Just Dial को सफलता तक पहुंचाने वाले VSS Mani ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे. आज इस कंपनी की मार्केट कैप लगभग 6 हजार करोड़ है.
नई दिल्ली. वीएसएस मणि (VSS Mani) ने जस्ट डायल (Just Dial) को खड़ा करने से पहले काफी संघर्ष किया. मात्र 50,000 रुपये से कंपनी शुरू की और आज इस कंपनी का मार्केट कैप लगभग 6 हजार करोड़ रुपये है. जस्ट डायल का विचार मन में आने से लेकर कंपनी के हजारों करोड़ के मौजूदा स्वरूप तक वीएसएस मणि ने काफी कुछ देखा, झेला. वीएसएस मणि और डस्ट डायल की कहानी उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो अपना बिजनेस करने के बारे में सोच रहे हैं या शुरू कर चुके हैं.
तमिलनाडु की एक मिडिल-क्लास फैमिली के आए मणि अपनी शुरुआती पढ़ाई के बाद चार्टर्ड अकाउंटेंट का कोर्स (Chartered Accountancy) कर रहे थे. परंतु घर की खराब आर्थिक स्थिति के चलते उन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़कर काम करना पड़ा. 1987 में मणि ने एक कंपनी में सेल्स की नौकरी पकड़ ली, जहां उन्होंने दो साल तक काम किया.
मणि, पूरा नाम वेंकेटाचलम् स्तानू सुब्रमणि (Venkatachalam Sthanu Subramani), शुरू से ही सोचते थे या फिर यूं कहें कि खुली आंखों से सपना देखते थे कि उन्हें लाखों लोगों तक पहुंचना है और उनकी मदद करनी है. लेकिन कैसे करना है, ये समझ आया उन्हें पहली नौकरी के बाद. उनकी पहली नौकरी जिस कंपनी के साथ थी, वो येलो पेजेज़ (yellow pages) और टेलीफोन डायरेक्टरी (telephone directory) संबंधी काम करती थी.
यहीं काम करते हुए उन्हें आइडिया आया कि फोन पर डायरेक्टरी सेवा शुरू की जाए तो काफी स्कोप हो सकता है. इसे यूं समझिए कि ग्राहकों को विक्रेता और विक्रेता को ग्राहक तक पहुंचाने का काम. कस्टमर के लिए कई सारे सेलर उपलब्ध करवाना और सेलर्स को कस्टमर्स की जानकारी देना.
AskMe शुरू किया मगर…
इसी कॉन्सेप्ट के साथ वीएसएस मणि ने अपने साथ दो और लोगों को जोड़ा और AskMe की शुरूआत की. सन 1989 में. यह प्रोजेक्ट 25 लाख रुपये के निवेश के साथ शुरू हुआ. प्रोजेक्ट में संभावनाएं बहुत थी, लेकिन जोखिम (Risk) भी उतना ही था. क्योंकि 1989 में भारत में बहुत कम लोग टेलीफोन के बारे में जानते थे या फिर कभी इस्तेमाल किया था. तब मोबाइल फोन तो थे ही नहीं. इन तमाम अड़चनों के बावजूद प्रोजेक्ट पांच शहरों तक फैल गया, लेकिन विकट आर्थिक परिस्थितयों के चलते प्रोजेक्ट को बंद करना पड़ा. जाहिर है, जब तक किसी बिजनेस से पैसा नहीं बनेगा तो बिजनेस चला पाना संभव नहीं है.
इसके अलावा, तीनों पार्टनर्स के बीच में आपसी समझ और कॉर्डिनेशन की कमी के चलते तीनों ने अपने रास्ते अलग कर लिए.
दूसरा काम किया, वो भी छोड़ दिया
1992 के बाद मणि ने फ्री वेडिंग प्लानर (Free Wedding Planner) मैग्ज़ीन का काम शुरू किया. इस मैग्ज़ीन में शादियों से जुड़ी जानकारियां होती थीं जैसे कि बैंड वाला, केटरर्स, फैशन डिजाइनर और गारमेंट्स रिटेलर इत्यादी. ये काम ठीक चल रहा था कि मणि की अपने को-प्रोमोटर्स के साथ बन नहीं पाई और वे इससे अलग हो गए.
इस मैग्ज़ीन से अलग होने के बाद मणि ने अकेले वेडिंग प्लानर का काम शुरू किया और दिल्ली के प्रमुख अखबारों के जरिए लोगों तक पहुंच बनाई. काम ठीक चल निकला और मणि ने लगभग 80,000 रुपये की बचत कर ली. उन्होंने ये बचत सिर्फ अपने असली कॉन्सेप्ट डायल-इन (Dial-in) सर्विस के लिए की.
