हिमाचल हाईकोर्ट में वर्ष 2018 में एक याचिका दायर की थी। याचिका में आरोप लगाए गए कि मंदिरों में धन की भरमार होने के बावजूद श्रद्धालुओं को मंदिरों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
हिमाचल प्रदेश के मंदिरों में दान की गई राशि को हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार केे लिए खर्च करने के मूल प्रश्न पर हाईकोर्ट का फैसला जल्द आएगा। इसे लेकर याचिकाकर्ता ने वर्ष 2018 में एक याचिका दायर की थी। याचिका में आरोप लगाए गए कि मंदिरों में धन की भरमार होने के बावजूद श्रद्धालुओं को मंदिरों में पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। मंदिर के रखरखाव और शैक्षणिक संस्थानों के लिए कोई पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है। मंदिरों के धन की बर्बादी हो रही है। याचिकाकर्ता एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी हैं।
याचिका में मूल प्रश्न है कि क्या यह धनराशि वास्तव में अधिनियम की धारा 17 के उद्देश्य और प्रावधानों को पूरा करने के लिए खर्च की जा रही है या नहीं, जिसे वेद, गीता, रामायण आदि ग्रंथों की शिक्षा, गोसदन और आसपास के अन्य छोटे मंदिरों के रखरखाव पर व्यय किया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्व विन्यास अधिनियम 1984 के अंतर्गत अधिग्रहीत मंदिरों में श्रद्धालुओं को सुविधाएं प्रदान करें।
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अधिनियम की धारा 17 में धार्मिक संस्थानों और दानों से संबंधित संपत्तियों की सुरक्षा और संरक्षण करने और एसओपी गठित करने का प्रावधान है। तीर्थयात्रियों और उपासकों को स्वास्थ्य, सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करने के लिए व्यय करने की व्यवस्था है। लेकिन अधिकांश स्थानों में तीर्थ यात्रियों और उपासकों के लिए स्वच्छ पेयजल व स्वच्छ बिस्तर के साथ किफायती आवास नहीं मिल रहा है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैंथला की खंडपीठ ने दिसंबर में मामले की सुनवाई के बाद इस पर अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था। इस मामले को लेकर अदालत ने सरकार व अधिवक्ताओं से भी सुझाव मांगे थे।
