All for Joomla All for Webmasters
गुजरात

गोधरा कांड के दोषी को 17 साल बाद SC ने दी जमानत, लोग ट्रेन से उतर न सकें इसलिए की थी पत्थरबाजी

फारूक समेत कई अन्य लोगों को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के कोच पर पथराव करने का दोषी ठहराया गया था. आमतौर पर पथराव मामूली प्रकृति का अपराध माना जाता है, लेकिन उक्त मामले में ट्रेन के कोच को अलग किया गया था और यह सुनिश्चित करने के लिए उस पर पथराव किया गया था कि यात्री बाहर न आ सकें.

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2002 में गोधरा में ट्रेन कोच को जलाने के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे एक दोषी को गुरुवार को यह कहते हुए जमानत दे दी कि वह पिछले 17 वर्षों से जेल में है. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने दोषी फारूक की तरफ से पेश वकील की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि जेल में अब तक बिताई गई अवधि को ध्यान में रखते हुए उसे (फारूक को) जमानत दी जानी चाहिए. शीर्ष अदालत में मामले के कई दोषियों की दोषसिद्धि के खिलाफ दायर याचिकाएं विचाराधीन हैं.

गुजरात सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह ‘सबसे जघन्य अपराध था’, जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत 59 लोगों को जिंदा जला दिया गया था और दोषियों की याचिकाओं पर जल्द से जल्द सुनवाई किए जाने की जरूरत है. फारूक समेत कई अन्य लोगों को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के कोच पर पथराव करने का दोषी ठहराया गया था. मेहता ने कहा कि आमतौर पर पथराव मामूली प्रकृति का अपराध माना जाता है, लेकिन उक्त मामले में ट्रेन के कोच को अलग किया गया था और यह सुनिश्चित करने के लिए उस पर पथराव किया गया था कि यात्री बाहर न आ सकें.

पिछली सुनवाई में भी गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दोषियों की जमानत का विरोध किया था. तुषार मेहता ने इस अग्निकांड में पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताया था, क्योंकि उनकी वजह से ही जलती ट्रेन से यात्री बाहर नहीं निकल पाए और जल कर मारे गए.  पत्थरबाजों की मंशा यह थी कि साबरमती एक्सप्रेस की जलती बोगी से कोई यात्री बाहर न निकल सकेऔर बाहर से कोई शख्स उन्हें बचाने के लिए अंदर न जा सके. उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा, दमकल कर्मियों पर भी पत्थर फेंके गए थे. बता दें कि 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एस-6 कोच में आग लगा दी गई थी.

इस ट्रेन अग्निकांड में  59 यात्रियों की मौत हो गई थी. इसके बाद राज्यभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस जघन्य अपराध में शामिल सभी दोषियों में से कई पत्थरबाज भी थे. वे जेल में लंबा समय काट चुके हैं. लिहाजा ऐसे में कुछ को जमानत पर छोड़ा जा सकता है. गुजरात सरकार का पक्ष रख रहे तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को आश्वस्त किया था कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे. सरकार ये भी देखेगी कि इस परिस्थिति में क्या कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से 15 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा था.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top