Maharashtra Politics मुंबई में हुए एक दुष्कर्म कांड पर टिप्पणी करते हुए हाल ही में शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय लिखा गया। चूंकि दुर्योग से इस कांड को अंजाम देनेवाला व्यक्ति उत्तर प्रदेश के जौनपुर का मूल निवासी था, इसलिए संपादकीय में इस कांड को ‘जौनपुर पैटर्न’ करार दिया गया। यह बात मुंबई में रहनेवाले जौनपुर मूल के लोगों के साथ-साथ सभी हिंदीभाषियों को चुभी है, क्योंकि मुंबई के विकास में हिंदीभाषियों का खून और पसीना दोनों बहता रहा है।
हिंदीभाषियों के इस योगदान को मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) द्वारा तैयार करवाई गई एक मानव विकास रिपोर्ट में करीब एक दशक पहले रेखांकित किया जा चुका है। संयोग से उस समय भी बीएमसी पर शिवसेना का ही शासन था और राज्य में सरकार कांग्रेस-राकांपा की थी। इस रिपोर्ट में दूसरे राज्यों से आए लोगों के मुंबई की अर्थव्यवस्था में योगदान की चर्चा भी की गई है। रिपोर्ट मानती है कि अन्य राज्यों से आए लोगों ने मुंबई में ज्यादातर मेहनत वाले काम संभाले और मुंबई की अर्थव्यवस्था संभालने में मददगार साबित हुए, क्योंकि उस समय मुंबई में इस प्रकार के काम करनेवालों की जरूरत थी।
इस प्रकार की रिपोर्टे सामान्यतया राज्य स्तर पर तैयार की जाती रही हैं। यह पहला अवसर था, जब किसी महानगरपालिका ने इस प्रकार का अध्ययन करवाया था। इस रिपोर्ट के अनुसार 1961 से 2001 के बीच उत्तरी राज्यों से आनेवाले प्रवासियों ने मुंबई की आबादी बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया। 2001 की जनगणना के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट के मुताबिक उस समय मुंबई में उत्तर प्रदेश से आनेवालों की आबादी 24.28 फीसद, बिहार वालों की 3.50 फीसद, मध्य प्रदेश वालों की 1.14 फीसद, राजस्थान वालों की 3.14 फीसद तथा गुजरात वालों की 9.58 फीसद थी। यदि बढ़ोतरी के इस अनुपात को ध्यान में रखें तो पिछले दो दशक में मुंबई में हिंदीभाषियों एवं गुजरातियों की आबादी 50 फीसद से ऊपर होनी चाहिए। दरअसल यही आंकड़े शिवसेना की चिंता एवं भाजपा का उत्साह बढ़ा रहे हैं।
मुंबई भाजपा के उपाध्यक्ष पवन त्रिपाठी की मानें तो मुंबई के 227 वार्डो में करीब 120 सीटें ऐसी हैं, जहां अकेले हिंदीभाषी ही निर्णायक या प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। त्रिपाठी के मुताबिक हिंदी एवं गुजराती भाषी मतदाताओं की इस ताकत की काट के लिए ही शिवसेना एक बार फिर मराठी कार्ड खेलना चाहती है। इसीलिए वह साकीनाका में हुए बर्बर दुष्कर्म कांड को कभी ‘जौनपुर पैटर्न’ करार देती है तो कभी ठाणो में एक हिंदीभाषी फेरीवाले की किसी गलती पर सभी फेरीवालों का रोजगार बंद करवाने लगती है। हिंदीभाषियों को यह भी अच्छी तरह याद है कि राज्य में शिवसेना नीत महाविकास आघाड़ी की सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद अंटाप हिल क्षेत्र में इंटरनेट मीडिया पर सिर्फ एक पोस्ट लिख देने के कारण एक हिंदीभाषी युवक को अपमानित किया गया था।
दरअसल शिवसेना ऐसी घटनाओं एवं बयानों के जरिये मराठीभाषी मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना चाहती है, ताकि 30 साल से बीएमसी पर चले आ रहे अपने राज को आगे भी कायम रख सके। दूसरी ओर पिछले विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना से मिले धोखे से तिलमिलाई भाजपा अगले बीएमसी चुनाव में उसकी सत्ता छीनकर उसे पटखनी देना चाहती है, क्योंकि शिवसेना मुंबई महानगरपालिका को ही अपनी असली ताकत मानती है। पिछले बीएमसी चुनाव में भाजपा उससे सिर्फ दो सीटें पीछे रह गई थी। वह जानती है कि यदि मुंबई में वह अपने प्रतिबद्ध मराठी वोटबैंक के साथ-साथ अन्य भाषा-भाषियों को भी अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो जाए तो शिवसेना को आसानी से हराया जा सकता है। इन अन्य भाषा-भाषियों में बड़ा वर्ग हिंदीभाषियों एवं गुजरातीभाषियों का है, जो कि 50 फीसद से अधिक है। हां, हिंदीभाषियों की कुल आबादी में मतदाताओं की संख्या कम हो सकती है, क्योंकि इनमें से ज्यादातर श्रमिक वर्ग से हैं और वे अपने मताधिकार का प्रयोग अपने गृहराज्यों में जाकर करते हैं। इसके बावजूद मुंबई में कई विधानसभा एवं बीएमसी वार्डो में वे निर्णायक स्थिति में हैं। यही कारण है कि 2008 के विधानसभा चुनाव में आठ हिंदीभाषी विधायक चुनकर आए थे।
2014 की मोदी लहर से ही मुंबई में हिंदीभाषियों का रुझान भाजपा की ओर हो चुका है। जबकि उस समय ज्यादातर हिंदीभाषी नेता कांग्रेस में थे। पिछले सात वर्षो में कांग्रेस के ज्यादातर हिंदीभाषी नेता भाजपा में आ चुके हैं। बीएमसी में लंबे समय तक कांग्रेस की पहचान रह चुके राजहंस सिंह इन दिनों भाजपा में रहकर हिंदीभाषियों की चौपाल कर रहे हैं तो मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके कृपाशंकर सिंह अब प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। भाजपा ने हाल ही में राज्यसभा की एक मात्र सीट के चुनाव के लिए भी मुंबई भाजपा के हिंदीभाषी महासचिव संजय उपाध्याय को मैदान में उतारा है। शिवसेना से पहले मुंबई महानगरपालिका पर कांग्रेस का राज था। अब भाजपा-शिवसेना की लड़ाई में कांग्रेस सैंडविच बन चुकी है। ऐसे में कांग्रेस की गति पिछले चुनाव से भी खराब हो तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।