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Civil Services Exams: ‘प्रतियोगी परीक्षाओं का ओलम्पिक, IAS मतलब हजार में एक’

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Civil Services Exams : देश ही नहीं दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा क्रैक करने के लिए ‘क्वीक फीक्स‘ की थ्योरी काम नहीं करती.

डॉ०विजय अग्रवाल
क्या आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने की जहमत उठायेंगे कि आपने आई.ए.एस बनने का सपना देखा है या आईएएस बनने का निश्चय किया है. आपको शायद इन दोनों में कोई फर्क मालूम न दे रहा हो, लेकिन मनोवैज्ञानिक स्तर पर इनमें बहुत बड़ा अंतर है और यह अंतर इस बात का फैसला करने में एक महत्वपूर्ण रोल निभाता है कि ‘आपके साथ क्या होने वाला है.’ यदि मैं यही सवाल मेरे सामने उपस्थित सौ युवाओं से करूं, तो उनमें से एक-दो को छोड़कर शेष सभी के उत्तर ‘सपना देखने‘ वाले होंगे. यह एक-दो प्रतिशत ही हुआ, जो काफी अधिक है, क्योंकि आईएएस में चयन का प्रतिशत 0.1 प्रतिशत ही है, यानी कि हजार में एक.आइये, इसके विज्ञान को समझते हैं.

मुझे यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि यह परीक्षा देश की ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है. इसे आप ‘प्रतियोगी परीक्षाओं का ओलम्पिक’ कह सकते हैं. यह बिल्कुल सीधी-सपाट गणना है कि यदि इस कठिन पहाड़ को पार करना है. इस कठिन यात्रा को पूरी करनी है, तो उसके लिए कठिन मेहनत तो करनी ही पड़ेगी और इस कठिन मेहनत का सीधा संबंध ‘समय की लम्बाई‘ से होता है यानी कि लम्बा समय देना होगा. यहां ‘क्वीक फीक्स‘ की थ्योरी काम नहीं करेगी, किसी भी हालत में काम नहीं करेगी.तो यहां रूपक कुछ ऐसा बन रहा है कि आपके कंधे पर रखा हुआ बोझ काफी भारी है; इतना भारी कि जिसे समान्य युवा तो देखकर ही डर जाये और यात्रा भी लम्बी है. अब इन दोनों को आपस में जोड़कर अपने दिमाग में अपनी एक तस्वीर तैयार कीजिए. फिर इस योजना पर विचार कीजिये कि ”मैं इस भारी-भरकम बोझ को उठाकर इतनी लम्बी दूरी कैसे तय कर पाऊंगा.”

इस सत्य को कर लें आत्मसात

बोझ हल्का हो, भले ही दूरी लम्बी हो, तो चलेगा. बोझ भारी हो, लेकिन यदि दूरी छोटी हो, तो भी चल जायेगा लेकिन बोझ अधिक और दूरी लम्बी में यह ‘चलेगा‘ वाला फार्मुला बिल्कुल भी नहीं चलेगा. मैं अपने इसी वाक्य को दुहराना चाहूंगा कि ‘यहां चलेगा‘ वाला फार्मुला बिल्कुल भी नहीं चलेगा. इस सत्य को आत्मसात कर लें, और अपने दिमाग में धारण भी कर लें. जाहिर है कि ऐसे में आप सवाल करेंगे कि ‘तो मैं क्या करू, क्योंकि मंजिल पर तो मुझे पहुंचना ही है.‘ आपके इस सौ टके के प्रश्न का खरा-खरा जवाब है, ‘सहजता के सिद्धात‘ के द्वारा. आप अपनी निर्धारित गति से चल रहे हैं. आपने वजन भी उठाया हुआ है लेकिन आपको इस वजन का एहसास नहीं है और यदि एहसास है भी, तो इतना ज्यादा नहीं है कि वह एहसास आपको डरा दे, आपको बिना चले ही थका दे.

सिविल सर्वेंट बनने के लिए चेतन से अवचेतन तक पहुंचना होगा

अब मैं आता हूं उस फार्मूले पर कि ऐसा कैसे संभव है? जब हम बोझ उठाते हैं, तब हमारी चेतना अच्छी तरह जानती है कि ‘मैंने इतना बोझ उठा रखा है.’ लेकिन जब मैं इसी बात को आपके सब कान्शस माइंड तक पहुंचा देता हूं, तो आपका मन उसके बारे में कमजोर पड़ जाता है. आपका मन इस सूचना को अवचेतन माइंड के जिम्मे सौंपकर किसी दूसरे काम में लग जाता है. जैसे ही कोई सूचना चेतना से गायब होती है, हमारे ऊपर उस सूचना का पड़ने वाला प्रभाव भी गायब हो जाता है. इसका अर्थ यह हुआ कि सिविल सर्वेंट बनने का आपका उद्देश्य आपकी चेतना से उतरकर अवचेतन तक पहुंचना चाहिए.

जैसे ही यह होगा, आईएएस की तैयारी करना आपके लिए बोझ लगना बंद हो जायेगा. आपको यह अपने अनुकूल लगने लगेगा. घंटों और महीनों की तैयारी की लम्बी यात्रा करने के बावजूद आप थकान का अनुभव नहीं करेंगे, बल्कि आपको यह यात्रा सुहावनी लगने लगेगी. मुझे लगता है कि इतनी कठिन परीक्षा की वैतरणी को इसी तरह पार किया जा सकता है जिन्होंने इस परीक्षा को क्रेक किया है, वे अपनी मानसिकता को कमोवेश इसी स्तर पर ले जाते हैं.

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