Artificial Sun: इंसान के जीवन और सेहत के लिए सूरज की रोशनी की बेहद जरूरत होती है. केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि जानवरों और पेड़-पौधों के लिए भी सूरज की रोशनी बेहद अहम है. आम तौर रोजाना दिन में सूरज की रोशनी आती है. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि इस पृथ्वी पर कई ऐसे इलाके हैं जहां लोग सूरज की किरण देखने तक को तरस जाते हैं. आज हम आपको ऐसे ही एक गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के लोगों को पहले सूरज की रोशनी नहीं मिलती थी. लेकिन यहां रहने वालों ने एक जुगाड़ किया और अपना सूरज बना लिया.
तीन महीने नहीं निकलता था सूरज
इटली के इस गांव का नाम विगल्लेना है. ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की वजह से तलहटी में बसे गांव में सूरज की रोशनी नहीं आ पाती. मिलान के उत्तर में यह गांव लगभग 130 किलोमीटर नीचे स्थित है. इस गांव की आबादी 200 है. यहां पर नवंबर से फरवरी तक सूरज नहीं निकलता है. लोगों की समस्या को देखकर गांव के एक आर्किटेक्ट और इंजीनियर ने एक रास्ता खोज लिया. इंजीनियर ने गांव के मेयर की मदद से विगल्लेना गांव के लिए एक आर्टिफीशियल सूरज बना दिया.
पहाड़ पर लगाया अपना सूरज
तीन महीने तक ये गांव अंधेरे में डूबा रहता था. इस वजह से वहां रह रहे लोगों के सेहत पर भी बुरा असर पड़ता था. इस समस्या का समाधान गांव के ही एक आर्किटेक्ट और इंजीनियर ने निकाला और एक आर्टीफिशियल सूरज बना डाला. साल 2006 में इंजीनियर ने गांव के मेयर की मदद से पहाड़ों की चोटी पर 40 वर्ग किलोमीटर का एक शीशा लगवा दिया. शीशे को इस तरह लगाया गया कि उस पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी रिफलेक्ट होकर सीधे गांव पर गिरे.
6 घंटे देता है रोशनी
पहाड़ की चोटी पर लगाया गया ये शीशा दिन में 6 घंटे के लिए गांव को रोशन करता है. शीशे का वजह करीब 1.1 टन है और इसमें 1 लाख यूरो का खर्च आया. इस कारीगरी में तकनीक की भी मदद ली गई है, पहाड़ पर लगाए गए शीशों को कंप्यूटर द्वारा कंट्रोल किया जाता है. अपना खुद का सूरज बनाने के बाद विगल्लेना गांव दुनियाभर में चर्चा का केंद्र बन गया, अब तो यहां टूरिस्ट भी इस कारीगरी को देखने आते हैं.
ऐसे आया आइडिया
विगल्लेना गांव के मेयर पियरफ्रेंको मडाली ने बताया कि इस आर्टीफिशियल सूरज का आइडिया किसी वैज्ञानिक का नहीं बल्कि एक आम इंसान का है. यह आइडिया तब सामने आया जब सर्दियों के मौसम में लोग धूप ना मिलने की वजह से घरों में ही रहा करने लगे. शहर ठंड और अंधेरे की वजह से बंद हो जाता था. इसके बाद करीब 87 लाख रुपए की लागत से एक आर्टीफिशियल सूरज को तैयार किया गया. अब सर्दियों में भी गांव को सूरज की रोशनी मिलती है.