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दिल्ली/एनसीआर

Jhandewalan: दिल्ली में यहां खुदाई में मिली माता की मूर्ति! साथ में थी यह चीज; कहानी पढ़कर आप भी हो जाएंगे हैरान

Name story of Jhandewalan: दिलवालों के शहर दिल्ली में यूं तो कई ऐसी जगह और इलाकें है जो देश ही नहीं दुनिया भर में मशहूर हैं, उसी में से एक झंडेवालान जहां के नामकरण की ये कहानी आपको आस्था के एक ऐसे चमत्कार के बारे में बताएगी, जिसे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. 

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History of Jhandewalan: किसी व्यक्ति या स्थान का नाम रखने के पीछे गहरा मनोविज्ञान होता है. नामकरण के जरिए किसी वस्तु, स्थान या व्यक्ति की एक पहचान होती है. नाम का बड़ा प्रभाव होता है. कई बार घटनाओं के आधार पर भी लोग बच्चों या किसी का नामकरण कर देते हैं. ऐसे में बात दिल्ली के एक ऐसे इलाके की जिसका नाम झंडेवालान पड़ गया. 

झंडेवालान का इतिहास

झंडेवालान नाम के पीछे सदियों पुराना इतिहास है. आज हम इसके नामकरण की कहानी आपको बता रहे हैं. झंडेवाला या झंडेवालान का इतिहास 18वीं सदी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता है. आज जिस जगह पर ये इलाका है वहां पहले अरावली पर्वत श्रंखला की हरी भरी पहाडियां, घना जंगल और कलकल करते बहते झरने थे. ये इलाका अनेक जीव-जंतुओं यानी पशु-पक्षियों का बसेरा था. इस शांत और बेहद रमणीय स्थल पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे.

ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक प्रसिद्ध कपडा व्यपारी बद्री दास भी थे. वो बेहद धार्मिक व्यक्ति थे और वैष्णो देवी के अनन्य भक्त थे. वे नियमित रूप से इस पहाडी स्थान पर सैर करने आते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे. उन्हीं बद्री दास जी के जीवन में मातारानी की कृपा से एक दिन ऐसा आया कि इस इलाके का नाम झंडेवालान पड़ गया जहां हर साल करोड़ों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने की आस में आते हैं.

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कैसे नाम पड़ा झंडेवालान?

एक बार जब बद्री दास यहां ध्यान कर रहे थे तभी उन्हें इसी पहाड़ी में एक मंदिर होने का आभास हुआ. जिसके बाद उन्होंने इस जमीन को खरीद लिया और यहां खुदाई का काम शुरू करवाया. जब इस जगह पर खुदाई शुरू हुई तो यहां एक प्राचीन मंदिर के शिखर का झंडा मिला. आगे और खुदाई की गई तो कुछ दूर पर माता की मूर्ति मिली. खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए इसलिए उन्होंने खुदाई में प्राप्त मूर्ति के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया. गुफा वाली देवी जी के खंडित हाथों के स्थान पर चांदी के हाथ लगाये गये और इस मूर्ति की पूजा भी पूर्ण विधि विधान से की जाने लगी.

वहीं खंडित हुई मूर्ति के ऊपर देवी की एक नयी प्रतिमा स्थापित कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करवायी. इस शुभ अवसर पर मंदिर के ऊपर एक बहुत बडा ध्वज लगाया गया जो पहाडी पर स्थित होने के कारण दूर-दूर तक दिखाई देता था जिसके कारण कालान्तर में यह मंदिर झंडेवाला मंदिर के नाम से विख्यात हो गया. यहां लाखों भक्त आने लगे. मंदिर के पूजा पाठ के लिए लोग यहां रहने लगे. इस तरह माता के मंदिर के नाम पर इस इलाके का नाम झंडेवालान पड़ गया.

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झंडेवालान की विकास यात्रा

बद्री दास जी आगे चलकर बद्री भगत के नाम से मशहूर हुए. जिनके नाम पर आज इस मंदिर का संचालन ‘बद्री भगत झंडेवालान सोसायटी’ (Badri Bhagat Jhandewala) करती है. भगत बद्री दास जी के स्वर्गवास के पश्चात उनके सुपुत्र श्रीरामजी दास और फिर पौत्र श्री श्याम सुंदर जी ने मंदिर के दायित्व को संभाला और अनेक विकास कार्य इस स्थान पर करवाये. श्री श्याम सुंदर ने 1944 में मंदिर की व्यवस्थाओं और इससे जुडे कार्यक्रमों को सुंदर ढंग से चलाए रखने के लिए एक सोसायटी का गठन कर उसे विधिवत कानूनी स्वरूप प्रदान किया और सोसायटी का नाम बद्री भगत झंडेवाला टेम्पल सोसायटी रखा गया. 

कैसे पहुंचे झंडेवालान?

झंडेवालान माता का मंदिर एक सिद्ध पीठ है. ऐसे में अगर आप दिल्ली में हैं तो एक बार झंडेवालान जा सकते हैं. झंडेवालान जाने के लिए सबसे बढ़िया ऑप्शन दिल्ली मेट्रो है. यहां झंडेवालान मेट्रो स्टेशन है. जहां से बस थोड़ा सा पैदल चलकर आप इस मंदिर में पहुंच सकते हैं. आप DTC बस या ऑटो से झंडेवालान पहुंच सकते हैं. यहां दिल्ली की मशहूर साइकिल मार्केट भी है, जहां आप बच्चों के खेलने कूदने के लिए ढेर सारे प्रोडक्ट खरीद सकते हैं.

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