शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव के लिए नए सिरे से परिसीमन का आदेश जारी कर दिया है. जिसके बाद पंचायतों के परिसीमन का काम भी चालू हो गया है. लेकिन अब तक पंचायतों के संचालन को लेकर कोई भी फैसला नहीं लिया गया है.
भोपालः मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव निरस्त होने के बाद से ही पंचायतों के संचालन को लेकर अभी तक शिवराज सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है. जबकि पंचायतों के परिसमीन का काम फिर से चालू हो गया है. लेकिन पंचायतों के संचालन पर कोई फैसला नहीं होने से असमंजस की स्थिति बनी हुई है. जिससे इस बात पर संशय बरकरार कि आखिर पंचायतों में होने वाले विकासकार्यों के डिसीजन कौन लेगा.
दरअसल, शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव के लिए नए सिरे से परिसीमन का आदेश जारी कर दिया है. जिसके बाद पंचायतों के परिसीमन का काम भी चालू हो गया है. इसको लेकर ग्राम पंचायतों वार्ड प्रभारियों से सारी जानकारी मांगी गई है. क्षेत्र की जनसंख्या और भौगोलिक जानकारी देने के भी आदेश दिए गए हैं. 17 जनवरी तक पंचायत सचिवों से जानकारी मांगी गई है. बता दें 17 जनवरी से 25 फरवरी तक परिसीमन प्रक्रिया की जाएगी. बताया जा रहा है कि जितनी जल्द परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होगी उतने ही जल्द चुनाव हो सकते हैं.
क्या यह है वित्तीय अधिकार वापस लेने की वजह?
शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव निरस्त होने के बाद त्रिस्तरीय पंचायतों के संचालन की जिम्मेदारी शिवराज सरकार ने 4 जनवरी को प्रशासकीय समिति को दिए थे, जिसमें सरपंच और सचिवों को ही पंचायतों में वित्तीय संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. लेकिन सरकार ने दो दिन बाद ही फैसला पलट दिया और सरपंच सचिवों को दिए गए वित्तीय अधिकार वापस ले लिए. दरअसल, वित्तीय अधिकार वापस लेने की एक बड़ी वजह ग्रामीणों का विरोध ही बताया जा रहा है. माना जा रहा है कि पंचायत चुनाव पिछले दो साल से टल रहे हैं, जिसके चलते पांच साल का कार्यकाल पूरा कर चुके सभी जनप्रतिनिधि अभी भी जस के तस बने हुए थे जिस पर ग्रामीण विरोध जता रहे हैं. क्योंकि चुनाव नहीं होने से दूसरे लोगों को अवसर नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार ने इसी वजह से सरपंच सचिवों को दिए गए वित्तीय अधिकार वापस ले लिए.
बता दें कि मध्य प्रदेश में 22,604 पंचायतों में सरपंच और पंच का कार्यकाल मार्च 2020 में ही पूरा हो चुका है. इसके अलावा 841 जिला और 6774 जनपद पंचायत सदस्यों का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है, लेकिन कोरोना के चलते फिर से चुनाव आयोजित नहीं हो पाए. जबकि हाल ही में दिसंबर में जब निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव कराने की घोषणा की तो ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर चुनाव एक बार फिर निरस्त हो गए थे.
विकास कार्यों में रुकावट
पंचायतों के संचालन पर फैसला नहीं होने से बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि पंचायतों में विकासकार्यों का क्या होगा?, क्योंकि किसी के पास वित्तीय अधिकार नहीं होने से पंचायतों के विकास कार्य रुके हुए हैं. मनरेगा, पीएम आवास सहित अन्य बड़ी योजना के तहत होने वाले काम अटकेंगे. इनके बिना विकास कार्यों में गति नहीं आ सकती. ऐसे में सरकार पर दवाब बढ़ सकता है. वहीं सरपंच भी उनके वित्तीय अधिकार वापस दिए जाने की मांग कर रहे हैं.
निर्वाचन आयोग चुनाव की तैयारियों में जुटा है
हालांकि खबर यह भी है कि निर्वाचन आयोग फिर से पंचायत चुनावों की तैयारियों में जुटा हुआ है. बताया जा रहा है कि निर्वाचन आयोग मध्यप्रदेश में अप्रैल-मई में पंचायत चुनाव आयोजित करा सकता है. क्योंकि परिसीमन के लिए 45 दिन का समय दिया गया है. जबकि इस दौरान अगर ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सुलझ जाता है तो फिर प्रदेश में पंचायत चुनाव आयोजित कराए जाने के लिए कोई परेशानी नहीं होगी ऐसे में उम्मीद है कि फिर निर्वाचन आयोग पंचायत चुनाव का ऐलान कर सकता है. हालांकि इस बात को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है कि चुनाव का ऐलान कब तक हो सकता है.
पंचायत चुनाव पिछले दो साल से रुके हैं
बता दें कि मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव पिछले दो साल से भी ज्यादा समय से रुके हुए हैं. ऐसे में सरपंचों का पांच साल का कार्यकाल सात साल तक हो चुका है. लेकिन हाल ही में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा वापस लिए गए फैसले के बाद वर्तमान में पंचायतों का वित्तीय अधिकार प्रशासनिक अधिकारियों के पास है. जिसका सभी सरपंच विरोध कर रहे हैं. उनकी मांग है कि सरपंचों को उनके वित्तीय अधिकार फिर से मिलने चाहिए.