नई दिल्ली, मनीष कुमार गुप्ता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का बड़ा ऐलान किया है। शुक्रवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में देशवासियों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि सरकार नेक नीयत और समर्पण भाव से देश के किसानों के कल्याण के लिए यह कानून लेकर आई थी, लेकिन देश के कुछ किसान भाइयों को सरकार यह समझा नहीं पाई।
कहीं ना कहीं बढ़ते राजनीतिक विरोध और किसान आंदोलन की वजह से मोदी सरकार ने कृषि बिल वापस लेने का फैसला कर लिया। मैं समझता हूं कि मोदी सरकार ने यह फैसला राजनीतिक कारणों और दुखी मन से लिया होगा। मोदी जी ने ठीक ही कहा था कि हम यह कानून नेक नीयत से लाए थे। लेकिन हम किसानों को समझा नहीं पाए। संभवत: देश के विकास में यह एक झटका होगा। आने वाली सरकारें भी कृषि और मजदूरों के लिए बड़ा सुधारात्मक फैसला लेने से बचेंगी। अगर कोई क्रांतिकारी बदलाव का फैसला होगा तो उस पर राजनीतिक कारणों से विरोध होना संभव है और ऐसे में कहीं न कहीं विकास की गाड़ी को अड़ंगा लगता हुआ नजर आ रहा है।
जिस तरीके से मोदी सरकार कृषि को एक व्यवसाय के रूप में देखकर जमीन से ज्यादा उपज का सही मूल्य, कृषि उपज का व्यावसायिक इस्तेमाल, किसानों को अपने उपज का उचित मूल्य, कृषि उपज किसानों को दलाली से मुक्ति आदि मुद्दों को लेकर जो सुधारवादी कदम उठाए जा रहे थे। वह निश्चित रूप से 10 वर्ष आगे धकेल दिए गए हैं। इससे न केवल कृषि क्षेत्र को झटका होगा बल्कि असंगठित क्षेत्र के मजदूर भी अब सुधारों से वंचित रह जाएंगे। मोदी सरकार को कहीं ना कहीं बदलाव के तौर पर छोटे स्तर पर यह सुधार जारी रखने चाहिए, जिस तरीके से फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री और फूड बेस्ड इंडस्ट्री में सुधार की जो आशा दिख रही थी वह आशाओं पर कुठाराघात हो गया है।
यह किसान बिल बड़े स्तर पर किसानों को लाभ पहुंचाने वाले थे। देश की जीडीपी में सुधार होने की संभावनाएं थीं, उनके लिए भी एक झटका है। इन कानूनों के रद्द होने से इंश्योरेंस, फूड प्रोसेसिंग, असंगठित सेवा क्षेत्रों आदि इंडस्ट्रीज को भारी झटका लगा है। वहीं कृषि योग्य भूमि का समुचित इस्तेमाल ना होने से देश की अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने की संभावनाओं को कम जरूर किया है।
सबसे बड़ी बात यह है इस तरीके से विरोध के चलते आने वाली सरकार कोई भी बड़ा बोल्ड फैसला लेने में हिचकेगी, जो कि विकासशील देश की प्रगति के हिसाब से उचित नहीं है।