लखनऊ, राजू मिश्र। उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब से मौतों का मुद्दा एक बार फिर गरम है। इसी मई-जून में जहरीली शराब के सेवन से सिलसिलेवार 104 लोगों की मौत हुई थी। कई दिनों तक शव मिलते रहे, कभी इस गांव में तो कभी उस गांव में। जहरीली शराब की जो बोतलें प्रशासन की कार्रवाई के भय से कूड़े और नहर के किनारे फेंक दी गईं, वे अलग से मौतों का कारण बनीं। अब ऐसा ही आगरा में देखने को मिल रहा है। आगरा में बीते सप्ताह भर में जहरीली शराब के सेवन से मरने वालों की संख्या डेढ़ दर्जन के आसपास पहुंच चुकी है।
अलीगढ़ में जब मौतों का सिलसिला शुरू हुआ तो प्रशासन ने भी कार्रवाई में पूरी सख्ती दिखाई। नतीजन 33 मुकदमे दर्ज कर 86 लोगों को जेल भेजा गया। इसमें 17 शराब माफिया की पहचान की गई। इनकी करीब 120 करोड़ की अचल संपत्ति चिह्न्ति कर उसमें से अब तक 60 करोड़ की संपत्ति जब्त की जा चुकी है। बैंक खातों को सीज कर उनसे भी रकम जब्ती की कार्रवाई की जा रही है। जहरीली शराब के कारोबारियों पर इतनी सख्त कार्रवाई शायद ही पहले कभी हुई हो। इसके बावजूद आगरा में ऐसी घटना का होना बताता है कि कार्रवाई का डंडा चल तो रहा है, लेकिन जहां इसे चलना चाहिए वहां इसकी चोट पूरी नहीं पड़ रही।
आगरा में नकली शराब से प्रभावित गांवों का दौरा करते एडीजी राजीव कृष्ण। जागरण आर्काइव
अलीगढ़ और आगरा में अलग-अलग सस्ते रसायनों से निर्मित शराब का बार कोड व क्यूआर कोड से लैस बोतलों में भरकर सरकारी ठेकों और फिर ग्राहकों के हाथ तक पहुंच जाना किसी छोटे नेटवर्क के बूते की बात नहीं है। जाहिर है कि इसके पीछे मिलावटी शराब के कारोबारियों, आबकारी और पुलिस अधिकारियों का गठजोड़ काम कर रहा है। ऐसा भी नहीं कि यह गठजोड़ कोई हाल में पनपा हो, यह चलता रहता है और इसका पता तब चलता है जब कभी अनाड़ी हाथों
से गुजरकर मिलावटी शराब जहरीली शराब बन जाती है और कुछ मौतें होती हैं। आम तौर पर पहली नजर में पुलिस-प्रशासन ऐसी मौतों को जहरीली शराब से हुई मौत मानने से ही इन्कार कर देता है।