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लाइफस्टाइल

धरती पर खाने की सबसे शुद्ध चीज़ क्या है?

तली हुई कतला मछली के साथ घी चावल हो या फायाना भात जिसे चावल को उसके मांड़ के साथ पकाया जाता है और साथ में उबले आलू का भर्ता और उबले अंडे… या फिर हो खिचड़ी…. अपने कई बंगाली व्यंजनों में घी का तड़का लगाने वाले फ़ूड राइटर कल्याण कर्मकार कहते हैं कि उनके ये खाने घी के बिना अधूरे हैं.

हालांकि हमेशा ऐसा नहीं था.

“मैं उन लोगों में से हूं जो इस धारणा के साथ बड़े हुए कि घी स्वास्थ्य के नुकसानदायक है और (मैं) अब उसकी भरपाई कर रहा हूं.” वे ये जोड़ते हुए कहते हैं कि, “यह आज धरती पर मौजूद सबसे शुद्ध आहार है.”

हज़ारों वर्षों से घी इस उपमहाद्वीप के भोजन का एक अहम आहार रहा है लेकिन कुछ दशकों पहले यह थाली से बाहर होने लगा जब बड़े स्तर पर यह माना जाने लगा कि सैचुरेटेड फैट यानी संतृप्त वसा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. लेकिन हाल ही में, जैसे जैसे पूरी दुनिया में सैचुरेटेड फैट को लेकर सोच बदली है भारतीयों की थाली में भी इसकी अपने पुराने दिनों के अनुरूप ही वापसी हो रही है.

कर्मकार की घी में लौटी रुचि भारत में चल रहे अपनी ‘बुनियाद की ओर वापसी’ के उस आंदोलन का हिस्सा है जिसे वर्षों से बनाने की कोशिश चल रही थी लेकिन कोरोना महामारी के दौरान इसने तब ज़ोर पकड़ा जब लोग अपने खान पान को लेकर ज़्यादा सक्रिय और जागरूक होने लगे.

ये ‘स्लो फ़ूड’ अभियान के ट्रेंड का भी एक हिस्सा है.

इस अभियान के मूल तत्व को ध्यान में रखते हुए, घी का उत्पादन स्थानीय स्तर (यहां तक कि घर) पर भी किया जा सकता है और संस्कृति से इसका अटूट संबंध तो है ही.

गिर की गाय

गाय का घी

भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात के सूरत में एक डेयरी फर्म, घी उत्पादक और गिरऑर्गेनिक के सह-संस्थापक नितिन अहीर अधिक मात्रा में दूध देने वाली गायों की नस्लों जैसे जर्सी, होल्स्टीन और फिरिजियन की जगह गिर गायों के दूध का इस्तेमाल करते हैं. ये गायें काठियावाड़ प्रायद्वीप के गिर की पहाड़ियों और जंगलों में मूल नस्लें हैं.

वे अपनी गायों को खुले में चारा चरने देते हैं, साथ ही ये भी सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक गाय को दुहने से पहले उनके बछड़ों को सही अनुपात में उनका पहला हिस्सा मिले.

उनका ए2 घी अपने पोषण में बढ़िया माना जाता है जिसे बिलोना प्रक्रिया के तहत बनाया जाता है. अब घी निकालने की इस प्रक्रिया में दही मथने के लिए मोटर से जुड़ी मथनी का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे कम कीमत में बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाता है. हालांकि नितिन का कहना है कि कोरोना महामारी के शुरू होने के बाद से उनके घी की मांग में 25 से 30 फ़ीसद की वृद्धि हुई है.

मूल रूप से घी वो मक्खन है जो भारत जैसे गर्म जलवायु वाली जगह पर उसे (मक्खन को) ख़राब होने से बचाने के लिए इजाद किया गया रूप है. मथी गई क्रीम या मक्खन को धीमी आंच पर तब तक उबाला जाता है जब तक कि उससे हर तरह के ठोस पदार्थ निकल न जाएं. अंत में बहुमूल्य, सुगंधित, मेवे के स्वाद जैसी वसा बच जाती है. यही घी है.

हालांकि, भारतीय के लिए सीधे तौर पर वसा या फैट खाने की जगह घी का सेवन कहीं अधिक बेहतर माना जाता है. यह आस्था से भी जुड़ा है.

