सीजेआई) की ओर से अतिक्रमण मामलों की सुनवाई के लिए एक विशेष खंडपीठ गठित की जाएगी। अभी तक सुप्रीम कोर्ट में अतिक्रमण के मामले अलग-अलग बेंच के समक्ष लग रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की ओर से अतिक्रमण मामलों की सुनवाई के लिए एक विशेष खंडपीठ गठित की जाएगी। अभी तक सुप्रीम कोर्ट में अतिक्रमण के मामले अलग-अलग बेंच के समक्ष लग रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने अतिक्रमण मामलों की सुनवाई के दौरान पाया कि ऐसे ही एक अन्य मामले में 28 नवंबर को एक ही दिन में स्वयं न्यायाधीश सुधांशु की पीठ ने एक याचिका खारिज की है। वहीं, दूसरी पीठ ने अनुमति दी है। खंडपीठ ने दो अलग-अलग निर्णयों की वजह से मामले को मुख्य न्यायाधीश को भेजा है।
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अतिक्रमण मामलों में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने अतिक्रमण मामलों में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से हिमाचल हाईकोर्ट के आदेशों को चुनौती दी गई है, जिसमें इन सब याचिकाकर्ताओं को सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने पर बेदखली के आदेश दिए हैं। खंडपीठ के आदेश के बाद अब ऐसे मामलों की सुनवाई एक ही बेंच करेगी। खंडपीठ की ओर से कहा गया कि इस तरह के मुद्दों के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश की ओर से एक विशेष पीठ का गठित की जाए। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं की ओर से अदालत को बताया गया कि सरकारी भूमि पर कोई अतिक्रमण नहीं किया है।
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याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने दिया ये तर्क
ये जमीन बाखल-अव्वल है, जिस पर पूर्वजों से लेकर काम किया जा रहा है। वन विभाग की ओर से सार्वजनिक परिसर एवं भूमि बेदखली व किराया वसूली अधिनियम 1971 (पीपी एक्ट) की धारा 4 के तहत जो कार्रवाई की गई है, वह न्यायसंगत नहीं है और प्राकृतिक सिद्धांत के खिलाफ है। अधिवक्ता ने कहा कि शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने 28 नवंबर को बाबू राम बनाम हिमाचल प्रदेश में कहा है कि ऐसे मामलों में कार्रवाई करते हुए निचले स्तर पर ही अधिकारियों की ओर से गलती की गई है और तथ्यों की अनदेखी की गई है। शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा था कि ऐसे मामलों की फिर से सुनवाई हो। शीर्ष अदालत में ऐसे 30 के करीब मामले सुनवाई के लिए लगे थे।
