सरकार ने एलआईसी के आईपीओ के जरिए 21,000 हजार करोड़ रुपये जुटाए थे. यह भारत का सबसे बड़ा आईपीओ था लेकिन इसके बाजार में लिस्ट होते ही निवेशकों की शामत आ गई. ये शेयर अब अपने आईपीओ प्राइस से 290 रुपये से अधिक टूट चुका है.
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नई दिल्ली. सार्वजनिक क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनी एलआईसी ने 17 मई 2022 को भारत के सबसे बड़े आईपीओ के तमगे के साथ बाजार में कदम रखा था. इस आईपीओ का प्राइस 949 रुपये प्रति शेयर तय किया गया था. लिस्टिंग के जरिए सरकार आईपीओ से 21,000 हजार करोड़ रुपये जुटाना चाहती थी. किसी तरह आईपीओ से ये रकम जुटा ली गई लेकिन लिस्टिंग के बाद जो हुआ वह निवेशकों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है.
एलआईसी के आईपीओ ने एनएसई पर 872 रुपये और बीएसई पर 867.20 रुपये प्रति शेयर के साथ ट्रेडिंग शुरू की. यानी लिस्टिंग के साथ ही एलआईसी आईपीओ ने निवेशकों को हर शेयर पर करीब 80 रुपये का नुकसान कराया. इसके बाद उसी दिन ये शेयर एनएसई पर 860.10 रुपये तक लुढ़क गया. एलआईसी ने अब तक एनएसई पर 920 रुपये का शीर्ष स्तर छुआ है. सोमवार को बाजार खुलने के समय इसकी कीमत 656 रुपये के करीब है. एलआईसी अपने आईपीओ प्राइस से करीब 290 रुपये नीचे चल रहा है. इस शेयर ने इस साल निवेशकों का जमकर पैसा डुबाया है. एक्सपर्ट्स ने कुछ कारण बताए हैं जिसकी वजह से भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी के आईपीओ के साथ हुआ आइए उन्हें देखते हैं.
शेयर बाजार में औंधे मुंह क्यों गिरी एलआईसी
जीसीएल सिक्योरिटीज के सीईओ रवि सिंघल कहते हैं कि एलआईसी का वैल्युएशन उसके समकक्षों के मुकाबले कहीं अधिक था. उन्होंने कहा कि एलआईसी का मार्केट शेयर गिर रहा है और कंपनी अब भी ऑनलाइन की ओर नहीं बढ़ रही है. कंपनी का बिजनेस विस्तार काफी धीमा है. बकौल सिंघल, इन सब कारणों को देखते हुए यह कहना उचित रहेगा कि अभी इसे अपने आईपीओ प्राइस तक पहुंचने में भी समय लगेगा.
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वजहें और भी हैं
शेयर इंडिया के उपाध्यक्ष और रिसर्च हेड रवि सिंह ने भी एलआईसी आईपीओ के मुंह के बल गिरने के कारण गिनाए हैं. वह कहते हैं, “एलआईसी प्रीमियम कलेक्शन और बेची गई जीवन बीमा पॉलिसी के मामले में मार्केट लीडर है. हालांकि, निजी क्षेत्र की कंपनियों ने बहुत तेजी के साथ अपना विस्तार किया है. उन्होंने ऐसा अपने सहयोगी बैंकों की मदद से किया. मसलन, एचडीएफसी लाइफ ने एचडीएफसी बैंक के जरिए अपनी पॉलिसीज को लोगों में फैलाया और इसी तरह एसबीआई लाइफ ने एसबीआई के जरिए यह काम किया. वहीं, एलआईसी के पास इतने सारे सरकारी बैंकों तक पहुंच होते हुए भी कंपनी ने कुछ नहीं किया. आज इंश्योरेंस उद्योग का 50 फीसदी कंट्रीब्यूशन बैंकों से आता है जबकि एलआईसी अभी भी अपने एजेंट्स पर निर्भर है.” उन्होंने आगे कहा कि जब एलआईसी बाजार में लिस्ट हुई तो वैश्विक बाजारों की स्थिति बहुत खराब थी. रुस-यूक्रेन युद्ध, बढ़ती महंगाई, एफआईआई की तेजी से निकासी और गिरते भारतीय रुपये ने आईपीओ के खिलाफ माहौल तैयार कर दिया. बकौल रवि सिंह, इसके अलावा एलआईसी से पहले जिन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के आईपीओ आए उनका प्रदर्शन बहुत खराब रहा था. इसमें कोल इंडिया, जीआईसी और न्यू इंडिया इंश्योरेंस शामिल है. इन सभी कारणों ने एलआईसी के आईपीओ को विपरीत रूप से प्रभावित किया.