पूजा में घी

पूजा के लिए पवित्र, वेदों में भी वर्णन

लेखक और इतिहासकार पृथा सेन कहती हैं, “घी दूध का अंतिम और शुद्धतम रूप है. इसे पूजा के लिए सबसे पवित्र माना जाता है. कहा जाता है कि इससे पूजा करने पर आपकी प्रार्थना स्वर्ग तक पहुंचती है.”

यह हज़ारों सालों से इस्तेमाल किया जा रहा है.

भारतीय व्यंजनों की विशेषज्ञ और ‘फीस्ट ऐंड फास्ट्सः अ हिस्ट्री ऑफ़ फ़ूड इन इंडिया’ की लेखिका शिकागो की फूड इतिहासकार कोलीन टेलर सेन बताती हैं, “घी की प्रशंसा चार हज़ार साल पुराने ऋग वेद में भी की गई है.”

“पौराणिक कथाओं के मुताबिक पहली बार घी तब बना जब वैदिक काल के देवता प्रजापति दक्ष ने अपने दोनों हाथों को रगड़ कर पहली बार घी बनाया था और उसे उन्होंने अग्नि में डाल कर अपने बच्चों का सृजन किया था.”

घी का भारतीय संस्कृति से गहरा नाता है. पारंपरिक तौर पर हिंदू विवाह हो या अंतिम संस्कार या अन्य कोई समारोह, अग्नि में घी का समर्पण किया जाता है क्योंकि ऐसा करना शुभ माना जाता है.

भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में भी घी को रामबाण माना गया है. पौष्टिक गुणों की वजहों से इसे पीढ़ि दर पीढ़ि हमारे घरों में नानी-दादी और मांओं ने अपनाया है.

घी भारतीय व्यंजनों का अभिन्न अंग है

घर में बनाई गई घी पर ज़ोर

बॉंग मॉम्स कुकबुक की लेखिका अमेरिकी फूड लेखक संदीपा मुखर्जी दत्ता को जब अपने बच्चों के लिए एक वसा युक्त आहार चुनना था तो उन्हें घी को चुनते वक़्त नहीं लगा. वे कहती हैं, “इसमें वसा की गुणवत्ता हड्डियों को मजबूती और दिमाग को तंदरुस्ती देने के साथ विटामिन भी देता है.”

उनकी मां एक क़दम और भी आगे हैं, वो घर में बना घी इस्तेमाल करने पर ही ज़ोर देती हैं.

संदीपा बताती हैं, मेरी मां घर में बने घी को छोटे डिब्बे में रख कर सात समंदर पार आ रहे किसी भी व्यक्ति के हाथों मेरी बेटियों के लिए भेजा करती हैं. वो घी बहुत ही शुद्ध हैं, और उनका स्वाद स्वर्ग आया उपहार है.”

वे कहती हैं कि, “ओट्स जैसे आहारों के आने से पहले हर बंगाली घर में सुबह स्कूल जाने से पहले बच्चे को ये डिश खाने के ज़रूर मिलता था, ये है घी-आलू सिधो-भात (घी में सना आलू भात). तब के दिनों में मांओं का मानना था कि इसे खाने से उनके बच्चे को दिन भर के लिए ए अहम संतुलित आहार मिल गया है.”

हालांकि कुछ दशकों पहले जब सैचुरेटेड फैट को दावे के साथ स्वास्थ्य के हानिकारक बताया गया था तो इससे घी के इस्तेमाल पर काफ़ी असर पड़ा था. घी में 50-70 फ़ीसद सैचुरेटेड फैट है. उस दौरान कुछ दशकों तक इसका सेवन भारतीय घरों में बहुत कम हो गया था.

“80 के दशक में वनस्पति तेलों का खूब प्रचार प्रसार हुआ और घी खाने की थाली से बहुत हद तक गायब हो गया.”

“पश्चिमी और शहरी सभ्यताओं के आगमन के साथ ही लोगों ने इस पारंपरिक आहार को हेय दृष्टि से देखना शुरू कर दिया और अपनी थाली के व्यंजनों को वनस्पित तेलों में पकाना शुरू कर दिया.”

