IIT खड़गपुर की ओर से 2022 के लिए जारी किए गए कैलेंडर में दशकों से चली आ रही आर्यों के विदेश से आने की थ्योरी को गलत साबित किया है. इस कैलेंडर के जारी होते ही इस पर विवाद छिड़ गया.
नई दिल्ली: इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी खड़गपुर (IIT Kharagpur) के द्वारा जारी किया गया कैलेंडर इन दिनों काफी चर्चा में है. इस कैलेंडर में IIT ने दशकों से चली आ रही आर्यों के विदेश से आने की थ्योरी को गलत साबित किया है. IIT की ओर से 2022 के लिए जारी किए गए कैलेंडर में कुल 12 तथ्यों के साथ इस थ्योरी को गलत साबित किया गया है. इस कैलेंडर के जारी होते ही इस पर विवाद छिड़ गया.
कई लोगों ने कैलेंडर को माना सही
IIT खड़गपुर के इस कैलेंडर को कई लोगों ने सही करार दिया है, तो कुछ साइंटिस्ट्स ने इस पर आश्चर्य जताया है और कहा कि वे अब भी इस कॉन्टेंट का अध्ययन कर रहे हैं कि आखिर यह कहां से आया है. हालांकि संस्थान और इस कैलेंडर को तैयार करने वाले ‘सेंटर फॉर एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम’ का दावा है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है और यह आर्यों के हमले को लेकर गढ़े गए मिथक को तोड़ने का प्रयास है. इस कैलेंडर को लेकर कई शिक्षाविदों का आरोप है कि ये टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार की कोशिश में इतिहास को विकृत करने का प्रयास कर रहा है.
क्या है विवाद की वजह?
ये चर्चित कैलेंडर IIT के वार्षिक दीक्षांत समारोह में जारी किया गया था. वहां केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान मौजूद थे. इस कैलेंडर में छपी कुछ खास बातें हम आपको बताते हैं, जिनके चलते इस पर विवाद हो रहा है.
1. ‘रिकवरी ऑफ द फाउंडेशन ऑफ इंडियन नॉलेज सिस्टम’ शीर्षक वाले इस कैलेंडर में भारत की पारंपरिक अध्ययन प्रणाली को दर्शाया गया है.
2. इस कैलेंडर में हर महीने के पेज पर दुनिया के मशहूर शख्सियतों की तस्वीरें हैं और इस पर भारतीय गणितीय भाषा में विषयों के नाम लिखे हैं.
3. उदाहरण के तौर पर अगस्त महीने वाले पेज पर विष्णु पुराण के हवाले से सप्त ऋषि को प्रदर्शित किया गया है. उनको भारतीय ज्ञान के अग्रदूत के रूप में बताया गया है.
4. इस कैलेंडर में एक तरफ भारतीय ज्ञान परंपरा की ऐतिहासिकता का जिक्र किया गया है तो वही ए. एल बाशम, वॉल्टेयर, जेम्स ग्रांट डफ जैसे कई पश्चिमी विद्वानों का भी जिक्र किया गया है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, चिकित्सा पद्धति एवं अन्य चीजों की सराहना की थी.
5. स्कॉटिश मूल के इतिहासकार जेम्स ग्रांट डफ के भी एक उद्धरण को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें वह कहते हैं, ‘आज की दुनिया में विज्ञान की ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिनके बारे में हम मानते हैं कि वे यूरोप में ही बनी है, लेकिन ऐसी तमाम चीजों का सदियों पहले ही भारत में आविष्कार हुआ है.’
6. कैलेंडर में स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद जैसे भारतीय चिंतकों का भी जिक्र किया गया है. विवेकानंद की उस टिप्पणी को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसमें वो कहते हैं, ‘आप किस वेद और सूक्त में पाते हैं कि आर्य किसी दूसरे देश से भारत में आए थे? यूरोप में कहा जाता है कि ताकतवर की जीत होगी और कमजोर मारा जाएगा. लेकिन भारत की धरती पर हर सामाजिक नियम कमजोर के संरक्षण की बात करता है.
संस्थान का दावा
IIT के सेंटर आफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम्स के प्रमुख प्रोफेसर जय सेन ने कैलेंडर के लिए सामग्री और इसकी डिजाइन तैयार की है. कैलेंडर पर बढ़ते विवाद पर उन्होंने कहा है कि ‘इस कैलेंडर का मकसद सच को सामने लाना है. सोशल मीडिया पर लोग इस प्रयास की सराहना कर रहे हैं.’ प्रोफेसर सेन का दावा है कि कैलेंडर के सभी 12 पन्नों पर विज्ञानसम्मत दलीलों के साथ उनके समर्थन में 12 सबूत भी दिए गए हैं.