पूरी कायनात ने मदद की
आपको “ओम शांति ओम” फिल्म में शाहरुख खान का वह डायलॉग याद होगा – “अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है.” मणि के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
मणि ने अपने 80,000 रुपये में से 30 हजार को FD में डाला और 50 हजार लेकर अपने ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए मुंबई के लिए निकल पड़े. मुंबई में वे जब भी किसी प्रोग्राम में पहुंचते तो लोगों को अपनी सर्विस के बारे में बताते. लोग तारीफ करते और नंबर पूछते कि किस नंबर पर डायल करके ये सेवा ली जा सकती है. तब मणि को समझ में आया कि एक ऐसा नंबर चाहिए, जो बिजनेस के नाम से ज्यादा महत्वपूर्ण और आसान हो
तभी मणि की नजर एक नंबर पर पड़ी जो था 888-8888. ये नंबर मुंबई की कांदीवली एक्सचेंज का था. एक्सचेंज ने 888 से शुरू होने वाली नई सीरीज शुरू की थी. मणि को लगा कि यही नंबर होना चाहिए. मणि एक्सचेंज के जनरल मैनेजर के पास गए और अपना आइडिया बताया. जनरल मैनेजर को आइडिया पसंद आया और वो नंबर मणि को दे दिया गया. उस समय मणि को कोई जानता नहीं था और उनकी किसी बड़े व्यक्ति तक पहुंच भी नहीं थी. एक इंटरव्यू में मणि ने इसी बारे में बात करते हुए कहा, “जब आप सपना देखते हैं और पूरी शिद्दत से उसे पाने की कोशिश करते हैं तो वह आपको मिल ही जाता है.”
जस्ट डायल की लॉन्चिंग
उन दिनों फोन लाइन लेने के लिए एक-एक साल इंतजार करना पड़ता और एक लाइन के लिए लगभग 15 हजार रुपये की लागत आती थी. लेकिन मणि के पास थे सिर्फ 50 हजार रुपये. इन्हीं से सब कुछ करना था.
तमाम कठिनाइयों के बाद मणि ने 888-8888 के साथ जस्ट डायल की शुरुआत कर दी. शुरुआत एक गैराज (garage) से हुई, जिसमें उधार लिया गया फर्नीचर और किराये पर कंप्यूटर रखे गए. अपने एक इंटरव्यू में मणि ने इसी किस्से का जिक्र करते हुए कहा है, “जुनून (passion) ही वह चाबी है जो व्यक्ति की सफलता के दरवाजे खोलती है. यदि पैशन है तो पैसे और संसाधनों की कमी के बावजूद लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.”
1996 के बाद बन गई बात
भारत सरकार 1996 में टेलीफोन लिब्रेलाइज़ेशन पॉलिसी (Telecom Liberalization Policy) लाई. इसका मतलब ये था कि देशभर में अब लैंडलाइन फोन लगवाना ज्यादा मुश्किल नहीं रहा. जैसे-जैसे लैंडलाइन्स की संख्या बढ़ी, जस्ट डायल (Just Dial) भी बढ़ता गया.
उसके कुछ समय बाद भारत में मोबाइल फोन आ गए. तब इंटरनेट काफी धीमा था और फोन पर नहीं चलता था. मोबाइल आने के बाद जस्ट डायल ने दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की की.
निवेशक से कहा, कैश दो, हिस्सा लो
1999 की बात है. उनके पास एक भारतीय कारोबारी आए, जिनकी कंपनी अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड थी. उस कारोबारी ने मणि से पहले कहा कि वो उनकी कंपनी में हिस्सेदारी चाहते हैं, बदले में वे उन्हें अपनी कंपनी में हिस्सेदारी दे देंगे. लेकिन मणि ने साफ इनकार कर दिया. उन्होंने सीधे-सीधे कहा, “मुझे कैश चाहिए. आप कैश दीजिए, तो मैं आपको अपनी कंपनी में कुछ हिस्सेदारी दे सकता हूं.”
तो निवेशक कैश देने पर राजी हो गया. अब मणि के सामने संकट आ गया कि कितना कैश? मणि ने अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट के कंपनी की वेल्यूएशन पूछी तो उसने 15-20 लाख रुपये बताया. मणि ने सोचा कि यदि निवेशक को बताया कि उनकी कंपनी की कुल वेल्यूएशन 20 लाख है तो गड़बड़ हो जाएगी. तो मणि ने अपना दिमाग लगाया और निवेशक से कहा, “क्यों नहीं आप खुद बताते कि आप कितना पैसा देना चाहते हैं?”
इस पर निवेशक ने कहा, “यही कुछ 2.5 मिलियन डॉलर (लगभग 30 लाख डॉलर).” पैसा बैंक में आया और मणि महज तीन साल में करोड़पति बन गए.
योगी बनने निकल गए थे वीएसएस मणि
उनके जीवन का एक रोचक किस्सा ये भी है. जब उनकी कंपनी को निवेशक मिल गया तो मणि ने सोचा कि अब एक साल की छुट्टी ली जाए. मणि ने छुट्टी ली और दुनियाभर में अपनी फैमिली के साथ समय बिताया. इस दौरान उन्होंने योग से लेकर ध्यान तक सबकुछ किया. एक साल पूरा होने के बाद उन्होंने अपनी छुट्टी को आधा साल और बढ़ा दिया. डेढ़ साल बाद वे काम पर वापस लौटे, क्योंकि उन्हें लगा कि सिर्फ मौज-मस्ती करना ही जिंदगी नहीं है.
लोगों की लाइफलाइन बन गया Just Dial
मोबाइल फोन आने के बाद जस्ट डायल मानो लोगों की लाइफलाइन बन गया. ये लोकल सर्च में लीडर था. यदि किसी को डॉक्टर की जरुरत होती या फिर बाइक सर्विस सेंटर की, अपने आसपास रेस्टोरेंट्स की जानकारी लेनी हो या नजदीकी अस्पताल की, लोग झट से फोन निकालते और Just Dial के नंबर पर संपर्क करते.