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Satyamev Jayate 2: पुराने फॉर्मूले में नई कहानी, जानें कैसी है जॉन अब्राहम की फिल्म

जॉन अब्राहम इस सत्यमेव जयते सीरीज से नए सनी देओल के रूप में उभरे हैं. पिछली बार ये प्रयोग कामयाब रहा था, तो टी-सीरीज ने इस मूवी का बजट कम करते हुए फिर से उसी फॉर्मुले को नई कहानी के साथ दर्शकों के सामने पेश किया गया है.

नई दिल्ली: जॉन अब्राहम इस सत्यमेव जयते सीरीज से नए सनी देओल के रूप में उभरे हैं. पिछली बार ये प्रयोग कामयाब रहा था, तो टी-सीरीज ने इस मूवी का बजट कम करते हुए फिर से उसी फॉर्मूले को नई कहानी के साथ दर्शकों के सामने पेश किया गया है लेकिन अंदाज वही है, जो इस मूवी में जॉन के एक डायलॉग में सही से नजर आता है- ‘गांधीजी की जय हो लेकिन भगत सिंह मेरा बंदा है’. यूं पुरानी कई मूवीज में ये फॉर्मूला अपनाया गया है, चाहे वो ‘अंधा कानून’ हो या ‘इंसाफ का तराजू’, लेकिन उसको और ज्यादा हिंसक और गली मोहल्ले के लड़कों की भाषा और तेवर में इसी सीरीज में दिखाया गया है. ऐसे में कई बार ये मूवी इमोशनली आम आदमी को जरूर प्रभावित करेगी, लेकिन तर्कों की कसौटी पर कई बार खरी नहीं उतरती.

फिल्म: सत्यमेव जयते 2

रिलीज डेट: 24 दिसम्बर

डायरेक्टर: मिलाप जावेरी

स्टार कास्ट: जॉन अब्राहम, दिव्या खोसला, हर्ष छाया, अनूप सोनी, गौतमी कपूर

स्टार रेटिंग- 3

कहां देख सकते हैं: प्राइम वीडियोज पर

ऐसी है कहानी

कहानी है यूपी के होम मिनिस्टर सत्या (जॉन अब्राहम) और उसके आईपीएस भाई जय (जॉन अब्राहम) की, जो दोनों इतने ऊंचे ओहदे पर होकर भी गांधीवादी तरीके से, कानून के रास्ते अपराधियों से निपट नहीं पाते, ऐसे में वो वही रास्ता अपनाते हैं, जो ‘सत्यमेव जयते’ की में आजमाया गया था. उस मूवी में जो कहानी थी कि ईमानदार पिता को जिंदा जला दिया गया था और एक बेटा (मनोज बाजपेयी) पुलिस इंस्पेक्टर बनता है और दूसरा पेंटर (जॉन अब्राहम) जो अपराधियों को अपने हाथों से सजा देता है और एक दिन दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं. 

फिल्म में ट्विस्ट का तड़का

इस मूवी में भी ऐसा ही कुछ है, कानून हाथ में लेकर सजा देने का काम करता है होम मिनिस्टर, कभी स्ट्राइक करने वाले डॉक्टर्स के मुखिया को, कभी ऑक्सीजन सिलेंडर्स काला बाजारी करने वाले नेताओं को, कभी भिखारियों का गैंग चलाने वाले गुंडे को जिंदा जला देता है. कहानी में असल मोड़ तब आता है, जब कहानी फ्लैशबैक में जाती है और बताती है कि उनकी मां (गौतमी कपूर) क्यों कोमा में गईं और उनके ईमानदार किसान नेता पिता बलराम आजाद  (जॉन अब्राहम) की हत्या क्यों होती है.

कई सीन्स पर उठते हैं सवाल

कहानी को पूरी तरह से सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त आम लोअर मिडिल क्लास के लिए बनाया गया है, जिस तरह के डायलॉग्स हैं, वो भी इस तरफ गवाही देते हैं. कई लॉजिकहीन सींस आपको देखने को मिलेंगे, एक आईपीएस कहता है ‘मेरे रहते देश का कोई भी गुनहगार बच नहीं सकता’, जबकि वो राज्य स्तर का अधिकारी है. एक नेता कहता है कि सरकारी हॉस्पिटल्स में स्ट्राइक करवाकर उन्हें बंद करवा दो, फिर मैं वहां प्राइवेट हॉस्पिटल बनाऊंगा, ऐसा आज तक नहीं हुआ. होम मिनिस्टर पर मस्जिद में पत्थर फेंके जाते हैं, उसकी सिक्योरिटी कहां गई? दूषित खाना खाते ही बच्चों को सीधे ऑक्सीजन सिलेंडर्स की जरूरत क्यों पड़ी, समझ से बाहर है. होम मिनिस्टर और आईपीएस भाई भी मिलकर कुछ नहीं कर पाते.

जॉन ने सनी देओल को भी किया फेल

एक सीन तो सनी देओल को भी मात करता है, जब दो दो जॉन अब्राहम मिलकर उड़ते हैलीकॉप्टर को हाथों से पकड़कर उड़ने से ही रोक देते हैं. सबसे विवादास्पद है वो डायलॉग जहां 40 मुस्लिम बच्चे ऑक्सीजन की कमी से मर जाते हैं, तो एक नेता बोलता है कि आपकी पार्टी के 40 वोटर कम हो गए.

फिल्म का म्यूजिक और गाने हैं खास

मनोज मुंतशिर का लिखा ‘मेरी जिंदगी है तू’ और ‘तेनू लहंगा’ गुनगुनाने लायक हैं. लेकिन म्यूजिक का बड़ा रोल इस मूवी में नहीं दिखता है. पूरा फोकस जॉन अब्राहम को बाहुबली दिखाने और राष्ट्रवाद की भरपूर डोज देने में है, लेकिन सेकुलर राष्ट्रवाद जो भ्रष्टाचारियों को कानून के रास्ते नहीं बल्कि अपने हाथों से सजा देने के समर्थन में है. ऐसे में तीन तीन जॉन अब्राहम के होते हुए किसी चौथे की जगह इस मूवी में थी नहीं, तभी हर्ष छाया को महत्वपूर्ण रोल दिया गया है. हालांकि, फिल्म में नोरा फतेही का ‘कुसू-कुसू ‘ गाने पर आइटम डांस जॉन के फैंस को पसंद आ सकता है

दिव्या को कम मिला स्पेस

दिव्या खोसला को भी उतना स्पेस नहीं मिल पाया है, जो शायद उनके लिए सही भी था क्योंकि उनकी एक्टिंग को लेकर उन्हें जज करने की गुंजाइशें भी कम हो गई हैं. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि एकदम जमीनी आदमी के गुस्से को मूल में रखकर बनाई गई सीरीज की ये नई मूवी लोगों को कितना पसंद आएगी क्योंकि कायदे के सिनेमा लवर इसे एक सिरे से खारिज भी कर सकते हैं.

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