rupee hitting an all-time low: भारतीय रुपया आज (17 मई 2022) शुरुआती कारोबारी सेशन में ही अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया. रुपया 14 पैसे गिरकर 77.69 के लेवल पर पहुंच गया. इससे पहले मार्च में डॉलर के मुकाबले रुपये ने 76.98 का रिकॉर्ड लो बनाया था. हालांकि, घरेलू शेयर बाजारों में तेजी के दम पर सत्र के आखिर में 7 पैसे की मजबूती लेकर 77.47 पर बंद हुआ. रुपये में लगातार आ रही कमजोरी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि रुपये में गिरावट यानी अवमूल्यन का सीधा असर हमारे खर्च पर पड़ेगा. आयातित सामानों के साथ तेल आयात भी महंगा हो सकता है. वहीं, विदेशी निवेशक घरेलू इक्विटी मार्केट से दूरी बना सकते हैं. ऐसे में यह अहम सवाल है कि क्या रुपये में गिरावट से हमें चिंतित होने की जरूरत है? वहीं, रिजर्व बैंक पर भी नजर रहेगी कि वह रुपये को सपोर्ट देने के लिए क्या कदम उठाता है.
क्यों कमजोर हो रहा है रुपया?
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के फॉरेक्स एंड बुलियन एनॉलिस्ट गौरांग सोमैया का कहना है, डॉलर में आ रही मजबूती और ग्लोबल क्रूड कीमतों में तेजी के चलते रुपये में लगातार गिरावट है. पिछले हफ्ते घरेलू मोर्चे और अमेरिका में महंगाई के आंकड़ों ने बाजार का सेंटीमेंट और बिगाड़ दिया है. सोमैया का कहना है कि अमेरिकी डॉलर में अभी मजबूती बने रहने की उम्मीद है और यह 77.40 से 78.20 के रेंज में रह सकता है.
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इन्वेस्टमेंट कंसल्टिंग फर्म मिलवुड केन इंटरनेशनल के फाउंडर एंड सीईओ निश भट्ट का कहना है कि बीते एक साल में करीब 6 फीसदी कमजोर हो चुका है. यह अभी और टूट सकता है. डॉलर इंडेक्स में मजबूती और ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ में अनिश्चितता के चलते रुपये ने नया ऑल टाइम लो बनाया है.
उनका कहना है कि दुनियाभर से कमजोर आर्थिक आ रहे हैं. खासकर चीन ने डॉलर इंडेक्स पर दबाव बढ़ाया और यह ढाई साल के हाई पर पहुंच गया. घरेलू स्तर पर देखें तो निवेशक ज्यादा रिटर्न के लिए घरेलू बाजार से पैसा निकाल रहे हैं. अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो यह आउटफ्लो और बढ़ेगा. महंगाई के बढ़ने के चलते आरबीआई ब्याज दरें बढ़ाता है, तो भारतीय करंसी पर दबाव और बढ़ेगा.
बता दें, अमेरिका में मॉनिटरी पॉलिसी के सख्त होने की उम्मीद से भी रुपये पर असर पड़ा है. ऐसा इसलिए क्योंकि विकसित बाजारों में किसी भी तरह की ग्रोथ के चलते आमतौर पर इमर्जिंग मार्केट से फंड का आउटफ्लो होता है. हाई रिटर्न के लिए निवेशक पैसा निकालकर ज्यादा ब्याज दरों वाले मार्केट में पैसा लगाते हैं. वहीं, दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों की ओर से सामान्य नीति शुरू करने के बाद रुपये पर दबाव रहा है और पिछले हफ्ते आरबीआई ने भी प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा करना शुरू कर दिया था.
रुपये को संभालने के लिए RBI क्या करेगा?
सेबी रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजरी फर्म तेजी मंदी के फाउंडर वैभव अग्रवाल का कहना है, दुनिया अभी-अभी महामारी से बाहर आई है, हम पहले से ही महंगाई से जूझ रहे हैं और आरबीआई ने हाल ही में रेपो दरों में बढ़ोतरी कर दी है, जिससे सब कुछ अधिक महंगा हो गया है. महामारी के दौरान, यूएस फेड ने लोगों और अर्थव्यवस्था की मदद के लिए करेंसी की छपाई की थी. इस अमेरिकी पैसे ने भारतीय बाजारों में अपनी जगह बनाई. 2021 में विदेशी निवेश के जरिए लगभग 30 अरब डॉलर घरेलू बाजार में आए. अब, अमेरिका महंगाई को काबू करने के लिए उस लिक्विडिटी को खिंचने के लिए ब्याज दरें बढ़ा रहा है.
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अग्रवाल का कहना है, आरबीआई ने इस दौरान 640 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बना लिया. अगर रुपये में भारी गिरावट आती है, तो आरबीआई इनमें से कुछ भंडार बेचकर स्थिति को नियंत्रित कर सकता है. रुपये को सुरक्षित रखने के लिए आरबीआई ने स्पॉट मार्केट में कुछ डॉलर्स बेचे हैं. हालांकि, जब तक यूक्रेन-रूस युद्ध समाप्त नहीं हो जाता और चीन में कोविड-19 के मामले कम नहीं हो जाते, तब तक रुपये में उतार-चढ़ाव बना रहेगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि गिरते रुपये को बचाने के लिए आरबीआई कितना फॉरेक्स बेचेगा.
कमजोर रुपया आप पर कैसे डालेगा असर?
वैभव अग्रवाल का कहना है, रुपये के गिरावट का सीधा असर हमारे खर्च पर पड़ेगा. तेल समेत इम्पोर्ट होने वाले सभी सामान महंगे हो सकते हैं. रेपो रेट बढ़ने के बाद बैंक कर्ज महंगा करेंगे, जिससे लोन की EMI बढ़ जाएंगी. रुपये के कमजोर होने से कार, फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान महंगे हो जाएंगे. आखिर में इसका असर इक्विटी बाजार भी पड़ सकता है. विदेशी निवेशक घरेलू इक्विटी मार्केट से और दूरी बना सकते हैं.
अग्रवाल का कहना है, शांघाई में बढ़ते कोविड-19 मामलों ने येन और इमर्जिंग मार्केट्स को प्रभावित किया है, जिसमें भारत भी शामिल है. बाजारों ने चीनी सरकारों की ‘जीरो-कोविड पॉलिसी’ को ग्लोबल ग्रोथ के लिए एक बड़े जोखिम के रूप में देखा है. लॉकडाउन के प्रभाव को अप्रैल में चीन की एक्सपोर्ट ग्रोथ सिंगल डिजिट में सिमट गई थी. क्योंकि कोविड प्रतिबंधों के चलते कारखाने के उत्पादन ठप हो गया था. सप्लाई चेन बाधित थी और घरेलू मांग में गिरावट आ गई थी. पीपल्स बैंक ऑफ चाइना के किसी भी फैसले से सेंटीमेंट में सुधार होगा, जिससे भारतीय रुपये को भी मदद मिलेगी.