नई दिल्ली [आशीष गुप्ता]। दिल्ली दंगे के एक मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपित जावेद को आगजनी के आरोप से बरी कर दिया। बाकी आरोपों पर सुनवाई के लिए मामले को मुख्य महानगर दंडाधिकारी के कोर्ट में भेज दिया है। यह आदेश देते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव के कोर्ट ने कहा कि मूल शिकायत में आगजनी का जिक्र न होने पर पूरक बयान के आधार पर किसी को इस तरह के आरोप के दायरे में नहीं लाया जा सकता। पुलिस ने बयान के आधार पर आरोपपत्र में आरोपित पर आगजनी का आरोप लगाया, यह जानकर डर लगता है। माना कि सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ विचार किया जाना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि व्यावहारिक ज्ञान की अनदेखी की जाए। इस स्तर पर उपलब्ध अभिलेखों को देखते हुए दिमाग लगाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि चार शिकायतकर्ताओं की लिखित शिकायत में आगजनी का आरोप नहीं था, तो पुलिस कर्मी की गवाही के कोई मायने नहीं।
गत वर्ष दयालपुर इलाके में भागीरथी विहार फेज-दो ब्रजपुरी रोड स्थित पुष्पा देवी की दुकान से दंगाइयों ने सामान चोरी कर लिया था। पीड़िता की शिकायत पर मुकदमा दर्ज हुआ था। इस मुकदमे में गुरु नानक नगर गली नंबर-एक में रहने वाले सुरेश चंद गुप्ता के घर, पुराना मुस्तफाबाद गली नंबर-दो स्थित आलोक अग्रवाल के गोदाम और लीलाधर की दुकान में लूटपाट व तोड़फोड़ की शिकायत को जोड़ दिया गया था। इस मामले में आरोपित जावेद को 24 जुलाई 2020 को जमानत मिल गई थी।
इस मामले में आरोप तय करने को लेकर चल रही सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने अब तक अन्य आरोपितों को गिरफ्तार नहीं किया है। जांच में कुछ भी नया सामने नहीं आया। गत वर्ष आरोपित को जुलाई देते वक्त जांच जहां थी, अब तक वहीं ठहरी हुई है। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ताओं ने अपनी मूल शिकायत में कहीं भी आगजनी का जिक्र नहीं किया था। सिर्फ एक शिकायतकर्ता ने बाद में दिए पूरक बयान में आग लगने की बात कही। उसके ही आधार पर आरोपपत्र में आगजनी का आरोप शामिल कर लिया गया। यह जानकर डर लगता है।
अदालत ने बचाव पक्ष के वकील नासिर अली की दलीलों पर गौर किया कि घटना का कोई चश्मदीद गवाह, कोई सीसीटीवी फुटेज या तस्वीर नहीं है। इसने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि शिकायतकर्ताओं ने भीड़ द्वारा आग या विस्फोटक पदार्थ से क्षति पहुंचाए जाने के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा।