मुंबई, पीटीआइ। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि रिजर्व बैंक द्वारा हाल ही में की गई रेपो रेट में बढ़ोतरी उनके लिए आश्चर्यजनक नहीं थी, लेकिन इसे बढ़ाने की टाइमिंग चौंकाने वाली थी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कोष की लागत बढ़ने से सरकार के नियोजित बुनियादी ढांचा निवेश पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। बता दें कि अगस्त 2018 के बाद पहली बार आरबीआई ने 4 मई को प्रमुख रेपो दर में 40 आधार अंकों की वृद्धि की और इसे बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया। इसके साथ ही, नकद आरक्षित अनुपात को 50 आधार अंक बढ़ाकर 4.5 प्रतिशत कर दिया।
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दर निर्धारण पैनल, यूक्रेन युद्ध के बाद मुद्रास्फीति के दबाव में वृद्धि और कच्चे तेल की कीमतों में परिणामी वृद्धि का हवाला देते हुए। यूक्रेन युद्ध के कारण मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ने और कच्चे तेल की कीमतों में परिणामी वृद्धि का हवाला देते हुए आरबीआई के दर निर्धारण पैनल की एक अनिर्धारित बैठक में यह निर्णय लिए गए थे। खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में 6.9 प्रतिशत रही, जो अप्रैल में 7.7 प्रतिशत के शीर्ष स्तर पर पहुंच सकती है।
निर्मला सीतारमण ने एक समारोह को संबोधित करते हुए रेपो रेट में वृद्धि पर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी और कहा, “आरबीआई की दर वृद्धि का समय आश्चर्य वाला था, न कि दर वृ्द्धि। लोग सोच रहे थे कि यह काम वैसे भी होना ही था…। यह आश्चर्य की बात थी क्योंकि यह दो एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) की बैठकों के बीच हुआ। लेकिन, यूएस फेड यह बार-बार कह रहा था।”
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सीतारमण ने कहा कि पिछली एमपीसी बैठक में केंद्रीय बैंक ने संकेत दिया था कि यह कदम उठाने का समय है और यह वृद्धि दुनियाभर के प्रमुख केंद्रीय बैंकों की ओर से की जा रही दर वृद्धि का हिस्सा है। उन्होंने कहा, “एक तरह से यह एक सिंक्रोनाइज्ड एक्शन था। ऑस्ट्रेलिया ने ऐसा किया। अमेरिका ने भी उसी रात यह किया। इसलिए, मुझे आजकल केंद्रीय बैंकों के बीच अधिक समझ दिखाई दे रही है। लेकिन, महामारी से उबरने के तरीके की समझ केवल भारत के लिए पूरी तरह से अनोखी या विशिष्ट नहीं है। यह एक वैश्विक मुद्दा है।”