हमारे बीच देश के ऐसे अनेक मशहूर खिलाड़ी कलाकार और यहां तक कि बड़े संवैधानिक एवं प्रशासनिक पदों पर विराजमान व्यक्तित्व हैं जिन्होंने शुरुआती शिक्षा-दीक्षा अपनी मातृभाषा में प्राप्त की और गर्व के साथ इसे स्वीकार भी करते हैं।
अंशु सिंह। जम्मू की जूही की आवाज में इतनी मदहोशी और जादू है कि जब वह अपने पिता या भाई के साथ डोगरी में गाने गुनगुनाती हैं तो भाषा न समझने या जानने वाला व्यक्ति भी उनसे जुड़े बिना नहीं रह पाता है। दोस्तो, डोगरी जम्मू क्षेत्र (उधमपुर, कठुआ, कटरा आदि) में मुख्य रूप से बोली जाती है। इसके अलावा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में भी यह प्रचलित है। जूही वर्ष 2011 से इसमें गा रही हैं। लेकिन कोरोना काल में हुए लाकडाउन के दौरान जब उन्होंने अपने भाई के साथ गाने के वीडियोज यूट्यूब और फेसबुक के अपने पेज पर अपलोड करने शुरू किए, तो देखते ही देखते इनके प्रशंसकों की संख्या एवं लोकप्रियता बढ़ती गई।
घरों से दूर लोग इनके गाने सुन अपनी जड़ों से जुड़ा महसूस करते हैं। डोगरी के अलावा मराठी, तमिल, मलयालम, असमिया, बांग्ला भाषा में गाने वाली जूही डुग्गर का कहना है कि उन्हें क्षेत्रीय भाषाओं में गाने सुनना अच्छा लगता है। वह उन गायकों को सुन उसे अपनी आवाज में भी गाती हैं। उनके पिता डा. सूरज सिंह जम्मू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, गजल गायक एवं एक उम्दा कलाकार हैं, जिनसे उन्होंने शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लिया है। इसके अलावा, जूही एक एक्टर भी हैं। ‘यहां’ और ‘करीम मोहम्मद’ नाम से दो फिल्में की हैं। मुंबई यूनिवर्सिटी से थिएटर आर्ट्स में मास्टर्स जूही की मानें तो डोगरी काफी मीठी बोली है, जिसके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। इसलिए वे इसे अपने गाने के जरिये प्रमोट कर रही हैं। वह कहती हैं, ‘हमारे घरों में तो लड़ाइयां भी डोगरी में ही होती हैं।‘
मातृभाषा से लगाव रख हुए सफल
एक बार किसी ने भारत के पूर्व क्रिकेटर कपिल देव से सवाल किया कि करियर के शुरुआती दौर में आप अंग्रेजी में अधिक सहज नहीं थे, तो क्या उससे शर्मिंदगी महसूस होती थी? कपिल देव ने जवाब दिया, ‘बिल्कुल नहीं। लोगों की यह धारणा ही गलत है कि अंग्रेजी बोलने वाले बुद्धिमान होते हैं और बाकी मूर्ख होते हैं। जरूरी यह है कि आप अपनी बात सही रूप से सबके सामने रख सकें, फिर वह कोई भी भाषा हो सकती है।‘ गायक दिलजीत दोसांज की मातृभाषा पंजाबी है और वे इसमें जरा भी अहसज महसूस नहीं करते। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू जितनी अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, उतनी ही सरलता से हिंदी एवं तेलुगु में संवाद कर सकते हैं। उनका मानना है कि दुनियाभर के लोग न सिर्फ अपनी मातृभाषा बोलने में गर्व महसूस करते हैं, बल्कि उसके प्रसार-प्रचार की कोशिश भी करते हैं। कई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष अपनी मातृभाषा में संवाद करना पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, देश-विदेश में उच्च पदों पर आसीन ऐसे अधिकारी, वकील, जज, डाक्टर की कमी नहीं जिन्होंने अपनी मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने गणित एवं विज्ञान की पढ़ाई अपनी मातृभाषा में ही की थी। बिगबड्डी