धर्म

Holi 2025: होली में क्यों फेंके जाते हैं रंग? खुशहाली और मानसिक शांति से कैसे जुड़ा है संबंध

Importance of Colors in Holi: होली में रंगों और गुलाल का इस्तेमाल प्राचीन काल से होता आ रहा है. क्या आप जानते हैं कि आखिर रंगों और होली का क्या संबंध है. क्या इससे आध्यात्मिक शांति के साथ ही मानसिक चिकित्सा में भी मदद मिलती है. 

What is the History of Colors in Holi: होली का त्योहार भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जो उल्लास, खुशी और रंगों के पर्व के रूप में मनाया जाता है. यह दिन न केवल रंगों के खेल के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह एक-दूसरे से गले मिलने, बुरा-भला भूलने और प्रेम तथा भाईचारे का संदेश देने का अवसर भी है. जब होली के रंगों की बात होती है, तो हम अक्सर यह नहीं सोचते कि इस त्योहार पर रंग खेलने की कहानी और प्राचीन समय से आधुनिक युग तक रंगों का इतिहास क्या है?

ये भी पढ़ें:-  Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों के लिए नौ भोग, जिसे पाते ही माता प्रसन्न हो बरसाएंगी कृपा

भारत में रंगों का इतिहास है बेहद पुराना

रंगों का इतिहास बहुत पुराना है. प्राचीन भारत में रंगों का इस्तेमाल केवल सौंदर्य और खुशी के लिए नहीं किया जाता था, बल्कि आयुर्वेद और उपचार में भी उनका अहम स्थान था. इन रंगों का शरीर और मन पर गहरा प्रभाव माना जाता था. जैसे लाल रंग ऊर्जा और उत्तेजना का प्रतीक था, नीला रंग शांति और संतुलन का, हरा रंग ताजगी और हरियाली का, और पीला रंग खुशी और मानसिक शांति का प्रतीक था. ये सब रंग भारतीय जीवन का हिस्सा रहे हैं, और इनका उपयोग न केवल त्योहारों में, बल्कि चिकित्सा और मानसिक उपचार में भी किया जाता था.

प्राचीन काल में भारतीय सभ्यता में रंगों का इस्तेमाल धार्मिक, सांस्कृतिक और चिकित्सा उद्देश्यों के लिए किया जाता था. वेदों और महाकाव्यों में रंगों का उल्लेख मिलता है, जिसमें इनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व था. उस समय रंग प्राकृतिक तत्वों से बनाए जाते थे – जैसे हल्दी से पीला, चुकंदर से लाल, फूलों से गुलाबी और नीम के पत्तों से हरा रंग. इन रंगों का उपयोग न केवल सौंदर्य के लिए, बल्कि त्वचा के उपचार के लिए भी किया जाता था. हल्दी का पीला रंग त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता था, जबकि चुकंदर से बना लाल रंग रक्त को शुद्ध करने में मदद करता था. इन रंगों का एक और फायदा था कि ये त्वचा के लिए भी सुरक्षित होते थे और शरीर के लिए लाभकारी थे.

ये भी पढ़ें:-  Maha Shivratri 2025 Puja Vidhi: महाशिवरात्रि आज, जानें मुहूर्त, मंत्र, पूजा सामग्री, पूजन विधि, जलाभिषेक समय

मध्यकाल में भाईचारे का प्रतीक बने रंग

मध्यकाल में रंगों का महत्व और बढ़ गया. इस समय में होली जैसे त्योहारों के दौरान रंगों का उपयोग बड़े धूमधाम से किया जाने लगा. रंगों का उद्देश्य केवल सौंदर्य नहीं था, बल्कि यह सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक बन गया था. होली के दिन लोग अपने पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग डालते थे, जिससे रिश्तों में सुधार और नयापन आता था. उस समय भी रंग प्राकृतिक ही होते थे, क्योंकि रासायनिक रंगों का विकास नहीं हुआ था. होली के रंगों के पीछे एक मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का पहलू भी था. हर रंग का विशेष उपचारात्मक और मानसिक प्रभाव था.

