Conversion in Ranchi: तकरीबन 20 साल पहले इस इलाके में चर्च बना था. बताया जाता है कि इसके बाद से क्षेत्र में धर्मांतरण की गतिविधियों में काफी तेजी आई है. ग्रामीणों का कहना है कि सरना धर्मावलंबियों को प्रलोभन दिया जाता है. इसके चलते बड़ी संख्या में लोग ईसाई धर्म अपना रहे हैं.
रांची. झारखंड की राजधानी रांची समेत प्रदेश के अन्य हिस्सों में मिशन के तहत धर्मांतरण का खेल जारी है. ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में भोले-भाले आदिवासी परिवारों को बहला-फुसलाकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है. यह तब हो रहा है जब राज्य में धर्मांतरण कानून लागू है. इसके बावजूद राजधानी में ही इस कानून का खुलेआम मखौल बनाया जा रहा है.
झारखंड में धर्मांतरण कानून लागू है. इसके बावजूद आदिवासी परिवारों पर लगातार वैचारिक और धार्मिक हमले किए जा रहे हैं. राजधानी रांची के नगड़ी प्रखंड के महुआ टोली और आस-पास के टोले और मुहल्ले में धर्मांतरण का खेल एक रणनीति और साजिश के तहत जारी है. महुआ टोली और आसपास के मोहल्लों में करीब 150 से ज्यादा सरना धर्म को मानने वाले परिवार रहते हैं, लेकिन अब इनमें से कई परिवार ईसाई धर्म को अपना चुके हैं. सरना धर्म पर हो रहे इस तरह के धार्मिक हमले से ग्रामीण बेहद परेशान और चिंतित हैं.
ग्रामीणों का गंभीर आरोप
ग्रामीण करमा उरांव बताते हैं कि चर्च की ओर से लगातार प्रलोभन और सुविधाओं का लालच दिया जाता है. इस जाल में फंसकर कई परिवार धर्मांतरण कर चुके हैं. दरअसल, रविवार का दिन होने के कारण धर्मांतरण कर चुके कई ग्रामीण डोहीटोली चर्च में प्रार्थना करने पहुंचे थे. इनमें से कुछ लोगों से चर्च के गेट पर ही बात करने की कोशिश की गई. ये लोग सवालों से घबरा गए और उन्होंने कुछ भी कहने से साफ तौर पर मना कर दिया.
सरना धर्म से ईसाई धर्म में धर्मांतरण कर चुकी मारिया मिंज ने बताया कि वह अब सरना धर्म को छोड़ चुकी हैं. अब वह प्रभु यीशु की चरणों में अपना बाकी जीवन बिताएंगी. हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि धर्मांतरण करने के लिए उन्हें किसी तरह का प्रलोभन दिया गया या कोई अलग से सुविधा मुहैया कराई गई.
चर्च बनने के बाद धर्मांतरण में तेजी
कई ग्रामीण पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताते हैं कि ईसाई मिशनरियों की ओर से सरना धर्मावलंबियों को सुविधाओं का लालच दिया जाता है. साथ ही पारिवारिक मदद की बात भी कही जाती है. इसलिए कई परिवारों ने सरना धर्म को छोड़कर चर्च जाना स्वीकार कर लिया. जानकारी मिली कि करीब 20 साल पहले गांव के बीचों-बीच बने चर्च के बाद आसपास के इलाकों में धर्मांतरण के काम में तेजी आई.
बड़ी संख्या में लोग बने ईसाई
चर्च के पास्टर नोबेल कच्छप ने साफ बताया कि सिर्फ सरना धर्म ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोग यहां आकर प्रार्थना करते हैं. पास्टर नोबेल कच्छप प्रलोभन और सुविधाओं का लालच जैसे आरोपों से साफ मुकर गये. उन्होंने यह जरूर बताया कि साल 2004 में जब गांव में चर्च बना था तो उस समय करीब 20 से 30 लोग चर्च आते थे, लेकिन आज 150 से ज्यादा परिवार यहां प्रार्थना के लिए पहुंचते हैं. वे लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं.