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भारत-चीन के बीच आगे कैसे रिश्ते रहेंगे? जानिए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने क्या कहा

India-China Relation: भारतीय और चीनी सैनिकों का पूर्वी लद्दाख में दो साल से ज्यादा समय से टकराव वाले कई स्थानों पर गतिरोध बना हुआ है. उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता के परिणामस्वरूप दोनों पक्ष क्षेत्र के कई क्षेत्रों से पीछे हटे हैं. हालांकि, दोनों पक्षों को टकराव वाले शेष बिंदुओं पर जारी गतिरोध को दूर करने में कोई सफलता नहीं मिली है.

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नई दिल्ली. पूर्वी लद्दाख (Ladakh Border Dispute) में जारी सैन्य गतिरोध और तनाव के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर (S. Jaishankar) ने सोमवार को कहा कि ‘सीमा की स्थिति’ भारत और चीन के बीच आगे के संबंधों को तय करेगी. ‘एशिया सोसायटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ की शुरुआत के अवसर पर एक समरोह को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार, क्षेत्रीय सहयोग, संपर्क और एशिया के भीतर अंतर्विरोधों के प्रबंधन सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की. विदेश मंत्री ने कहा कि एशिया का भविष्य काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि निकट भविष्य में भारत और चीन के बीच संबंध (India-China Relation) कैसे विकसित होते हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘सकारात्मक पथ पर लौटने और टिकाऊ बने रहने के लिए संबंधों को तीन चीजों पर आधारित होना चाहिए : पारस्परिक संवेदनशीलता, पारस्परिक सम्मान और पारस्परिक हित.’’ विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘उनकी वर्तमान स्थिति, निश्चित रूप से आप सभी को अच्छी तरह से पता है. मैं केवल यह दोहरा सकता हूं कि सीमा की स्थिति आगे संबंधों को तय करेगी.’’

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भारतीय और चीनी सैनिकों का पूर्वी लद्दाख में दो साल से ज्यादा समय से टकराव वाले कई स्थानों पर गतिरोध बना हुआ है. उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता के परिणामस्वरूप दोनों पक्ष क्षेत्र के कई क्षेत्रों से पीछे हटे हैं. हालांकि, दोनों पक्षों को टकराव वाले शेष बिंदुओं पर जारी गतिरोध को दूर करने में कोई सफलता नहीं मिली है. उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता का अंतिम दौर पिछले महीने हुआ था लेकिन गतिरोध दूर करने में कामयाबी नहीं मिली.

चीन के साथ भारत के संबंधों पर ताजा टिप्पणी के कुछ दिनों पहले विदेश मंत्री ने कहा था कि बीजिंग ने भारत के साथ सीमा समझौते की अवहेलना की, जिसका साया द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ रहा है. उन्होंने कहा था कि संबंध एकतरफा नहीं हो सकते हैं और रिश्तों में आपसी सम्मान की भावना होनी चाहिए.

जयशंकर ने एशिया सोसायटी के अपने संबोधन में कहा, ‘‘एशिया की संभावनाएं और चुनौतियां आज काफी हद तक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विकास पर निर्भर हैं. वास्तव में, अवधारणा ही विभाजित एशिया का प्रतिबिंब है, क्योंकि कुछ का इस क्षेत्र को कम एकजुट और संवादात्मक बनाए रखने में निहित स्वार्थ है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘वैश्विक हितों के लिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को क्वाड जैसे सहयोगी प्रयासों से बेहतर सेवा मिलती है, जाहिर तौर पर जिसके प्रति उनका उदासीन रूख है.’’

विदेश मंत्री ने कहा कि एशिया में बुनियादी रणनीतिक सहमति भी विकसित करना स्पष्ट रूप से एक ‘‘कठिन कार्य’’ है. जयशंकर ने कहा कि कोविड महामारी, यूक्रेन संघर्ष और जलवायु गड़बड़ी के ‘‘तीन झटके’’ भी एशियाई अर्थव्यवस्था के विकास को प्रभावित कर रहे हैं. 

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