जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड में कोरोना के मामलों में कमी जरूर आई है, पर चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं। तीसरी लहर की आशंका के बीच ही अब वायरस के नए स्वरूप ने भी चिंता बढ़ा दी है। राज्य में डेल्टा वेरिएंट के तीन उपवंश मिले हैं। डेल्टा प्लस के अलावा वायरस के अन्य म्यूटेशन भी खतरे का संकेत दे रहे हैं।प्रदेश में डेल्टा प्लस (एवाई.1) के अभी तक दो मामले आए हैं। यह दोनों मामले ऊधमसिंह नगर जनपद से हैं। इसके अलावा डेल्टा वेरिएंट के दो अन्य स्वरूप एवाई.4 व एवाई.12 की भी राज्य में दस्तक हो चुकी है। चिंता की बात ये है कि इजराइल में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी एवाई.12 म्यूटेशन के कारण ही हुई है। वहां वृहद स्तर पर टीकाकरण के बावजूद मामले बढ़े हैं। वहीं एवाई.4 म्यूटेशन ने कर्नाटक में खासा कहर बरपाया है। अंदेशा इस बात का है कि वायरस के यह नए स्वरूप कहीं तीसरी लहर के कारक न बन जाएं।
दरअसल, कोरोना वायरस लगातार अपने रूप बदल रहा है। चीन के वुहान से अब तक कई बड़े बदलाव हो चुके हैं। जिन्हें अलग अलग वेरिएंट के रूप में पहचाना गया है। इसके अलावा विभिन्न वेरिएंट के कई उपवंश भी हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, राज्य से अब तक करीब डेढ़ हजार सैंपल जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए दिल्ली भेजे गए हैं। इनमें यदि डेल्टा वेरिएंट की बात करें तो इसके तीन उपवंश यहां मिले हैं। डेल्टा प्लस के अभी दो ही मामले रिपोर्ट हुए हैं। वहीं 32 सैंपल में एवाई.12 और दस में एवाई.4 की भी पुष्टि हुई है। देहरादून के दस, हरिद्वार के सात, चमोली के चार, नैनीताल के तीन, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग व पिथौरागढ़ में दो-दो और टिहरी गढ़वाल में एक सैंपल में एवाई.12 की पुष्टि हुई है। वहीं, देहरादून व पिथौरागढ़ के तीन-तीन और हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर के दो-दो सैंपल में एवाई.4 की पुष्टि अभी तक हुई है।
भारतीय सार्स-कोविड-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम की ओर से कहा गया है कि इजराइल में कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी की वजह बना एवाई.12 म्यूटेशन देश के कई राज्यों में मिला है। हालांकि इसकी प्रभावशीलता के आकलन के लिए अभी और गहनता से जांच की जरूरत है। यह अलग बात है कि सूबे का स्वास्थ्य महकमा इसे बड़ा खतरा नहीं मान रहा है।
डा. पंकज सिंह (राज्य नोडल अधिकारी एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम) का कहना है कि राज्य में डेल्टा प्लस (एवाई.1) के अभी तक दो ही मामले आए हैं। वहीं दस मामले एवाई.4 व 32 एवाई.12 के हैं। डेल्टा के उपवंश, एवाई.4 व एवाई.12 को ज्यादा घातक नहीं माना गया है। राज्य में इससे संबंधित जितने मरीज थे, वह बिना लक्षण या कम लक्षण वाले थे। इसके बहुत ज्यादा प्रसार के भी प्रमाण नहीं मिले हैं।
डा. आशुतोष सयाना (प्राचार्य दून मेडिकल कालेज) का कहना है कि सार्स-कोविड-2 के कई वेरिएंट हैं। इन्हीं में एक डेल्टा वेरिएंट है। डेल्टा वेरिएंट की भी अब तक 13 उपवंश या उपस्वरूप मिले हैं। डेल्टा प्लस, एवाई.4 व एवाई.12 सभी अलग-अलग उपवंश हैं। जिनकी प्रभावशीलता भी अलग-अलग है।
वेरिएंट और म्यूटेशन में अंतर
दून मेडिकल कालेज की वायरोलाजी लैब के को-इन्वेस्टिगेटर डा. दीपक जुयाल ने बताया कि वायरस में हुए बड़े बदलाव को अलग नाम देकर वेरिएंट के रूप में पहचाना जाता है। जबकि वायरस में होने वाले छोटे बदलाव को म्यूटेशन के रूप में जाना जाता है। उन्होंने बताया कि वायरस में लगातार बदलाव होते रहते हैं और इसीलिए लगातार जीनोम सीक्वेसिंग के जरिये उसमें हो रहे बदलावों को पहचाने की कोशिश की जाती है।