वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को रिकॉर्ड आठवां बजट पेश करेंगी। मुख्य फोकस खपत व रोजगार बढ़ाने के साथ 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने पर होगा। यह बजट तय करेगा कि दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली जीडीपी किस दिशा में जाएगी। बुनियादी ढांचे पर खर्च जारी रहने की संभावना है। गरीब, युवा, अन्नदाता और नारी…चारों के लिए भी कई घोषणाएं हो सकती हैं।
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वैश्विक और घरेलू अनिश्चितताओं के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी यानी शनिवार को वित्त वर्ष 2025-26 का बजट पेश करेंगी। आर्थिकी के आंकड़ों के लिहाज इसे नरेंद्र मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल का सबसे कठिन बजट माना जा रहा है। इसकी कई वजहें हैं। महंगाई और खासकर उच्च खाद्य महंगाई ने परिवारों की बचत को प्रभावित किया है। रुपया लगातार टूट रहा है। कंपनियों के नतीजे उम्मीद के अनुरूप नहीं रहे। विदेशी निवेशक घरेलू शेयर बाजारों से लगातार पैसे निकाल रहे हैं। खपत की रफ्तार कई तिमाहियों से धीमी पड़ी है, जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था की रफ्तार घटकर करीब दो साल के निचले स्तर पर 5.4 फीसदी पर आ गई। इसके साथ ही, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रूप में देश के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है, जिसने आयात पर टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है।
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केंद्रीय बजट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-
- स्वतंत्र भारत का पहला आम बजट 26 नवंबर, 1947 को पहले वित्त मंत्री आरके शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था।
- मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और बाद में पीएम लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में वित्त मंत्री के तौर पर कुल 10 बार बजट पेश किए हैं।
आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौतियां-
- महंगाई बढ़ी है, रुपये में लगातार गिरावट, पैसे निकाल रहे हैं विदेशी निवेशक
- 6.6% रही बेरोजगारी दर जुलाई-सितंबर अवधि में राजकोषीय घाटे को 4.5% से नीचे लाने का है लक्ष्य
- 6.4% रह सकती है वृद्धि दर 2024-25 में, जो 4 साल में सबसे कम
अर्थशास्त्री डॉ. शरद कोहली का कहना है कि दुनिया के चमकते सितारे भारत की जीडीपी की रफ्तार धीमी हो गई है, जिसे लेकर वित्त मंत्रालय चिंतित है। राजकोषीय संयम छोड़े बिना इस चिंता को दूर करने का महत्वपूर्ण उपाय है…खपत बढ़ाना। खपत बढ़ाने के लिए लोगों की जेब में पैसा डालना होगा। रोजगार भी बढ़ाना होगा। इसका सबसे अच्छा तरीका है…आयकरदाताओं को टैक्स में राहत दी जाए। टैक्स बचत से उनकी जेब में पैसा आएगा और वे आगे अधिक खर्च करेंगे। इससे न सिर्फ दुकानदारी चलेगी, बल्कि उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी और फैक्टरियां चलेंगी, तो लोगों को रोजगार मिलेगा, जिसका सकारात्मक असर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में देखने को मिलेगा।
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आयकर: 30 फीसदी स्लैब का बढ़ सकता है दायरा
