विदेशी इनवेस्टर की लगातार निकासी और घरेलू शेयर बाजार में गिरावट आने से रुपया गिरकर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले अब तक के निचले स्तर पर आ गया है.
Rupee Slumps All Time Low: विदेशी इनवेस्टर की लगातार निकासी और घरेलू शेयर बाजार में गिरावट आने से रुपया गिरकर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले अब तक के निचले स्तर पर आ गया है. बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 19 पैसे लुढ़ककर 78.32 रुपये प्रति डॉलर के एक नये रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ. हालांकि गुरुवार सुबह इसमें सुधार देखा गया और यह 78.24 रुपये प्रति डॉलर पर चल रहा है.
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कच्चे तेल में गिरावट से रुपये का नुकसान सीमित हुआ
विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि विदेश में डॉलर की मजबूती से भी रुपये की धारणा पर असर पड़ा. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट ने रुपये के नुकसान को सीमित किया. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार (Interbank Forex Exchange Market) में स्थानीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 78.13 पर सपाट खुली. इसने गुरुवार के कारोबार के दौरान 78.13 के ऊपरी और 78.40 के रिकॉर्ड निचले स्तर को देखा.
बुधवार को 78.32 के रिकॉर्ड लेवल पर पहुंचा
रुपया अंत में अपने पिछले बंद भाव के मुकाबले 19 पैसे की गिरावट के साथ 78.32 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ. पिछले सत्र में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 78.13 पर बंद हुआ था. रेलिगेयर ब्रोकिंग के जिंस एवं करेंसी विभाग के उपाध्यक्ष, सुगंधा सचदेवा ने कहा, ‘घरेलू शेयरों से बेरोकटोक धन निकासी और डॉलर के मजबूत होने के बीच, कुछ समय के लिए 78 अंक के आसपास मंडराने के बाद, भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले एक नए रिकॉर्ड निचले स्तर तक चला गया.
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फेड रिजर्व के ब्याज दर बढ़ाने का असर
एलकेपी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक विभाग के उपाध्यक्ष, जतिन त्रिवेदी ने कहा, ‘फेडरज रिजर्व के आक्रामक रुख और भारतीय बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों की आक्रामक बिक्री के कारण रुपया कमजोर होकर 78.30 से नीचे चला गया.’
आप पर कैसे पड़ेगा असर?
रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर जाने से आम आदम की जेब पर सीधा असर पड़ेगा. भारतीय मुद्रा में गिरावट का सबसे ज्यादा असर आयात पर दिखेगा. भारत में आयात होने वाली चीजों के दाम में बढ़ोतरी होगी. देश में 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात होता है, यानी इससे भारत को कच्चे तेल के लिए आधिक कीमत चुकानी पड़ेगी और विदेशी मुद्रा ज्यादा खर्च होगी. ऐसे में तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं.