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कांग्रेस में बड़े बदलाव की तैयारी, प्रियंका गांधी को सौंपी जा सकती है ये अहम जिम्मेदारी

कांग्रेस ने चुनाव प्रबंधन तंत्र को मजबूत करने की योजना बनाई है, जिसकी कमान प्रियंका गांधी को सौंपी जा सकती है. सीडब्ल्यूसी में बदलाव की संभावना है, जिसमें निष्क्रिय सदस्यों को हटाया जाएगा.

लगातार पराजयों के पश्चात आखिरकार कांग्रेस ने अब एक मजबूत इलेक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (चुनाव प्रबंधन तंत्र) बनाने की योजना पर विचार करना शुरू कर दिया है. इसकी कमान प्रियंका गांधी को सौंपी जा सकती है. इस समय पार्टी का चुनाव प्रबंधन तंत्र सुनील कनुगोलु, जिन्हें कर्नाटक में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है, की अगुवाई में बेहद अस्त-व्यस्त तरीके से काम कर रहा है. कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता जिनमें सचिन पायलट का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, प्रियंका के साथ मिलकर आगामी विधानसभा चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए पूर्णकालिक तौर पर काम करने की इच्छा जता चुके हैं.

परिसीमन की प्रक्रिया 2026 तक पूरी होने की उम्मीद है और ऐसे में कांग्रेस का अनुमान है कि अगले लोकसभा चुनाव मई 2029 से कहीं पहले हो सकते हैं. इसके अलावा जुलाई-अगस्त 2027 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव होने हैं, जिनसे भाजपा और एनडीए के सत्ता समीकरणों में उलटफेर हो सकता है. इसकी वजह से भी मध्यावधि चुनाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसी परिस्थितियों में एक मजबूत और पूर्णकालिक चुनाव प्रबंधन तंत्र कांग्रेस के लिए न केवल महत्वपूर्ण हो गया है, बल्कि राजनीति के बड़े खिलाड़ी के तौर पर अपनी मौजूदगी को बरकरार रखने के लिए जरूरी भी.

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‘निष्क्रिय’ सदस्यों की होगी छुट्टी
कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) में भी व्यापक बदलाव किए जाने की संभावना है. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने ‘निष्क्रिय’ सदस्यों को हटाने का फैसला कर लिया है. इनमें एके एंटनी, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक और आनंद शर्मा शामिल हैं.

दरअसल, पार्टी नेतृत्व को 36 सदस्यीय सीडब्ल्यूसी में कुछ नवनियुक्त पदाधिकारियों को शामिल करना है और इस वजह से कार्यसमिति में कुछ नई जगह बनानी होंगी. जयराम रमेश, गौरव गोगोई, रणदीप सुरजेवाला और चरणजीत सिंह चन्नी की भी जगह खाली हो रही है. गौरव गोगोई को असम में कांग्रेस का चेहरा बनाए जाने की संभावना है, जहां अगले साल की शुरुआत में चुनाव है. सुरजेवाला हरियाणा और चन्नी पंजाब में कांग्रेस इकाइयों का नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं. पिछले हफ्ते चन्नी का नाम एआईसीसी महासचिव के रूप में प्रस्तावित हुआ था, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए हाथ जोड़ लिए कि उनकी ज्यादा दिलचस्पी तो पंजाब की राजनीति में है.

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार पार्टी नेतृत्व रजनी पाटिल (हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ की प्रभारी महासचिव), बीके हरिप्रसाद (हरियाणा), हरीश चौधरी (मध्य प्रदेश), गिरीश चोडनकर (तमिलनाडु और पुडुचेरी), अजय कुमार लल्लू (ओडिशा), के. राजू (झारखंड), मीनाक्षी नटराजन (तेलंगाना), सप्तगिरी शंकर उल्का (मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम और नगालैंड) और कृष्णा अल्लावरु (बिहार) को सीडब्ल्यूसी में शामिल करना चाहता है और इसलिए भी कुछ मौजूदा सदस्यों को हटाना जरूरी हो जाता है. दरअसल, कांग्रेस पार्टी के संविधान के अनुसार एआईसीसी महासचिवों को सीडब्ल्यूसी का सदस्य होना अनिवार्य है. इसी कारण इन पदाधिकारियों को पूर्णकालिक एआईसीसी महासचिव के बजाय ‘प्रभारी’ (इन-चार्ज) के रूप में नामित किया गया है. सीडब्ल्यूसी में शामिल होने के बाद वे पार्टी महासचिव के रूप में कार्य कर सकेंगे.

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ये सीडब्ल्यूसी से होंगे बाहर
एके एंटनी, अंबिका सोनी, जयराम रमेश, मुकुल वासनिक और आनंद शर्मा को बढ़ती उम्र की वजह से हटाया जा रहा है. 84 साल के हो चुके एंटनी 2022 में दिल्ली छोड़ने के बाद से ही निष्क्रिय और राजनीति से दूर रहे हैं. उनके बेटे अनिल का भाजपा में शामिल होना भी उनके लिए शर्मिंदगी की वजह बनी. हालांकि उधर 82 वर्ष की उम्र में भी अंबिका सोनी सक्रिय रही हैं. हाल ही में संपन्न हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में उनकी अहम भूमिका रही. यह अलग बात है कि जम्मू क्षेत्र में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए उनके द्वारा पार्टी प्रत्याशियों के गलत चयन को जिम्मेदार ठहराया गया.

एंटनी की तरह अंबिका सोनी भी सोनिया गांधी की करीबी मानी जाती हैं. 1998 से 2022 तक ‘सोनिया युग’ में सोनी का जबरदस्त प्रभाव था. कमलनाथ, सलमान खुर्शीद, कुमारी शैलजा और पवन बंसल जैसे कई नेता सोनी खेमे के ही माने जाते थे.

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जयराम रमेश भी होगी विदाई
एआईसीसी के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश को कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) के महासचिव पद की जिम्मेदारी देने पर विचार किया जा रहा है. वर्तमान में सोनिया गांधी सीपीपी की चेयरपर्सन हैं. पॉजिटिकल नरैटिव सेट करने की मुख्य जिम्मेदारी संचार विभाग की होती है. कांग्रेस नेतृत्व को लगता है कि हाल ही में दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा में सम्पन्न विधानसभा चुनावों में जयराम रमेश ऐसा नरैटिव सेट करने में विफल रहे, जो पार्टी की जीत में मददगार बनता. पार्टी के भीतर यह भी माना जा रहा है कि संचार विभाग की अक्षमता के कारण ही आम चुनावों के बाद से ‘ब्रांड राहुल गांधी’ को सही ढंग से पेश नहीं किया जा सका, जिससे नेता प्रतिपक्ष की छवि को भारी नुकसान पहुंचा. इसके अलावा जयराम रमेश की मीडिया समिति के अध्यक्ष पवन खेड़ा और सोशल मीडिया प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत के साथ लंबे समय से चल रही तनातनी भी पार्टी में किसी से छिपी नहीं है. दरअसल, खेड़ा और श्रीनेत दोनों ही जयराम रमेश के उत्तराधिकारी के तौर पर स्वयं को संचार महासचिव की दौड़ में सबसे आगे मान रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार बीते कुछ दिनों के भीतर तीन वरिष्ठ नेताओं रमेश चेन्निथला, रणदीप सुरजेवाला और कुमारी शैलजा ने महासचिवों के पद से अपने इस्तीफे आलाकमान को सौंप दिए हैं. ये अपने राज्यों केरल और हरियाणा में उन्हें अहम भूमिका दिए जाने की उम्मीद कर रहे हैं. रणदीप सुरजेवाला हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष या कांग्रेस अध्यक्ष कार्यालय (सीपीओ) में महासचिव का पद चाहते हैं. उनकी निगाहें एआईसीसी में संगठन महासचिव के पद पर भी हैं, जिस पर इस समय केसी वेणुगोपाल विराजमान हैं. अशोक गहलोत भी इस दौड़ में शामिल हैं.

महासचिव पद से राजीव शुक्ला की रवानगी से पार्टी के भीतर आश्चर्य भी है तो कुछ-कुछ निराशा भी. पत्रकार से राजनेता और फिर क्रिकेट प्रशासक बने राजीव एक ऐसे शख्स हैं, जिनमें पार्टी के हर नेतृत्व के अनुसार स्वयं को ढालने की क्षमता है. कुछ कांग्रेस नेताओं का मानना है कि शुक्ला जल्द ही बड़ी वापसी कर किसी प्रतिष्ठित पद पर आसीन हो सकते हैं. माना जाता है कि उन्हें प्रियंका गांधी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की सरपरस्ती हासिल है.

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