औपनिवेशिक काल में जब ब्रिटिश शासन भारत में था, पश्चिमी विज्ञान और रसायन शास्त्र का प्रभाव बढ़ने लगा. इस दौरान रासायनिक रंगों का निर्माण हुआ, जो भारतीय समाज में लोकप्रिय हो गए. इन रंगों में सल्फर, असबाब, और भारी धातुओं का इस्तेमाल किया गया था. हालांकि इन रंगों ने कुछ समय तक आकर्षण पैदा किया, लेकिन ये रंग त्वचा के लिए हानिकारक साबित होने लगे.

ये भी पढ़ें:-  Amalaki Ekadashi 2025: रुका हुआ धन जल्द मिलेगा वापस, आमलकी एकादशी पर बस कर लें ये 1 काम

आधुनिक काल में रसायन से होने लगा निर्माण

आधुनिक काल में रासायनिक रंगों का उत्पादन तेजी से बढ़ा और ये रंग होली जैसे त्योहारों में बड़े पैमाने पर उपयोग किए जाने लगे. इन रंगों में तेज और चमकदार रंग होते थे, जो लंबे समय तक टिकते थे. लेकिन जैसे-जैसे इन रंगों के शरीर पर नकारात्मक प्रभाव सामने आने लगे, लोग इनसे बचने की कोशिश करने लगे. रासायनिक रंगों के प्रयोग से जलन, रैशेज, आंखों में जलन, और एलर्जी जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगीं. साथ ही, पर्यावरण पर भी इन रंगों का बुरा असर पड़ने लगा. पानी, हवा और मिट्टी को प्रदूषित करने के कारण ये रंग अब एक समस्या बन गए थे.

जब हम पुराने समय के रंगों की बात करते हैं, तो यह याद रखना जरूरी है कि वे प्राकृतिक और पौधों से बनाए जाते थे. हल्दी से पीला रंग, चुकंदर से लाल रंग, और फूलों से गुलाबी रंग बनाए जाते थे. इन रंगों से न केवल सौंदर्य था, बल्कि ये शरीर और त्वचा के लिए भी फायदेमंद होते थे. हल्दी में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो त्वचा को इन्फ्लेमेशन और अन्य समस्याओं से बचाते हैं, जबकि चुकंदर का लाल रंग रक्त को शुद्ध करता है. फूलों के रंग मन को शांति और प्रसन्नता देते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है.

सेहत को पहुंचाने लगे नुकसान

अब बाजार में जो रंग बिकते हैं, वे मुख्य रूप से रासायनिक होते हैं. वे त्वचा पर बुरा असर डाल सकते हैं, आंखों में जलन पैदा कर सकते हैं, और कई बार तो एलर्जी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. रासायनिक रंगों में भारी धातु, सल्फर, और अन्य हानिकारक रसायन होते हैं, जो न सिर्फ हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी गंदा करते हैं.

अब फिर से बढ़ रही हर्बल गुलालों की डिमांड

वर्तमान में रंगों के इस्तेमाल में एक बड़ा बदलाव आया है. आजकल लोग रासायनिक रंगों से दूर जाकर प्राकृतिक, हर्बल रंगों की ओर बढ़ रहे हैं. हल्दी, चुकंदर, गुलाब, केसर, नीम और अन्य पौधों से बने रंग अब काफी लोकप्रिय हो गए हैं. इन रंगों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये न केवल त्वचा के लिए सुरक्षित होते हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी हानिरहित होते हैं. इस बदलाव का मुख्य कारण रासायनिक रंगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव हैं.

हल्दी से बने पीले रंग का फायदा यह है कि यह त्वचा को नर्म और मुलायम बनाए रखता है. चुकंदर से बना लाल रंग रक्त प्रवाह को बेहतर करता है, और गुलाब के रंग में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो त्वचा को तरोताजा रखते हैं. इसके अलावा, ये रंग पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित होते हैं.

(एजेंसी आईएएनएस)

Source :
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय

To Top