नई कर व्यवस्था मोदी सरकार के दिल के करीब है। खपत बढ़ाने के लिए इस व्यवस्था को लुभावना बनाया जा सकता है। इसके लिए सरकार टैक्स स्लैब में संशोधन कर सकती है। बेसिक एग्जंप्शन लिमिट को बढ़ाकर 5 लाख रुपये तक किया जा सकता है। इससे 75,000 रुपये स्टैंडर्ड डिडक्शन और 87ए के तहत 25,000 रुपये तक की छूट के साथ सालाना 10 लाख रुपये तक की आय कर-मुक्त हो सकती है। अभी 7.50 लाख रुपये तक की सालाना कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगता है।
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- 5.27 करोड़ करदाताओं ने नई कर व्यवस्था का चुना है विकल्प
- 75,000 रुपये किया गया है स्टैंडर्ड डिडक्शन को बढ़ाकर बीते बजट में
अर्थशास्त्री डॉ. कोहली का कहना है कि महंगाई व खर्चे बढ़ने के साथ मिडिल क्लास की परिभाषा बदल गई है। वह जमाना निकल चुका है कि आप 15 लाख कमाने वाले को अमीर कहें। इसलिए, सरकार को नई कर व्यवस्था के तहत 30 फीसदी के अधिकतम कर स्लैब का दायरा बढ़ाना चाहिए और इसमें 20 लाख रुपये से अधिक कमाई वालों को शामिल करना चाहिए।
पुरानी कर व्यवस्था को धीरे-धीरे खत्म करने की तैयारी में सरकार; फिर जुड़ सकता है 25% का स्लैब
कर विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार नई कर व्यवस्था में 25 फीसदी के टैक्स स्लैब को फिर से शामिल कर सकती है, जिसे पिछले साल हटा दिया गया था। इसमें 15 लाख से 20 लाख रुपये तक की कमाई को शामिल किया जा सकता है। इससे करदाताओं की खर्च योग्य आय बढ़ेगी।
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राजकोषीय लागत पर ज्यादा असर नहीं
बार्कलेज की मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) आस्था गुडवानी का कहना है कि निजी उपभोग को समर्थन देने के प्रयास में वित्त मंत्री को कर स्लैब में बदलाव कर व्यक्तिगत आयकर दर में असरदार कटौती करने जैसे उपाय करने चाहिए। इससे टैक्स संग्रह में तेजी आएगी, जिससे राजस्व में आई कमी की भरपाई हो जाएगी। राजकोषीय लागत ज्यादा बढ़ने की आशंका भी नहीं है।
महिला : पूंजी खर्च के जरिये लाभ देने की कोशिश
बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने और कौशल, कल्याण उपायों व वित्तीय माध्यम से महिलाओं, किसानों और वंचितों पर जोर देने पर सरकार ध्यान जारी रखेगी। सड़क, जल आपूर्ति प्रणाली और सामाजिक कल्याण पहल जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को शामिल करने के लिए प्रमुख फोकस क्षेत्रों के साथ पूंजीगत खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि से विकास को प्राथमिकता देने की उम्मीद है। इससे महिला और युवाओं को सबसे अधिक फायदा होगा।
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मिशन शक्ति, मातृ वंदना योजना और जननी सुरक्षा योजना जैसी महिला केंद्रित योजनाओं के लिए रकम बढ़ाई जा सकती है। सुरक्षा, शिक्षा और मातृ स्वास्थ्य लाभ के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने के लक्ष्य वाले इन कार्यक्रमों को ज्यादा बजट मिल सकता है। पिछले बजट में इन योजनाओं के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि दी गई थी।
हॉस्पिटैलिटी: पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए निवेश जरूरी
देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को बेहतर करना होगा। कर दरों को युक्तिसंगत बनाने के साथ आसान वीजा प्रक्रिया और निवेश को बढ़ावा देने की भी जरूरत है। होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एचएआई) के अध्यक्ष केबी काचरू ने कहा, वैश्विक स्तर पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बजट में जरूरी बुनियादी ढांचे के निर्माण की दिशा में जरूरी घोषणाएं हो सकती हैं।
