नई दिल्ली, पीटीआइ। विशेषज्ञों ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि निर्माणाधीन फ्लैटों पर जीएसटी लगाने से पहले जमीन का वास्तविक मूल्य घटाया जाना चाहिए, जिससे घर खरीदारों के लिए कर खर्च कम हो जाएगा। फिलहाल निर्माणाधीन फ्लैटों और इकाइयों की बिक्री पर जीएसटी लगाए जाते समय कर की गणना उसके (फ्लैट/इकाई) के पूरे मूल्य (अंतर्निहित भूमि की कीमत समेत) पर की जाती है। फ्लैट की एक-तिहाई कीमत की तदर्थ कटौती के बाद कर लगाया जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी क्षेत्रों या महानगरों में जमीन की वास्तविक कीमत, फ्लैट के एक तिहाई मूल्य से बहुत ज्यादा होती है। एक-तिहाई कटौती का आवेदन प्रकृति में मनमाना है क्योंकि इसमें जमीन के क्षेत्र, आकार और स्थान को ध्यान में नहीं रखा जाता है। एन. ए. शाह के एसोसिएट्स पार्टनर नरेश सेठ ने कहा कि अभी की व्यवस्था में अप्रत्यक्ष रूप से जमीन पर टैक्स लग रहा है, जो केंद्र सरकार की विधायी क्षमता में नहीं आता है।
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उन्होंने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय का यह फैसला वहां पूरी तरह लागू होगा, जहां बिक्री समझौते में भूमि और निर्माण सेवाओं की कीमत का स्पष्ट जिक्र किया गया है। नरेश सेठ का कहना है कि यह तर्कपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय है और अगर इसका पालन होता है तो निर्माणाधीन फ्लैटों को खरीदने वाले व्यक्तियों पर टैक्स का बोझ काफी कम हो जाएगा।
गौरतलब है कि गुजरात उच्च न्यायालय ने मुंजाल मनीषभाई भट्ट बनाम भारत सरकार केस में सुनाए गए अपने फैसले में फ्लैट खरीद के समय भूमि की एक-तिहाई कीमत की कटौती को शामिल किया है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि जमीन की एक-तिहाई कीमत की अनिवार्य कटौती उन मामलों में लागू नहीं होती है, जहां जमीन की कीमत साफ-साफ पता लगाई जा सकती है।
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एथेना लॉ एसोसिएट्स पार्टनर पवन अरोड़ा का कहना है कि फ्लैट खरीदार जो पहले से ही मानक एक-तिहाई कटौती के कारण अतिरिक्त जीएसटी का बोझ झेल चुके हैं, वह डेवलपर के अधिकार क्षेत्र वाले जीएसटी प्राधिकरण के साथ रिफंड का दावा दायर कर सकते हैं।
वहीं, न्यायालय में इस मामले की पैरवी करने वाले अधिवक्ता अविनाश पोद्दार ने उम्मीद जताई कि अब सरकार इस कर प्रणाली में पहले की तरह फिर से मूल्यांकन नियम लेकर आएगी।