Lord Vishnu: समुद्र मंथन में निकले अमृत को धोखे से राहु ने प्राप्त कर लिया तो विष्णु जी ने तुरंत ही अपने चक्र से उसका सिर काट डाला. इस घटना के साथ ही विष्णु जी ने अपना मोहिनी रूप त्याग दिया और तरह-तरह के भयावह अस्त्रों से असुरों को डराने लगे.
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Lord Vishnu Beheaded Rahu: समुद्र मंथन में निकले अमृत को धोखे से राहु दानव ने भी देवताओं की लाइन में बैठ कर प्राप्त कर लिया और वह अमृत उसके गले तक ही पहुंचा ता कि चंद्रमा और सूर्य ने मन मोहिनी महिला का रूप धारण किए विष्णु जी को बता दिया. विष्णु जी ने तुरंत ही अपने चक्र से उसका सिर काट डाला तो सिर आकाश में उड़कर गरजने लगा और उसका भारी भरकम धड़ जमीन पर गिरकर तड़पने लगा. इस घटना के साथ ही विष्णु जी ने अपना मोहिनी रूप त्याग दिया और तरह-तरह के भयावने अस्त्रों से असुरों को डराने लगे.
इस पर वहीं समुद्र तट पर देवताओं और असुरों के बीच भयंकर संग्राम छिड़ गया. दोनों ही तरफ से तरह-तरह के अस्त्र और शस्त्रों का इस्तेमाल होने लगा. भगवान विष्णु भी तेजी से चक्र चला रहे थे, जिसके प्रभाव से असुरों का अंग भंग या फिर मृत्यु होने लगी. चक्र के प्रभाव में आते ही वह अंग उनके शरीर से अलग हो जाता और खून की धारा फूट पड़ती. कुछ असुर देवताओं की तलवार से घायल होकर जमीन पर तड़पने लगे. पूरा समुद्र तट लाल हो गया और खून बहते हुए समुद्र की तरफ जाने लगा. असुर और देवता एक तरह से एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए. चारों तरफ बस मार-काट की आवाज सुनायी पड़ रही थी.
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इस भयंकर युद्ध में भगवान विष्णु नर और नारायण की भूमिका में युद्धभूमि में दिख रहे थे. नर का दिव्य धनुष देख कर नारायण ने अपने चक्र का स्मरण किया और उसी समय सूर्य के समान चमकता हुआ गोलाकार चक्र आकाश मार्ग से होते हुए उपस्थित हुआ. भगवान नारायण के चलाने पर चक्र शत्रु दल में घूम-घूमकर सैकड़ों असुरों का एक साथ संहार करने लगा. असुर भी आकाश में उड़कर पर्वतों के बड़े टुकड़ों को देवताओं पर फेंककर घायल करने लगे, लेकिन कुछ ही देर में देवता भारी पड़ने लगे तो असुर भाग कर समुद्र और पृथ्वी में छिप गए. मंदराचल पर्वत को अपने स्थान पर पहुंचा दिया गया. देवताओं और इंद्र ने सुरक्षित रखने के लिए भगवान नर को अमृत कलश सौंप दिया.