इस तरह समय के साथ-साथ खाने की थाली में रिफाइंड वेजिटेबल ऑयल न्यू नॉर्मल बन गया और घी अपवाद.

सेलिब्रिटी शेफ़, लेखक, रेस्टोरेंट के मालिक और मास्टरशेफ़ इंडिया के जज रणवीर बरार कहते हैं, “80 के दशक के बाद थाली से किस तरह (विलेन) सैचुरेटेड फैट को बाहर निकालना है, इस पर ही चर्चा होती रही. ख़ैरियत ये है कि अब वसा (फैट्स) और कोलेस्ट्रॉल को लेकर हमारी समझ बेहतर हुई है.”

हालांकि आज भी जानकार आपको अधिक वसा (फैट्स) वाले खानपान के ख़िलाफ़ ही अपनी सलाह देते हैं लेकिन उनमें से कुछ ने सैचुरेटेड फैट्स के ओवरऑल रिस्क (समग्र जोखिम) को लेकर अपना रुख़ नरम किया है.

साथ ही कीटो डायट के बढ़ते चलन ने अमेरिका जैसे देशों में भी घी को लोकप्रियता दी है.

हालांकि, पश्चिम के देश में घी को लेकर रुचि कुछ भूल हो सकती है. लेकिन मक्खन की तुलना में अधिक तापमान को सहने की इसकी क्षमता को लेकर इसके समर्थक इसकी प्रशंसा करने से नहीं चूकते हैं.

बरार के मुताबिक, “घी के साथ खाना पकाने का उद्देश्य अपने खाने को अधिक से अधिक तापमान पर पकाने का नहीं बल्कि अपने व्यंजन में इसके स्वाद का तड़का लगाने से है.”

वे कहते हैं, “इसके अलावा, भारत में घी का सेवन बहुत अधिक मात्रा में नहीं किया जाता है. बल्कि पारंपरिक रूप से इसे खाने में संतुलन, सामंजस्य और इसके स्वाद को आकर्षक बनाने के लिए मिलाया जाता है. यह खाने वाले के मुंह में जाने वाले हर कौर के साथ अपना स्वाद रचा बसा देता है.”

बरार कहते हैं, “इसका सबसे बेहतरीन इस्तेमाल दाल में करें, कोरमा में करें, जाड़े के दिनों में अपने सूप में करें. आप इसके स्वाद के इस कदर दीवाने हो जाएंगे कि ये आपके व्यंजन का बेहद अहम हिस्सा बन जाएगा.”

इंडियन ऐसेन्ट के पाक कला निदेशक सेफ़ मनीष मल्होत्रा कहते हैं कि ये उनके व्यंजनों का पिछले 22 साल से अहम हिस्सा रहा है. मल्होत्रा का एक सिग्नेचर डिश है घी में भुनी मटन बोटी. वे कहते हैं कि ये यहां की सबसे अधिक बिकने वाली डिश है.

मुंबई के एका रेस्टोरेंट की सेफ़ निकिता राव अपने हर व्यंजन को एक ख़ास तरीके से पकाती हैं, उनके सलाद हों या रेशम पट्टी चिली घी का तड़का उनके खाने को चार चांद लगा देता है. उनका कहना है कि सलाद में ये 10 फ़ीसद से भी कम मात्रा में होता है लेकिन लोगों को बहुत पसंद आ रहा है और भैंस के दूध से निकली घी ने उसे और भी जायकेदार बना दिया है.

अंत में बरार कहते हैं, “घी की समझ यानी भारतीय पहचान की समझ है. ये खानपान को लेकर वो दृष्टिकोण है जो सबको जोड़ता है, संपूर्ण है और संतुलित है. और जब घी की उसके सही मायने समझ होती है तो अच्छी चीज़ों का होना तय है.”

बरार के किचन में घी हमेशा उनके चूल्हे से बस एक हाथ की दूरी पर रखा होता है.

जैसा कि वे कहते हैं, मैं अपनी दादी की चुन्नी से लिपट कर और पूरे घर में घी की सुगंध के साथ बड़ा हुआ हूं. तो जब भी मैं घी को अपने व्यंजन से जोड़ता हूं तो ये केवल फैट (वसा) को शामिल करना नहीं होता है. मैं इसके साथ ही अपने खाने में अपना बचपन भी जोड़ता हूं.”

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