दिसंबर का महीना सिर्फ सर्दियों के लिए ही नहीं मशहूर है। यह वह समय है जब पाकिस्तान का वह जख्म हरा हो जाता है जो 51 साल पहले भारत ने उसे दिया था। जंग में मुंह की खाई सो अलग और दुनिया के सामने बेइज्जती कराई, सो अलग। जब-जब भारतीय नौसेना चार दिसंबर का जश्न मनाती है तो पाकिस्तान दर्द से कराह उठता है। कराची बंदरगाह पर भारत की नौसेना पाकिस्तान को पटखनी देने में लगी थी तो विशाखापट्टनम में हुई एक घटना ने उसके दांत खट्टे कर दिए थे। अमेरिका से आई पनडुब्बी जिसे पाकिस्तानी नौसेना गाजी नाम दिया था, वह भारतीय सीमा में आकर डूब गई थी। 90 नौसैनिकों को लेकर डूबी गाजी नौसेना की वह शौर्य गाथा है जिसके बारे में पाकिस्तान के घर में शायद ही कभी कोई बात होती होगी। जानिए आखिर कैसे पाकिस्तान की शान चंद घंटों में ही शर्म की सबसे बड़ी वजह में तब्दील हो गई थी।
नाकाबंदी से नाराज पाकिस्तान
बंगाल की खाड़ी में पूर्वी पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए भारतीय नौसेना ने नाकाबंदी कर रखी थी। यह नाकाबंदी भारतीय नौसेना की पूर्वी कमान की अगुवाई में हुई थी और वॉरशिप आईएनएस विक्रांत को तैनात किया गया था। इस नाकाबंदी से पाकिस्तान का खून खौल उठा और उसने अपनी सर्वश्रेष्ठ पनडुब्बी आईएनएस गाजी को भेजने का फैसला किया।
तीन दिसंबर 1971 को पीएनएस गाजी विशाखापट्टनम बंदरगाह पर पहुंची और जोरदार ब्लास्ट के साथ अपने आने की खबर दी। यह ब्लास्ट इतना जोरदार था कि आसपास की बिल्डिंग्स के शीशे टूट गए थे। लोग भूकंप की दहशत से घरों से बाहर आ गए थे। इंडियन आर्मी के रिटायर्ड ले. जनरल जेएफआर जैकब ने अपनी किताब ‘सरेंडर एट ढाका’ लिखा था कि चार दिसंबर को वाइस एडमिरल कृष्णन ने फोन पर उन्हें बताया था कि कुछ मछुआरों को गाजी के अवशेष मिले हैं।’ एडमिरल कृष्णन उस समय पूर्वी नौसेना कमान के मुखिया थे।
गाजी के दो मकसद
विक्रांत को डूबोने के लिए ही पाकिस्तान ने गाजी को भेजा था। गाजी असल में एक अमेरिकी पनडुब्बी थी और इसका नाम यूएसएस डियाबलो था। साल 1963 में पाकिस्तान को यह अमेरिका ने दी थी। गाजी दो मकसद के साथ भारत भेजी गई थी। पहला विक्रांत को डूबोना और दूसरा भारत के पूर्वी तट पर लैंडमाइंस बिछाना था। गाजी के बिना पाकिस्तान की नौसेना पूर्वी पाकिस्तान में इंडियन नेवी के ऑपरेशंस को प्रभावित नहीं कर सकती थी। खुद उसके लिए भी गाजी को भेजना एक खतरनाक फैसला था। यह एक पुरानी पनडुब्बी थी और ऐसे में दुश्मन की जमीन पर इसको भेजने का फैसला कई लोगों को राज नहीं आ हा था। इसके अलावा गाजी लगातार उपकरणों की असफलता से जुड़े मसलों का सामना कर रही थी और चिंटगांव में इसका प्रबंधन बड़े ही खराब तरीके से हो रहा था। पीएनएस गाजी इसके बाद भी चुपचाप कराची बंदरगाह से 14 नवंबर 1971 को रवाना कर दी गई थी।
पुराने जहाज ने की मदद
वाइस एडमिरल कृष्णन ने आईएनएस राजपूत के साथ गाजी को तबाह करने के मिशन तैयार किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि आईएनएस राजपूत भी पुराना हो चुका था और यह रिटायर होने के लिए विशाखापट्टनम आया था। आईएनएस राजपूत ने खुद को विक्रांत के तौर पर दुश्मन के सामने पेश किया और हैवी वायरलेस ट्रैफिक इससे पैदा हुआ। भारतीय नौसेना ने जान-बूझकर एक प्राइवेट टेलीग्राम के तौर पर अनक्लासीफाइड सिग्नल भेजा था और सुरक्षा घेरा तोड़ा था। यह टेलीग्राम विक्रांत पर तैनात एक नौसैनिक की तरफ से था जिसमें यह पूछा गया था कि उनकी मां का स्वास्थ्य अब कैसा है। 23 नवंबर को गाजी, विक्रांत को तलाश करने लगी थी। चेन्नई जो उस समय मद्रास था, वहां से गाजी निकली और 10 दिन बाद देरी से पहुंची।
