Jharkhand News: झारखंड के जंगलों में लगी आग वन्यजीवों के लिए खतरा बन गई है. आग के कारण कई विलुप्तप्राय सरीसृप जल चुके हैं. पक्षियों और जानवरों के सामने पलायन की मजबूरी है.
Jharkhand Forest Fire: चिलचिलाती गर्मी और गर्म हवाओं के कारण झारखंड के जंगलों में लगी आग वन्यजीवों के लिए खतरा बन गई है. आग की वजह से जंगली जानवरों के आवास सिकुड़ रहे हैं और भोजन की कमी पैदा कर रहे हैं. एक अधिकारी ने बताया कि फायर अलर्ट सिस्टम से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, गढ़वा, पलामू, लातेहार, चतरा, हजारीबाग, रांची और पश्चिमी सिंहभूम जिलों के जंगलों में शनिवार को कुल मिलाकर 120 फायर प्वाइंट दर्ज किए गए.
कई लुप्तप्राय सरीसृप जले
राज्य वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले 30 दिनों में गिरिडीह और पलामू टाइगर रिजर्व में पारसनाथ पहाड़ियों के जंगलों में कई लुप्तप्राय सरीसृपों के जले होने की सूचना मिली है. भीषण आग जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर रही है, जानवरों के आवास सिकोड़ रही है और खाद्य श्रृंखला को बाधित कर रही है. जंगली जानवर और पक्षी सुरक्षा के लिए अपने आवास से दूसरे स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं.
पीटीआर के उप निदेशक (बफर क्षेत्र) मुकेश कुमार ने बताया कि उत्तर में आग की घटनाओं की संख्या अधिक होने की वजह से बड़ी संख्या में जानवर उत्तरी डिवीजन से पलामू टाइगर रिजर्व के दक्षिणी हिस्से में चले गए हैं. अधिकारियों ने कहा कि झारखंड के अधिकांश हिस्सों का तापमान पिछले 1 सप्ताह से अधिक समय से 40 डिग्री से अधिक बना हुआ है. राज्य के हर प्रमुख वन और वन्यजीव अभयारण्य से आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं. उन्होंने कहा कि आमतौर पर राज्य में 15 फरवरी से मध्य जून के बीच जंगल में आग की घटनाएं सामने आती हैं.
आग के 7,456 स्थान चिह्नित
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि झारखंड में इस साल 15 फरवरी से अब तक 7,456 आग के स्थान दर्ज किए गए हैं, वहीं एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इस साल राज्य में मार्च में एक दशक के अंदर सबसे कम बारिश हुई है. मौसम विभाग के अधिकारियों ने कहा कि अगले दो-तीन दिनों में अधिकतम तापमान में बदलाव होने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. उच्च तापमान, लंबे समय तक शुष्क मौसम, ग्रामीणों द्वारा महुआ फूल संग्रह की प्रथा और लोगों की लापरवाही राज्य के जंगलों में आग लगने की प्रमुख वजह माने जाते हैं.
लोगों की लापरवाही आग लगने का प्रमुख कारण
अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक एनके सिंह ने बताया कि ज्यादातर जंगल की आग मानव निर्मित होती है। उन्होंने कहा कि महुआ के फूलों को इकट्ठा करने के लिए ग्रामीण अक्सर जंगलों में सूखे पत्तों में आग लगा देते हैं. लोगों को इसके लिए लगातार जागरूक किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अग्निशमन प्रबंधन के लिए वन विभाग वर्तमान में कई चुनौतियों से जूझ रहा है जिसमें मानव संसाधनों और धन की कमी शामिल है. आग से निपटने के लिए वन विभाग प्रतिवर्ष 3 करोड़ रुपए खर्च करता है.