नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने टिक साइज (Tick Size) में बड़ा बदलाव किया है, जो 15 अप्रैल 2025 से लागू होगा. टिक साइज का मतलब है कि किसी स्टॉक या इंडेक्स की कीमत में होने वाला न्यूनतम बदलाव. यह बदलाव कैश मार्केट (CM), स्टॉक फ्यूचर्स और इंडेक्स फ्यूचर्स पर लागू होगा. अब सवाल उठता है कि बदलाव क्यों किए गए हैं- इस पर NSE का कहना है कि यह कदम बाजार की तरलता (Liquidity) बढ़ाने और ट्रेडिंग अनुभव को बेहतर बनाने के लिए उठाया गया है. अब हाई-प्राइस स्टॉक्स और इंडेक्स में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा.
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शेयर बाजार में ‘Tick Size’ क्या होता है और निवेशकों के लिए यह क्यों जरूरी है– अगर आप शेयर बाजार में निवेश या ट्रेडिंग करते हैं, तो ‘Tick Size’ समझना बहुत जरूरी है. यह आपके ट्रेडिंग फैसलों और मुनाफे को प्रभावित कर सकता है. आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं.
Tick Size क्या होता है-Tick Size का मतलब है किसी शेयर, इंडेक्स या डेरिवेटिव (F&O) की कीमत में होने वाला न्यूनतम बदलाव. उदाहरण के तौर पर इसे समझते है. अगर किसी शेयर का टिक साइज ₹0.05 है, तो उसकी कीमत ₹100 से सीधे ₹100.05 या ₹99.95 होगी. वह ₹100.01, ₹100.02 जैसे छोटे बदलाव में मूव नहीं कर सकता.
Tick Size = शेयर प्राइस में सबसे छोटा मूवमेंट!
Tick Size निवेशकों के लिए क्यों जरूरी है-आपके प्रॉफिट और लॉस को प्रभावित करता है.अगर टिक साइज छोटा है, तो शेयर की कीमत में छोटे-छोटे बदलाव होते हैं और ट्रेडिंग ज्यादा एक्टिव होती है. अगर टिक साइज बड़ा है, तो कम मूवमेंट होगा और वोलैटिलिटी कम हो सकती है.
लिक्विडिटी पर असर डालता है-छोटा टिक साइज = ज्यादा लिक्विडिटी (अधिक खरीदार और विक्रेता).बड़ा टिक साइज = कम लिक्विडिटी (बड़े मूवमेंट की जरूरत).स्पेकुलेशन और ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी पर असर डालता है.इंट्राडे ट्रेडर्स को छोटे मूवमेंट पर तेजी से एंट्री-एग्जिट करने की सुविधा मिलती है.लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए बड़े टिक साइज वाले शेयर अधिक स्थिर हो सकते हैं.स्टॉक्स और इंडेक्स के प्राइस मूवमेंट को प्रभावित करता है.
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Tick Size बढ़ने से: शेयर या इंडेक्स के मूवमेंट में ज्यादा गैप होगा. Tick Size घटने से: छोटे-छोटे मूवमेंट आएंगे, जिससे ट्रेडिंग अधिक सक्रिय होगी.NSE ने हाल ही में Tick Size में बदलाव किया! (15 अप्रैल 2025 से लागू)
NSE ने 15 अप्रैल 2025 से टिक साइज में बदलाव किया है. अब हाई-प्राइस स्टॉक्स और इंडेक्स में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे.
निवेशकों और ट्रेडर्स को क्या करना चाहिए-अगर आप इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं, तो नए टिक साइज को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाएं. अगर आप लॉन्ग-टर्म निवेशक हैं, तो बड़े टिक साइज वाले शेयरों में स्थिरता बढ़ सकती है, जिससे बेहतर निवेश अनुभव मिल सकता है. अगर आप ऑप्शंस ट्रेडर हैं, तो टिक साइज में बदलाव से प्रीमियम मूवमेंट पर असर पड़ेगा, इसे ध्यान में रखें.
नए ‘Tick Size’ नियम – स्टॉक्स और फ्यूचर्स पर असर- कैश और स्टॉक फ्यूचर्स सेगमेंट के लिए
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शेयर का प्राइस (₹) | पुराना टिक साइज (₹) | नया टिक साइज (₹) |
250 से नीचे | 0.01 | 0.01(कोई बदलाव नहीं) |
250 – 1,000 | 0.05 | 0.05 (कोई बदलाव नहीं) |
1,000–5,000 | 0.05 | 0.10 |
5,000–10,000 | 0.05 | 0.50 |
10,000–20,000 | 0.05 | 1.00 |
20,000 से ऊपर | 0.05 | 5.00 |
उदाहरण: पहले अगर कोई शेयर ₹6,000 का था, तो वह ₹6,000 → ₹6,000.05 → ₹6,000.10 में मूव करता था. अब यह ₹6,000 → ₹6,000.50 → ₹6,001 में मूव करेगा.
इंडेक्स फ्यूचर्स सेगमेंट के लिए
इंडेक्स का वैल्यू | पुराना टिक साइज (₹) | नया टिक साइज (₹) |
15,000 तक | 0.05 | 0.05 (कोई बदलाव नहीं) |
15,000 – 30,000 | 0.05 | 0.10 |
30,000 से ऊपर | 0.05 | 0.20 |
उदाहरण: पहले निफ्टी 50 इंडेक्स 30,500.05 → 30,500.10 में मूव करता था, अब यह 30,500.00 → 30,500.20 → 30,500.40 में मूव करेगा/
कुल मिलाकर-Tick Size शेयर बाजार के छोटे लेकिन महत्वपूर्ण फैक्टर्स में से एक है. यह आपकी ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी, लिक्विडिटी और प्रॉफिट-लॉस को प्रभावित करता है. NSE के नए नियमों को समझकर ट्रेडिंग और निवेश के सही फैसले लें!