राजपूत के कैप्टन को मिले आदेश
वाइस एडमिरल कृष्णन ने ले. कमांडर इंदर सिंह से मुलाकात की जो आईएनएस राजपूत के कमांडिंग ऑफिसर थे। ले. कमांडर इंदर सिंह को सारी जानकारी से अवगत कराया गया। उन्हें बताया गया कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी सिलोन में देखी गई है और इस बात की पूरी आशंका है कि वह या तो विशाखापट्टनम या फिर चेन्नई पहुंचेगी। कृष्णन ने यह बात स्पष्ट कर दी थी कि राजपूत को जब ईधन से लैस कर दिया जाएगा तो उसे बंदरगाह से जाना होगा और दिशानिर्देशों से जुड़ी सभी मदद को बंद करना होगा। उन्होंने कैप्टन को आदेश दिया था कि वह विक्रांत के ही कॉल साइन और सिग्नल का प्रयोग करेंगे।
विक्रांत पहुंचा अंडमान
जबकि आईएनएस विक्रांत को अंडमान द्वीप के करीब कहीं भेज दिया गया था। दो दिसंबर को आईएनएस राजपूत रवाना हुआ और तीन दिसंबर को वह एक पायलट के साथ फिर से सेलिंग पर निकला। इसी समय यानी तीन और चार दिसंबर की आधी रात को बंदरगाह से ऑल क्लीयर कर राजपूत रवाना हुआ, कैप्टन के दिमाग में एक ख्याल आया। उन्होंने सोचा कि अगर पाकिस्तान की पनडुब्बी बंदरगाह के बाहर होगी और अगर टॉरपीडोज को उतार दिया गया तो क्या होगा? इस ख्याल के बाद ही राजपूत के इंजन बंद करा दिए। इन सबके बीच ही गाजी आईएनएस विक्रांत को तलाश करने में लगी थी।
विशाखापट्टनम के करीब लैंडमाइंस लगाने का काम हो चुका था। गाजी ने खुद को ऐसी पोजिशन पर रखा था कि उसका पता नहीं लग पा रहा था। ब्लैकआउट की वजह से और सभी नेविगेशन ऑफ होने की वजह से हालात और मुश्किल हो गए थे। आईएनएस राजपूत ने धीरे से अपनी रफ्तार बढ़ाई और बाहरी हिस्से में आ गया। इसी पल गाजी को हाई स्पीड वाले विध्वंसक का पता लगा गया था। वह और गहरे पानी में चली गई।
और डूब गई पनडुब्बी गाजी
आईएनएस राजपूत के कैप्टन ने देखा कि जिस समय गाजी गहरे पानी में गई है, उसी समय पानी की एक जोरदार लहर ऊपर की तरफ उठी थी। गाजी एकदम समंदर की तली में जा गिरी थी। इसमें आग लग गई और जहां पर लैंडमाइंस बिछी थीं और टॉरपीडोज थे, उनमें ब्लास्ट हो गया था। भारतीय नौसेना ने कहा था कि पनडुब्बी को विध्वंसक आईएनएस राजपूत ने डूबो दिया है। वहीं पाकिस्तान की नौसेना दावा करती है कि उसकी पनडुब्बी आतंरिक विस्फोट के चलते डूबी थी। हालांकि कुछ लोग यह भी मानते हैं कि हाइड्रोजन गैस की अधिकता की वजह से भी हादसा हो गया था।
आज भी मौजूद है गाजी का रहस्य
आज भी विशाखापट्टनम के समंदर में गाजी का रहस्य दबा हुआ है। बंदरगाह से करीब 1.5 मील यानी 2 किलोमीटर से कुछ दूरी पर यह पनडुब्बी मौजूद है। इस जगह को नेविगेशनल मानचित्र पर चिन्हित किया गया है ताकि दूसरे जहाज इसके मलबे से न टकराने पाएं। साल 2003 में भारतीय नौसेना की पूर्वी कमान ने इस पनडुब्बी के मलबे की जांच की और अंडरवॉटर कैमरे से ली गई तस्वीरों को भी परखा गया। गाजी का मलबा बंदरगाह के बैकवॉटर के 17 डिग्री पर मौजूद है। 10 गोताखोरों की एक टीम को 10 दिसंबर 2003 को मलबे का परीक्षण करने के लिए तैनात किया गया था। उन्हें इस पनडुब्बी का अगला हिस्सा पानी में मिला था।