मध्यप्रदेश के लिहाज से बात करें तो एमपी में 16 प्रतिशत एससी वर्ग के लिए, 14 फीसद ओबीसी वर्ग के लिए और एसटी वर्ग के लिए 20 फीसद आरक्षित (Reservation) है. जो कि संविधान के दायरे में आता है.
प्रिया सिन्हाः मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर ओबीसी आरक्षण को लेकर पेंच फंसा हुआ है. सर्वोच्च अदालत के ओबीसी रिजर्व्ड सीट को सामान्य घोषित कर चुनाव कराने के निर्देश के बाद पंचायत चुनाव टल चुके हैं. सरकार ने कहा बिना ओबीसी वर्ग के चुनाव में नहीं कराए जाएंगे. सरकार मे इसके लिए सर्वोच्च अदालत में पुनर्विचार याचिका भी दायर की. जिसपर अब 17 तारीख को सुनवाई होनी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाकी की भी याचिका को इसमें जोड़कर 17 जनवरी को अब सुनवाई होगी.
समझिए आरक्षण का फेर क्या है और क्यों इसकी वजह से अटका है पंचायत चुनाव!
दरअसल मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग की आबादी 50 फीसदी से अधिक है. जाहिर है इतने बड़े वर्ग को कोई भी दल नाराज करना नहीं चाहता. मौजूदा स्थिति में देशभर में आरक्षण का प्रावधान 50 फीसद है जो कि एससी, एसटी, और ओबीसी वर्ग को मिलाकर है. बाकी की 50 फीसदी जनरल वर्ग के लोगों के लिए है. अगर मध्यप्रदेश के लिहाज से बात करें तो एमपी में 16 प्रतिशत एससी वर्ग के लिए, 14 फीसद ओबीसी वर्ग के लिए और एसटी वर्ग के लिए 20 फीसद आरक्षित है. जो कि संविधान के दायरे में आता है.
मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग की बड़ी आबादी को देखते हुए 27 फीसद आरक्षण की मांग होती रही है. कमलनाथ सरकार ने इसके लिए कदम भी उठाया लेकिन कानूनी दांव पेंच में वो असफल रहा. अब शिवराज सरकार की कोशिश है कि ओबीसी वर्ग को 27 फीसद आरक्षण मिलें लेकिन अगर ऐसा होता है तो 50 फीसद कुल आरक्षण के प्रावधान का उल्लंघन होगा.
क्योंकि अगर ओबीसी वर्ग को 27 फीसद आरक्षण मिलता है तो फिर कुल आरक्षण 63 प्रतिशत हो जाएगा. जो तय प्रावधान से 13 फीसद हो जाएगा. ओबीसी वर्ग की भर्तियों में भी ये पेंच फंसता हुआ नजर आया. कई भर्तियों पर जबलपुर हाईकोर्ट ने स्टे भी लगाया हालांकि बाकी की भर्तियों पर शिवराज सरकार ने ओबीसी वर्ग को राहत देकर लाभ पहुंचाया.
कुछ ऐसी ही तस्वीर मधयप्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर भी नजर आ रही है. रोटेशन और परिसीमन को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट से लेकर सर्वोच्च अदालत में जब तमाम याचिकाकर्ता गए तो इसमें कई बिंदुओं का जिक्र किया गया था. और आरक्षण इन सब में प्रमुख था. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि संविधान के तहत हर वर्ग को प्रतिनिधित्व का मौका मिलना चाहिए. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को संविधान के दायरे में रहते हुए ही चुनाव के दिशा-निर्देश दिए.
महाराष्ट्र निकाय चुनाव में भी फंस चुका है आरक्षण का पेंच
आरक्षण का मसला सिर्फ मध्यप्रदेश का नहीं बल्कि महाराष्ट्र में भी 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर सर्वोच्च अदालत ने रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण देने से पहले एक आयोग का गठन जरूरी है.आयोग अध्ययन करके बताता है कि किस जाति को कितना आरक्षण दिया जाना है. उसके बाद ये सुनिश्चित किया जाता है कि कुल आरक्षण 50 फीसदी सीमा को पार न कर रहा हो.
ट्रिपल टेस्ट है विकल्प
आरक्षण को ने सिरे से तय करने के लिए ट्रिपल टेस्ट का विकल्प भी होता है. इसके तहत राज्य में अलग-अलग क्षेत्र में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की सख्त प्रयोगसिद्ध जांच के लिए एक आयोग की स्थापना की जाती है..फिर आयोग की सिफारिशों के तहत स्थानीय निकायवार प्रावधान किए जाने के लिए जरूरी आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट किया जाता है, जिससे स्थिति साफ हो सके ताकि किसी भी मामले में आरक्षण अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कुल आरक्षित सीटों के 50 फीसदी से ज्यादा न हो.