जो लोग साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि दोष से पीड़ित हैं, उन लोगों को शनिवार को शनि देव (Shani Dev) की पूजा करनी चाहिए. इस दिन शनि स्तुति से शनि देव प्रसन्न होते हैं.
हाइलाइट्स
शनि देव की स्तुति से पूर्व विधिपूर्वक पूजा करना जरूरी है.
शनि स्तुति से शनि दोष में भी लाभ हो सकता है.
जिनकी कुंडली में साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि दोष होता है, उन लोगों को शनिवार के दिन शनि देव (Shani Dev) की पूजा करनी चाहिए. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए संस्कृत में लिखे स्तुति पाठ को पढ़ना चाहिए. शनि देव की स्तुति करने से कर्मफलदाता शनि देव की कृपा प्राप्त होती है. जिन पर शनि देव का आशीर्वाद होता है, उनका अनिष्ट नहीं होता है. उनको साढ़ेसाती, ढैय्या (Sade Sati And Dhaiya) और शनि दोष (Shani Dosh) की पीड़ा में राहत मिलती है. शनिवार को शनि स्तुति का पाठ कैसे करना चाहिए? इसके बारे में हमें बता रहे हैं काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट.
शनि स्तुति पाठ विधि
1. शनिवार के प्रात: स्नान आदि से निवृत होने के बाद साफ कपड़े पहने लें.
2. इसके बाद किसी शनि मंदिर में जाकर शनि देव के दर्शन करें. उनकी आंखों को मत देखें.
3. सरसों के तेल से उनका अभिषेक करें. फिर शनि देव को काला तिल, नीले फूल, शमी के पत्ते, अक्षत् आदि अर्पित करें. सरसों का तेल शनि देव को प्रिय है.
4. इसके बाद धूप, दीप, गंध, माला, फल आदि शनि देव को चढ़ा दें. यदि सरसों का तेल न हो, तो तिल के तेल का भी उपयोग कर सकते हैं.
5. शनि देव की पूजा के समय सबसे पहले शनि चालीसा का पाठ करके उनकी महिमा और गुणों का गान करें. उसे बाद शनि स्तुति से शनि देव को प्रसन्न करें.
6. शनि स्तुति के श्लोकों का सही से उच्चारण करें, चाहें तो हिंदी अनुवाद ही पढ़ लें. उसके बाद शनि देव की आरती करें.
शनि स्तुति
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
शनि देव की जय…शनि देव की जय…शनि देव की जय