Economic Survey 2025: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 को लोकसभा में पेश किया. सर्वेक्षण में FY26 के लिए भारत की GDP वृद्धि दर 6.3% से 6.8% के बीच रहने का अनुमान लगाया गया है. सरकार का अनुमान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के 6.5% अनुमान के करीब है, लेकिन विश्व बैंक के 6.7% अनुमान से कम है.
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नई दिल्ली. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 को लोकसभा में पेश किया. इस सर्वेक्षण में FY26 के लिए भारत की GDP वृद्धि दर 6.3% से 6.8% के बीच रहने का अनुमान लगाया गया है. GST संग्रह में 11 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है, जो 10.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. यह सर्वेक्षण नीतिगत सुधारों और आर्थिक स्थिरता की दिशा में सरकार के प्रयासों को रेखांकित करता है. सरकार का अनुमान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के 6.5% अनुमान के करीब है, लेकिन विश्व बैंक के 6.7% अनुमान से कम है.
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सर्वे के मुताबिक, GST संग्रह में भी उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान है. 2024-25 के लिए GST संग्रह 11% बढ़कर 10.62 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. हालांकि, पिछले तीन महीनों में राजस्व वृद्धि में मंदी देखी गई है, जिसके कारण वित्त वर्ष 26 के अनुमानों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. सरकार ने नीतिगत ठहराव को दूर करने और आर्थिक सुधारों को गति देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.
आर्थिक सर्वेक्षण आम बजट पेश होने से एक दिन पहले जारी किया जाता है. इस बार सभी की निगाहें वित्त मंत्री पर होंगी कि वह मांग को कैसे बढ़ावा देंगे और विकास को समर्थन देने के साथ-साथ राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में कैसे रखेंगे.
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पहले के अग्रिम अनुमान से कम ग्रोथ रेट
सरकार द्वारा 7 जनवरी को जारी पहले के अग्रिम अनुमान के मुताबिक, भारतीय अर्थव्यवस्था 2024-25 में 6.4% की दर से बढ़ेगी. यह पिछले आर्थिक सर्वेक्षण के 6.5 से 7 फीसद के अनुमान, और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के संशोधित 6.6 फीसद के अनुमान से कम है.
दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र (मैन्युफैक्चरिंग) के कमजोर प्रदर्शन और पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) में कमी के चलते आर्थिक विकास धीमा रहा. इस दौरान वास्तविक GDP ग्रोथ घटकर 6.5% रह गई, जो लगभग दो वर्षों का न्यूनतम स्तर है. साल की पहली छमाही में अर्थव्यवस्था 6% की दर से बढ़ी, और सरकार के लक्ष्य को पाने के लिए दूसरी छमाही में 6.8% की ग्रोथ दर हासिल करनी होगी.
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इस सप्ताह जारी तीसरी तिमाही के FMCG कंपनियों के नतीजे बताते हैं कि शहरी क्षेत्रों में उपभोग में अभी तक बड़ी बढ़ोतरी नहीं हुई है. इसके साथ ही, धीमी क्रेडिट ग्रोथ यह दर्शाती है कि तिमाही में उपभोग सुस्त रह सकता है. जनवरी में भारत की व्यावसायिक गतिविधियों में गिरावट आई और यह 14 महीनों के निचले स्तर पर पहुंच गई, जिसमें मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र में आई मंदी प्रमुख कारण रही.
सिस्टेमेटिक डी-रेगुलेशन से मिलेगी मदद
आर्थिक सर्वेक्षण 2024 के अनुसार, रणनीतिक और सुव्यवस्थित विनियमन-शिथिलीकरण (Systematic Deregulation) आर्थिक विकास, इनोवेशन और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. यह भारत के छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के विकास के लिए आवश्यक है, जिसे Mittelstand कहा जा रहा है.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि सिस्टेमेटिक डी-रेगुलेशन से भारत के Mittelstand को आर्थिक झटकों का सामना करने की क्षमता मिलेगी, जिससे राज्य मजबूत बनेंगे और देश की औद्योगिक क्षमताओं में सुधार होगा. यह नीति भारत को अपनी विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने, लंबी अवधि के निवेश को आकर्षित करने और समावेशी विकास सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है.
इसके अलावा, यह प्रक्रिया एक स्थायी और रोजगार-संवेदनशील (Employment-sensitive) वृद्धि को बढ़ावा देने में सहायक होगी. सरकार का मानना है कि नियमन में सुधार और अनावश्यक बाधाओं को हटाने से भारत में नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे देश की आर्थिक संरचना अधिक लचीली और प्रतिस्पर्धी बन सकेगी.