What is Inflation Rate: किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति दर (Inflation Rate) का बड़ा महत्व होता है. मुद्रास्फीति के ऊंची दर या इसमें भारी गिरावट दोनों ही किसी भी देश के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. आइए बताते हैं कि क्या होती है मुद्रास्फीति दर?
आरती राय/नई दिल्ली: मुद्रास्फीति (inflation) या महंगाई किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में समय के साथ विभिन्न सामान और सेवाओं की कीमतों में होने वाली एक सामान्य बढ़ोतरी को कहा जाता है. जब सामान्य कीमत बढ़ती है, तो Purchasing Power में कमी होती है. किसी भी देश के लिए मुद्रास्फीति के ऊंची दर या इसमें भारी गिरावट की स्थिति जनता के लिए और उसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है.
मुद्रास्फीति का विपरीत होता है अपस्फीति
इकोनॉमिस्ट मानते हैं कि Inflation अर्थव्यवस्था की तुलना में आवश्यकता से अधिक पैसा छापने से जन्म लेती है. मुद्रास्फीति का विपरीत अपस्फीति (deflation) होता है, यानी वो स्थिति जिसमें समय के साथ-साथ माल और सेवाओं की कीमतें में भारी गिरावट दर्ज होती है.
यह भी पढ़ें– क्या अब लागू हो जाएगी Four-day work week की व्यवस्था? बड़ी संख्या में नियोक्ता कर रहे हैं फेवर
महंगाई दर को CPI के आधार पर मापा जाता है
भारत में खुदरा मुद्रास्फीति दर को ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (Consumer Price Index-CPI) के आधार पर मापा जाता है. यह खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन की माप करता है. यह चयनित वस्तुओं एवं सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ बदलाव को भी दर्शाता है, जिस पर उपभोक्ता अपनी आय खर्च करते हैं. मुद्रास्फीति को मुद्रास्फीति दर (inflation rate) से मापा जाता है. यानी एक वर्ष से दूसरे वर्ष के बीच मूल्य वृद्धि का प्रतिशत.
क्या है खुदरा मुद्रास्फीति दर?
जब एक निश्चित समय में वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य में बढ़त दर्ज होने के कारण मुद्रा के मूल्य में गिरावट दर्ज की जाती है, तो उसे मुद्रास्फीति कहते हैं. मुद्रास्फीति को जब प्रतिशत में बताते है तो यह महंगाई दर या खुदरा मुद्रास्फीति दर कहलाती है. सरल शब्दों में कहें तो ये कीमतों में उतार-चढ़ाव की रफ्तार को दर्शाती है.
खुदरा मुद्रास्फीति दर में वृद्धि के कारण
खाद्य कीमतें किसी भी देश की मुद्रास्फीति के इंडेक्स का लगभग आधा हिस्सा होती हैं. अक्सर खाद्यान पदार्थों की कीमतों में बढ़त के कारण खुदरा मुद्रास्फीति दर में वृद्धि देखी जाती है. मुख्य रूप से दालों और अन्य खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि के कारण खुदरा मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है. इसके अलावा मांस और मछली उत्पादों ,तेल , मसालों अन्य चीजों की कीमतों पर इसकी की वृद्धि का असर पड़ता है.
यह भी पढ़ें– Bank Holidays: 14 से 17 अप्रैल तक इन सभी शहरों में बंद रहेंगे बैंक, जल्दी से चेक कर लें छुट्टियों की लिस्ट
देश की अर्थव्यवस्था पर डालती है असर
मुद्रास्फीति का बड़े तौर पर असर निवेशकों पर पड़ता है. साथ ही निश्चित आय वर्ग के लोगों जैसे श्रमिक, अध्यापक, बैंक कर्मचारी और अन्य समान वर्ग पर पड़ता है. इसके साथ जुड़ा हुआ एक बहुत बड़ा वर्ग कृषक वर्ग है, जिसकी आय खेती पर निर्भर होती है. किसानों पर मुद्रास्फीति के बढ़ने और घटने से भारी प्रभाव पड़ता है. मुद्रास्फीति का कर्जदाता लेनदार और देनदार दोनों पर प्रभाव डालती है.
सार्वजनिक टैक्स में होती है बढ़ोतरी
इसके साथ ही एक बड़ा सेक्टर आयत और निर्यात जो बड़े तौर पर प्रभावित होते है. मुद्रास्फीति के कारण सार्वजनिक ऋणों में भी बढ़ोतरी होती है. क्योंकि जब कीमत के स्तर में वृद्धि होती है तो सरकार को सार्वजनिक योजनाओं पर अपने एक्सपेंडीचर को बढ़ाना पड़ता है और खर्चो की पूर्ति के लिए सरकार जनता से लोन लेती है. सरकार मुद्रास्फीति के कारण अपने व्यय की पूर्ति के लिए नए-नए कर लगाती है. साथ ही पुराने करों में वृद्धि भी कर सकती है. जिसका सीधा असर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर होता है.