एचएआई के अध्यक्ष ने कहा, निवेश अकेले सरकार नहीं कर सकती है। निजी क्षेत्र को भी आगे आना होगा। राज्य सरकारों को अधिक प्रोत्साहन देने पर विचार करना चाहिए। जापान, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड जैसे देश पर्यटन क्षेत्र को महत्व देकर अपनी जीडीपी को बढ़ाने में सक्षम हैं।
युवा-शिक्षा : कौशल विकास के जरिये रोजगार देने का प्रयास
विकसित भारत का लक्ष्य हासिल करने, मेक इन इंडिया को और मजबूत बनाने एवं युवाओं को उद्योग की जरूरतों के लिहाज से तैयार करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में नवाचार पर ध्यान देना होगा। कौशल विकास पर जोर भी महत्वपूर्ण है, ताकि हम दुनिया की जरूरतों के हिसाब से श्रमबल तैयार कर सकें। विशेषज्ञों का कहना है, देश में बड़ी संख्या में नौकरियां उपलब्ध हैं। लेकिन, युवाओं में कौशल की कमी के कारण कंपनियां नियुक्तियों में सावधानी बरत रही हैं। यह चीन का विकल्प बनने की राह में भी बड़ा रोड़ा है।
टाटा टेक्नोलॉजीज के सीईओ एवं एमडी वारेन हैरिस का कहना है कि युवाओं को उद्योग की जरूरतों के हिसाब से तैयार करने के लिए कौशल विकास पर आवंटन बढ़ाने की जरूरत है। इससे तैयार कार्यबल का निर्माण हो सकेगा, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेंट ऑफ थिंग्स और साइबर सुरक्षा जैसी उन्नत तकनीकी में उत्कृष्टता पाने में सक्षम हो।
किसान : कृषि बजट में 15 फीसदी की वृद्धि संभव
किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र के लिए खर्च को करीब 15 फीसदी बढ़ाकर 1.73 लाख करोड़ रुपये किया जा सकता है। अभी यह 1.52 लाख करोड़ रुपये है। यह छह वर्षों में सबसे बड़ी वृद्धि है।
उच्च पैदावार वाली बीज किस्मों को विकसित करने, भंडारण और आपूर्ति के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और दलहन फसलों, तिलहन, सब्जियों और डेयरी उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भी कुछ घोषणाएं की जा सकती हैं।
- सब्सिडी वाले कृषि लोन की सीमा तीन लाख से बढ़ाकर पांच लाख और फसल बीमा का विस्तार करने की भी उम्मीद है।
45% रोजगार देता है कृषि क्षेत्र; अर्थव्यवस्था में 15 फीसदी योगदान
कृषि मंत्रालय के बजट में 1.23 लाख करोड़ की वृद्धि और नई किस्मों को विकसित करने के लिए रिसर्च पर अधिक खर्च हो सकता है, जो वर्तमान में 9,941 करोड़ रुपये है। सरकार न केवल घरेलू आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश कर रही है, बल्कि 2030 तक कृषि निर्यात को मौजूदा 50 अरब डॉलर से बढ़ाकर 80 अरब डॉलर करने पर भी काम कर रही है। कृषि लगभग 45 फीसदी कार्यबल को रोजगार देती है। जीडीपी में 15 फीसदी का योगदान है।
महंगाई गरीबी मुक्त भारत की राह में रोड़ा
महंगाई लंबे समय से अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण दो महीनों को छोड़ दें तो 2024 में खुदरा महंगाई आरबीआई के चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर रही है। अक्तूबर, 2024 में यह बढ़कर 14 महीने के उच्च स्तर 6.21 फीसदी पर पहुंच गई थी। खाद्य महंगाई 10.84 फीसदी और सब्जियों की मुद्रास्फीति 42.18 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं। आश्चर्यजनक बात है कि जिस महंगाई को नियंत्रित करने का हवाला देकर आरबीआई ने पिछले करीब दो वर्षों से रेपो दर को 6.50 फीसदी पर स्थिर रखा है, वह अब भी आम लोगों के घरेलू बजट को प्रभावित कर रही है।
- महंगाई का हवाला देकर आरबीआई ने रेपो दर में दो साल से नहीं किया बदलाव
- 42.18% के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी सब्जियों की मुद्रास्फीति दर
- 6.21 % थी खुदरा महंगाई अक्तूबर में, 14 महीने में सर्वाधिक
डेलॉय की अर्थशास्त्री डॉ. रुमकी मजूमदार का कहना है कि बजट में महंगाई को नियंत्रित करने के उपायों पर जरूर चर्चा होगी। ये उपाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग-2025 के उस संबोधन के लिहाज से भी जरूरी हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह दिन दूर नहीं, जब पूरा भारत गरीबी से मुक्त होगा।
- महंगाई पर काबू पाना इसलिए भी जरूरी है, ताकि वो 25 करोड़ लोग फिर से गुरबत के दलदल में न फंस जाएं, जो बीते 10 वर्षों में बहुआयामी गरीबी सूचकांक से बाहर निकले हैं।
सस्ते आवास : 65 लाख तक की सीमा पर विचार
हाल के वर्षों में आवासीय संपतियों की कीमतें तेजी से बढ़ने के साथ सस्ते आवास के लिए मौजूदा जीएसटी रियायत सीमा 45 लाख रुपये तय है। इस बार इसे बढ़ाकर 50 से 65 लाख के बीच किया जा सकता है। हाउसिंग लोन के लिए आरबीआई की प्राथमिकता क्षेत्र की परिभाषा को नई सीमा के लिए अपडेट भी किया जा सकता है।
- एक दशक में बढ़ती महंगाई को देखते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) व निम्न आय समूह (एलआईजी) की परिभाषाओं को भी अपडेट किया जा सकता है।
- ईडब्ल्यूएस के लिए तीन लाख से पांच लाख व एलआईजी के लिए 6 लाख से 9 लाख तक की बढ़ोतरी से नई मांग पैदा होगी।
- होम लोन के ब्याज पर मौजूदा दो लाख की आयकर कटौती को इस बार बढ़ाया भी जा सकता है।
एमएसएमई : ऊंचे टैरिफ से मिले रियायत तो बढ़े रफ्तार
सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योग (एमएसएमई) को एक बड़ी राहत की उम्मीद है। दरअसल, ऊंचे टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं के कारण इन उद्योगों की इनपुट लागत और उत्पादन लागत बढ़ रही है, जो पहले से ही निर्यात में मंदी के बीच संघर्ष कर रहे हैं। फेडरेशन ऑफ माइक्रो एंड स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज ने वित्त मंत्री से मिलकर महत्वपूर्ण कच्चे माल पर गैर-टैरिफ बाधाओं के उभरने और बढ़ती टैरिफ बाधाएं (उच्च आयात शुल्क, एंटी-डंपिंग शुल्क, सुरक्षा शुल्क) स्टील, तांबा, एल्यूमीनियम और पॉलिमर जैसी सामग्रियां अप्रतिस्पर्धी वातावरण बना रही हैं। हालांकि, इनका उद्देश्य घरेलू उत्पादकों की रक्षा करना है, लेकिन इसके परिणाम हानिकारक हैं। यह उद्योग जीडीपी में 30 फीसदी का योगदान देता है। 24 करोड़ को रोजगार मिलता है।
30% का योगदान देता है यह उद्योग जीडीपी में
उदाहरण के तौर पर, साइकिल निर्माण एक उच्च मूल्य वर्धित उत्पादन है, पर आयात महंगा हो जाता है, तो यह घरेलू साइकिल निर्माण उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करेगा। बजट पेश होने से दो दिन पहले ही सरकार ने बुधवार को इस उद्योग के लिए एक नई क्रेडिट गारंटी योजना शुरू करने को मंजूरी दे दी, जिसकी घोषणा पिछले बजट में की गई थी। इस योजना के तहत उपकरण और मशीनरी की खरीद के लिए पात्र एमएसएमई को 100 करोड़ रुपये तक की क्रेडिट सुविधाओं के लिए ऋण देने वाले संस्थानों को क्रेडिट गारंटी मिलेगी।