की संस्थापक लोपमुद्रा कहती हैं, ‘हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसलिए मातृभाषा में पढ़ाई पर जोर दिया गया है, क्योंकि इसमें बच्चे पाठ्यक्रम को बेहतर समझ पाते हैं। उनका सोच तार्किक बनता है। जो बच्चे दो या उससे अधिक भाषाएं जानते हैं, वे खुद को भी कहीं बेहतर तरीके से अभिव्यक्त कर पाते हैं। मेरे साथ कई ऐसे नन्हे स्टोरीटेलर्स जुड़े हैं जो हिंदी, अंग्रेजी के अलावा अपनी मातृभाषा को जानने व सीखने का प्रयास कर रहे हैं। उड़िया, बांग्ला, तेलुगु, तमिल आदि भाषाओं में कहानियां सुना रहे हैं।‘
सोरा’ भाषा को पुनर्जीवित करने में जुटे युवा
ओडिशा के गजपति, रायगढ़, बारगढ़ जिले के अलावा आंध्र प्रदेश में मुख्य रूप से पाई जाती है सौरा जनजाति, जिसे सावरा या साओरा भी कहा जाता है। इनके पास लोककथाओं का भंडार है, जो मौखिक रूप से ही एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक पहुंचती है। लेकिन आज इनकी भाषा ‘सोरा’ विलुप्त होती जा रही है। समुदाय के लोग उड़िया या हिंदी में संवाद करते हैं। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने भी ‘सोरा’ भाषा को ‘विलुप्त होने की कगार पर’ की श्रेणी में सूचीबद्ध कर रखा है। ऐसे में भुवनेश्वर स्थित केआइआइटी के छात्र रोनित सबर ने 15-20 युवाओं की एक टीम बनाकर भाषा पर शोध करने का निर्णय लिया है। बताते हैं रोनित, ‘हमारे लोग अपनी भाषा को भूल चुके हैं। वे उड़िया या हिंदी में बात करते हैं। सोरा के बारे में कोई प्रामाणिक दस्तावेज या साहित्य उपलब्ध नहीं है। इसलिए हमने शिक्षाविदों, वरिष्ठ शोधकर्ताओं की मदद से इस पर गहन शोध करने का निर्णय लिया है। फेसबुक पर ‘सौरा सिख्या यूथ एसोसिएशन’ नाम से एक पेज क्रिएट किया है, जिससे भाषा को लेकर जागरूकता लाने का प्रयास किया जा रहा है।‘
गानों के जरिये डोगरी को करती हूं प्रोत्साहित
मातृभाषा या बोली की अपनी मिठास होती है। उसमें शिक्षा हासिल करने से अपने तरीके से सोचने की आजादी मिलती है। मैं पापा के साथ डोगरी और हिंदी में गाने गाती थी। फिर मैंने भाई के साथ गाना शुरू किया और यूट्यूब के साथ फेसबुक पर वीडियोज अपलोड करने लगी। इसके अलावा, हम स्थानीय हस्तकरघा कारीगरों, रेस्टोरेंट्स एवं अन्य संस्थानों के साथ मिलकर डोगरी भाषा एवं इसकी संस्कृति को प्रोत्साहित करते हैं। इससे डोगरी को लेकर एक जागरूकता आई है। क्योंकि आमतौर पर लोगों को यही लगता है कि जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी ही बोली जाती है, जबकि हमारे यहां दस से अधिक बोलियां एवं भाषाएं हैं। जम्मू और आसपास के क्षेत्रों में डोगरी बोली जाती है।
जूही डुग्गर एक्टर एवं डोगरी गायिका
बाबल कीबोर्ड एप से अपनी भाषा में संवाद: हमारे देश की संस्कृति विविधतापूर्ण है। यहां असंख्य भाषाएं एवं बोलियां हैं। लेकिन सिर्फ अंग्रेजी एवं हिंदी कीबोर्ड होने से अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में काम करना या संवाद करना कठिन था। वह समय भी था जब किसी ने कीबोर्ड एप की कल्पना नहीं की थी। लेकिन हमने इस कमी को दूर करने का निर्णय लिया। इसमें बाबल एआइ कीबोर्ड एप किसी क्रांति से कम नहीं रहा। बाबल इंडिक कीबोर्ड एप पर २३ भाषाएं हैं, जिनमें संवाद किया जा सकता है। लोग अपनी भाषा में संदेश लिख (टाइप) सकते हैं। इससे लोग पहले से कहीं अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं। अपनी भाषा में भावनाओं को अच्छी तरह से अभिव्यक्त कर सकते हैं। इसके माध्यम से लोग आपस में काफी करीब आए हैं। दरअसल, जब हम भारत की बात करते हैं, देसी को प्रमोट करते हैं तो भाषा भी वहीं की होनी चाहिए। इसलिए हमने अपने लोगों के लिए कीबोर्ड विकसित किया है। इस समय हमारे 6.5 करोड़ के करीब यूजर हैं। टाइपिंग के साथ क्लिकिंग की सुविधा भी है। बाबल लाइब्रेरी में लाखों स्टिकर्स हैं, इमोजी हैं, जिन्हें एक-दूसरे के साथ साझा किया जा सकता है। बाबल एआइ के अलावा भारत कीबोर्ड है, जिससे हिंदी, मराठी, बांग्ला एवं मलयालम में टाइपिंग की जा सकती है। हमारी कोशिश है कि डिजिटल इंडिया से हर वर्ग को जोड़ा जा सके। भाषा की वजह से कोई भी इससे अछूता न रहे। क्योंकि इससे लोग अपनी भाषा में सरकारी योजनाओं के बारे में एवं अन्य जानकारियां हासिल कर सकते हैं।
अंकित प्रसाद फाउंडर एवं सीईओ, ‘बाबल एआइ’
हिंदी की सामग्री के साथ दर्शकों से जुड़ाव: मुझे गेमिंग में दिलचस्पी थी। दोस्तों के साथ ग्रुप में गेम्स खेला करती थी। एक साल पहले लगा कि अपना चैनल शुरू करना चाहिए। फिर मैंने यूट्यूब पर पायल गेमिंग नाम से एक चैनल शुरू किया। धीरे-धीरे उस पर गेमिंग से जुड़े वीडियो कंटेंट अपलोड करने लगी। मैं हिंदी में कंटेंट क्रिएट करती हूं, क्योंकि उसमें लोग ज्यादा सहज होते हैं। लाइव स्ट्रीमिंग में उनके साथ संवाद करना भी आसान होता है। मेरे दर्शक हर आयु वर्ग के हैं। उनकी काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है। आज मेरे चैनल के करीब १८ लाख सब्सक्राइबर्स हैं। महीने में दो लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है। हाल ही में मैंने पायल शाट्स नाम से एक और चैनल शुरू किया है, जिसके एक महीने में ही 80 हजार सब्सक्राइबर्स हो चुके हैं। आने वाले दिनों में गेमिंग के अलावा अन्य विषयों से जुड़े वीडियोज एवं शार्ट वीडियोज भी अपलोड करने की योजना है।
पायल धरे फाउंडर, ‘पायल गेमिंग’
कांगड़ी में लिखना है पसंद: मुझे भाषा की वजह से कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। जो भाषा को अच्छी तरह नहीं जानते हैं, वे ही हीन भावना से ग्रसित होते हैं। हमें अपनी भाषा पर विश्वास होना चाहिए। मैंने 2012-13 से लिखना शुरू किया। पहले हिंदी में कविताएं एवं कहानियां लिखता था। एक दिन लगा कि क्यों न अपनी कांगड़ी भाषा में कुछ लिखूं। इस पहाड़ी भाषा में बातचीत करता था, लेकिन उसी में लिखने का खयाल नहीं आया था। जब लिखना शुरू किया, तो इसमें आनंद आने लगा। अभी तक सिर्फ हिंदी में एक काव्य संग्रह (74 रचनाएं) ‘फकीरा’ प्रकाशित हुआ है। कांगड़ी में प्रकाशन होना बाकी है। कोशिश जारी है। मेरा मानना है कि आज के दौर में अगर हमें अपनी मातृभाषा को लोकप्रिय बनाना है, तो उसकी मार्केटिंग करनी होगी। जैसे कि पंजाबी की हो रही है। आज पंजाबी गानों की धूम है। हिंदी फिल्म जगत से लेकर म्यूजिक इंडस्ट्री में पंजाबी गायकों का बोलबाला है। पहाड़ों की तरह अन्य प्रदेशों में भी समृद्ध भाषा-संस्कृति है, लेकिन उसके बारे में लोग अनजान हैं। इससे वहां के क्षेत्रीय लेखकों, लोकगायकों या कलाकारों को उतना प्रोत्साहन या लोकप्रियता नहीं मिल पाती है। हालांकि, मिथक टूट रहे हैं।
शिवा युवा लेखक